मखाना की खेती बाढ़ प्रभावित जिलों के लिए वरदान , सरकार दें ध्यान—अजय प्रकाश पाठक

मखाना उत्पादन से प्रति एकड़ 2 से 5 लाख रुपए तक की आय हो सकती है ।
बिहार में एक एकड़ जलाशय में मखाना का पैदावार 10 से 15 क्विंटल तक हो सकता है।वो भी सिर्फ 5 महीनों में।
आधुनिक खेती से साल में दो बार उपज निकली जा सकती है ,पहले ये साल में एक बार जुलाई तक ही होती थी।
नदी ऑर नहरों के किनारे ऑर निचले इलाकों की बेकार जमीन जो नदियों के द्वारा हो गया है उसपे भी मखाना की खेती की जा सकती हैं।
सबसे बड़ी बात ये है कि मखाना के लावा के साथ साथ पॉप, कुरकुरे, आटा समेट कई तरह के प्रोडक्ट्स इसके बनने लगे है।
बिहार ऑर चंपारण के लिए ये एक तरह से सुनहरा अवसर हो सकता है।
मखाना की खेती हर उस जगह पे हो सकती है जहां हम पानी रोक सके।जैसे तालाब, गढ्ढे,खेत।
एक आंकड़ों के अनुसार बिहार में लगभग 5 लाख लोग इसके उत्पादन ऑर व्यवसाय से जुड़े हैं।हालांकि तकरीबन 20 लाख लोगों को सरकार प्रोत्साहित करके और जोड़ सकती हैं।
सरकार नदियों ऑर नहरों के जल का भंडारण करके, तालाब खुदवा के सब्सिडी देके ऑर तकनीकी प्रशिक्षण देके किसानों को प्रोत्साहित कर सकती हैं।
सरकार चाहे तो प्रवासी मजदूरों को इसमें रोजगार दे सकती हैं।
मेरा मांग बिहार सरकार से है कि सरकार बिहार के लिए मखाना उत्पादन हेतु विशेष पैकेज लाए ऑर बिहार ऑर चंपारण को मखाना उत्पादन का हब बनाए। क्योंकि चंपारण में नदियों ऑर नहरों का भारी मात्रा में जलस्रोत हैं।ऑर ये पूरे बिहार में है । जरूरत है बस आर्थिक ऑर तकनीकी मदद की ।

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