राक्षस, भूत, प्रेत, पिसाच और नकारात्मक ऊर्जाओं का नाश करती है माँ कालरात्रि

जितेन्द्र कुमार सिन्हा, 22 अक्टूबर ::
माँ दुर्गा की सातवीं शक्ति कालरात्रि हैं। नवरात्रि में सातवें दिन माँ कालरात्रि की उपासना का किया जाता है। इस दिन साधक का मन ‘सहस्रार’ चक्र में स्थित रहता है।

माँ कालरात्रि को ही माँ काली, माँ महाकाली, माँ भद्रकाली, माँ भैरवी, माँ रुद्रानी, माँ चामुंडा, माँ चंडी और माँ दुर्गा के नाम से भी जाना जाता है।माँ कालरात्रि की पूजा से ब्रह्मांड की समस्त सिद्धियों का द्वार खुलने लगता है। मान्यता है कि माँ के इस रूप की पूजा से सभी राक्षस, भूत, प्रेत, पिसाच और नकारात्मक ऊर्जाओं का नाश होता है, जो माँ कालरात्रि के आगमन से पलायन करते हैं |

सहस्रार चक्र में स्थित साधक का मन पूर्णतः माँ कालरात्रि के स्वरूप में अवस्थित रहता है। उनके साक्षात्कार से मिलने वाले पुण्य, सिद्धियों और निधियों विशेष रूप से ज्ञान, शक्ति और धन का वह भागी हो जाता है। उसके समस्त पापों-विघ्नों का नाश हो जाता है और अक्षय पुण्य-लोकों की प्राप्ति होती है।

माँ कालरात्रि का शरीर रात के अंधकार की तरह काला है। गले में विद्युत की माला और बाल बिखरे हुए हैं। मां के चार हाथ हैं, जिनमें से एक हाथ में गंडासा और एक हाथ में वज्र है। इसके अलावा, मां के दो हाथ क्रमश: वरमुद्रा और अभय मुद्रा में हैं। इनका वाहन गर्दभ (गधा) है।

शिवजी की बात मानकर माता पार्वती ने, दैत्य रक्तबीज का बध करने के लिए, माँ कालरात्रि का रूप धारण कर उसे मौत के घाट उतारा और उसके शरीर से निकलने वाले रक्त को जमीन पर गिरने से पहले ही अपने मुख में भर लिया। रक्तबीज का वध कर दिया।

‘मां कालरात्रि का मंत्र है:-

एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता, लम्बोष्टी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी।
वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा, वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी॥

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