मुहर्रम मातम और आंसू बहाने का महीना होता है

जितेन्द्र कुमार सिन्हा, पटना, 30 अगस्त :: सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, मुहर्रम खुशी का त्योहार नहीं है, बल्कि मातम और आंसू बहाने का महीना होता है। इस महीने में सिया समुदाय के लोग, मुहर्रम के 10 वें दिन काले कपड़े पहन कर हुसैन और उसके परिवार की शहादत को याद करते हैं। मुहर्रम की 9 और 10 तारीख को रोजे रखते हैं और मस्जिद- घरों में इवादत करते हैं।
सूत्रों ने यह भी बताया कि सुन्नी समुदाय के लोग मुहर्रम के महीने के 10 दिन तक रोजा रखते हैं। कहा जाता है कि मुहर्रम के एक रोजे का सबाब 30 रोजे के बराबर होता है।

सूत्रों के अनुसार, कोरोना महामारी को देखते हुए इसबार ताजिया जुलूस नहीं निकाला जाएगा। धर्म को निभाने के लिए मात्र चार आदमी ताजिया को लेकर कर्बला में पहलाम करेंगे।

सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, पटना प्रशासन की तरफ से मुहर्रम को लेकर तैयारी कर ली गई है। प्रशासन ने इसके लिए दिशा निर्देश भी जारी किया हैं।

सूत्रों ने बताया कि दिशा निर्देश में कहा गया है कि सुबह 6 बजे से लेकर रात के 10 बजे तक ही लाउडस्पीकर बजाय जा सकता हैं। डीजे बजाने पर जिला प्रशासन ने पाबंदी लगा दी है।

सूत्रों ने यह भी बताया कि विधि व्यवस्था को दुरूस्त बनाए रखने के लिए दंडाधिकारी, पुलिस पदाधिकारी और पुलिस बल की नियुक्ति की गई है। प्रशासन की तरफ से स्पष्ट निर्देश है कि सामाजिक सदभाव बिगाड़ने वालों पर कड़ी नजर रखी जाए।

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