किसान और सरकार सह-मात की खेल

जितेन्द्र कुमार सिन्हा, पटना, 16 दिसम्बर :: केन्द्र सरकार और किसानों बीच कृषि सुधार अध्यादेशो को लेकर चल रही आंदोलन फिलहाल कमजोर पड़ता नहीं दिख रहा है। किसानों और सरकार के बीच कई दौर में बातें हुई, लेकिन परिणाम नहीं निकला और अब फिलहाल कोई बातचीत भी होती नजर नहीं आ रही है। जबकि किसानों द्वारा आंदोलन को और तेज किया जा रहा है।

सरकार ने आंदोलन से निपटने के लिए आक्रामक एक्शन प्लान तैयार कर काम कर रही है, जिसके तहत वो अलग- अलग फ्रंट पर मामले से निपटने की कोशिश कर रही है। सरकार द्वारा किसान संगठनों के मतभेद को उजागर कर लगातार छोटे-छोटे किसान संगठनों से चर्चा कर रही है। परिणाम स्वरूप कृषि संगठन कृषि कानूनों के पक्ष में बयान देना शुरू कर दिया है। सरकार किसान आंदोलन में शामिल माओवादी और अलगाववादी ताकतों से सम्बन्ध रखने का प्रचार-प्रसार कर रही है। सरकार के मंत्री और एनडीए के नेता लगातार टुकड़े टुकड़े गैंग और माओवादी ताकतों, खालिस्तानी ताकतों के बारे में बात करने लगी हैं। किसान संगठन दिल्ली और महाराष्ट्र हिंसा के आरोपियों की रिहाई की मांग कर रही है जिससे सरकार को बल मिल रहा है। विदशों में हुए प्रदर्शनों में खालिस्तानी तत्वों की मौजूदगी से ऐसे आरोपों को हवा मिली है कि किसान आंदोलन को अलगाववादी ताकतों का समर्थन मिल रहा है।

आंदोलनकारी भारतीय किसान यूनियन के कुछ गुटों से सरकार ने अलग से बातचीत करने की पहल की है। जिसके परिणामस्वरूप नोएडा का रास्ता खुला है। अलगाववादी ताकतों को लेकर सरकार के प्रचार-प्रसार के बाद कई किसान संगठनों ने बीकेयू के उग्रान गुट से खुद को अलग कर लिया है।
दूसरी तरफ सरकार आंदोलनकारी किसानों से चर्चा के लिए हमेशा तैयार है। सरकार खंड खंड में चर्चा की फिर से पेशकश भी की है, इससे यह संदेश जा रहा है कि सरकार अड़ी हुई नहीं है। लेकिन सरकार एक ओर जनमत तैयार करने में भी एनडीए के वरिष्ठ नेता और मंत्री 700 से अधिक जिलों में प्रेस कांफ्रेंस, किसान रैली और चौपालों के माध्यम से कृषि कानूनों के फायदे गिनाने में लगी हुई है, ताकि किसान आंदोलन को देश भर में फैलने से रोका जा सके।

हरियाणा के भाजपा सांसदों और विधायकों ने कृषि मंत्री और जल संसाधन मंत्री से मांग की है कि सतलुज यमुना नहर के मुद्दा का समाधान किया जाए। यह मामला पंजाब के किसानों के साथ आए हरियाणा के किसानों को भावनात्मक रूप से कमजोर करने का प्रयास है, क्योंकि इसे हरियाणा के हक से जोड़कर देखा जा रहा है।
किसान और प्रभावशाली नेताओं का ध्यान आंदोलन से भटकाने के लिए राज्य सरकार हरियाणा में स्थानीय निकाय के चुनाव जल्द हीकराने का घोषणा कर सकती है। आंदोलन में जुटे युवाओं को आंदोलन से अलग करने के लिए हरियाणा सरकार तृतीय व चतुर्थ श्रेणी की नौकरियों के लिए भर्ती अभियान चलाने की भी घोषणा कर सकती है।

एनडीए के मुख्यमंत्री अपने अपने राज्यों में मीडिया के माध्यम से किसानों के मन में उठी आशंकाओं को दूर करने के लिए अभियान चलाने की पहल शुरू कर दिया है।
सरकार विपक्षी दलों की दोहरी भूमिका उजागर कर रही है। किसान आंदोलन में राजनीतिक दलों के झंडे दिखने लगे हैं, जिससे देख कर सरकार कहने लगी है कि किसान आंदोलन का राजनीतिकरण हो गया है और किसान संगठन विपक्षी दलों के हाथों में खेल रही है।

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