“कोरोना बीमारी – सरकार के कदमों में बदइंतजामी, खामियां और न्यायालयों का हस्तक्षेप प्रशंसनीय”

कोरोना का पहला मामला देश में 30 जनवरी को केरल में आया और जो असल में इस बीमारी के खिलाफ जंग सरकार द्वारा शुरू हुई, वह अचानक से 24 मार्च 2020 के लॉक डाउन से हुई थी। देश के सबसे पहले गुजरात हाई कोर्ट किस राज्य में पहला मामला आने से पहले 13 मार्च को ही इस बीमारी के लिए एहतियाती कदम राज्य सरकार द्वारा उठाने का संज्ञान लिया गया था। अभी हाल में ही मीडिया रिपोर्ट्स का माननीय उच्चतम न्यायालय ने प्रवासी श्रमिकों को संभालने में केंद्र सरकार और राज्य सरकारों की ओर से बदइंतजामों और खामियों के बारे में संज्ञान लिया है और आदेश दिया है कि ट्रेन या बस में इन मजदूरों को मुफ्त भेजा जाये और साथ में इनके खाने पीने की सुविधा का भी पूरा ख्याल रखा जाये जो हम सभी द्वारा सरकार को बार बार चेताया जा रहा था। गुजरात के माननीय उच्च न्यायालय ने अहमदाबाद के सिविल अस्पताल की स्थिति को कालकोठरी बताते हुए राज्य सरकार को लताड़ा है। तेलंगाना के माननीय हाई कोर्ट को भी राज्य सरकार द्वारा कोविड 19 मामलों को संभालने में भी हस्तक्षेप करना पड़ा क्योंकि राज्य सरकार द्वारा किए जा रहे परीक्षण पर्याप्त नहीं हैं और इसलिए शवों के भी निरीक्षण कराने के आदेश दिए गए हैं। यह सब दर्शाता है कि भारत सरकार द्वारा सही समय पर ठीक दिशा निर्देश जारी न करने की वजह से न केवल भारत सरकार बल्कि एनडीए शासित राज्य सरकारें भी अपने कर्तव्यों को निभाने में सक्षम नहीं रही हैं। मैं तालाबंदी को असंवैधानिक मानता हूँ इससे तो लोकतंत्र का गला ही दबा दिया गया है। सिर्फ सत्तापक्ष की ही बात फैलाई जा रही है और विपक्षी दल के लोग कहीं निकल ही नहीं पाए है। न्यायालयों को हस्तक्षेप करना पड़ रहा है जो प्रशंसनीय है।

इसमें कोई संदेह नहीं है कि कोविड 19 की उत्पत्ति चीन से हुई थी और भारत सहित अन्य देशों को बाद में इस बीमारी ने अपनी चपेट में लिया। लेकिन यह भी एक तथ्य है कि हमारी सरकार यदि सक्रिय होती तो देश इस वायरस से ग्रस्त होने से बच सकता था। यह बीमारी सभी को मालूम है कि विदेशों से आई है तो सबसे पहले क्या करना चाहिए था कि फरवरी 2020 के पहले सप्ताह से ही विदेशों से आने वाली सभी उड़ानों को स्थगित करना था। यह बहुत स्पष्ट है कि यह बीमारी हमारे देश द्वारा आयात की गई है। देश ने देखा है कि 24 फरवरी को नमस्ते ट्रंप अहमदाबाद में 1 लाख लोगों को इकट्ठा किया गया और फिर मध्य प्रदेश की सरकार के हेर फेर की वजह से ऐतिहातन कदम उठाने में देरी हुई थी। अब बीमारी ने लगभग पूरे देश में विशेष रूप से शहरों जैसे मुंबई, दिल्ली, अहमदाबाद, इंदौर, पुणे, चेन्नई आदि में अपने पैर सबसे ज्यादा पसार लिए हैं । जैसा कि विशेषज्ञ कह रहे हैं कि जब तक इसकी वैक्सीन नहीं आती है तब तक इसके साथ जीना पड़ेगा।जो भी हुआ अब हो गया और उसमे अब कुछ भी कर नहीं सकते मगर जो अचानक से तालाबंदी की इससे स्थिति और बिगड़ गई। तालाबंदी के बाद सबसे ज्यादा नुकसान, तबाही और मुश्किल प्रवासी कामगारों को झेलनी पड़ी जिनके भयावह दृश्य देखे भी नहीं जाते हैं। सभी देशवासियों को कम से कम 7-10 दिनों के नोटिस की जरूरत थी जिससे कि वह अपने आप को संभाल लेते क्योकि सरकार की दृष्टिहीनता और दूरदर्शिता का अभाव शुरू से दिखाई दे रहा था वैसा ही तालाबंदी की घोषणा के समय अंदाजा ही नहीं लगाया कि इसका परिणाम क्या होगा। प्रवासी श्रमिकों की दुर्दशा को न केवल पूरे देश ने बल्कि पूरे विश्व ने देखा है। प्रवासी श्रमिकों के दयनीय दृश्य चिलचिलाती गर्मी में पैदल चलते हुए छोटे छोटे बच्चों के साथ परिवारों सहित, कुछ ने टूकों, टेम्पो, रिक्शा, साइकिलोंपर यात्रा की है ऐसे दृश्य हमारे जीवनकाल में भूलने योग्य नहीं होंगे। देश भर में हर जगह एक दर्दनाक स्थिति और अराजकता थी और ऐसा लग रहा था कि कोई सरकार काम कर भी रही है कि नहीं।

इतने बहुत ही दवाब के बाद विलम्ब से यह सरकार तय कर पाई कि श्रमिकों के लिए स्पेशल टूनों की व्यवस्था की जाए। श्रमिकों को मुफ्त में भेजने की बजाए किराया लेकर भेजने का इंतजाम किया गया मगर उसमे भी भ्रम ही भ्रम था और इन श्रमिकों को ट्रेनों में पहले बैठने के लिए क्या-क्या मुश्किलों का सामना नहीं करना पड़ा जिनको शब्दों में बयान करना असंभव है। श्रमिकों के लिए अमानवीय ढंग से प्रबंध किया गया जो बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण था। हालांकि, इन स्पेशल ट्रेनों में पहले तो बैठना एक मंजिल हासिल करना था लेकिन ये टेनें अब चल कैसे रही हैं। यह फिर से देश के लिए शर्म की बात है। ट्रेनें न केवल 80-90 घंटे की देरी से चल रही हैं, बल्कि इन ट्रेनों में इन गरीब श्रमिकों के लिए कोई खाने पानी पीने आदि किसी चीज की व्यवस्था नहीं है। अमानवीय ढंग से इन ट्रेनों में ले जाया जा रहा है कि न केवल ट्रेनों में बल्कि स्टेशनों पर भी कोई खाने की व्यवस्था नहीं होने से कई लोगो की तो इन ट्रेनों में मौत होने के भी समाचार मिले हैं। यह अकल्पनीय था कि सरकार के अधीन प्रणाली इस तरह से कार्य करती है। इसके अलावा यह ट्रेनें निर्धारित स्थानों पर न पहुंच कर बल्कि गलत स्थानों पर पहुंच रही हैं। यह हमारे जीवन काल के दौरान पहली बार देखने को मिल रहा है। यह देश बुलेट ट्रेन के सपने देखने वाला इस तरह से व्यवस्था करे तो हैरान होने वाली बात है। सबसे अधिक आपराधिक हिस्सा यह है कि यह उन लोगों के साथ हो रहा है जो निराशा में और भूख से यात्रा कर रहे हैं। वर्तमान शासन ने इस देश के लोगों को विशेष रूप से प्रवासी श्रमिकों को पीड़ा और उदासीनता देने की अपनी सभी सीमाओं को पार कर लिया है और यह वह लोग है जिनका देश निर्माण में सबसे ज्यादा हाथ है।

कुछ राज्य सरकारें अस्पतालों में रोगियों को उचित सुविधा प्रदान व स्थिति का सामना करने में असमर्थ रही हैं। इस तरह की और खबरें गुजरात राज्य से विशेष रूप से अहमदाबाद से आ रही हैं। महाराष्ट्र के मुंबई की स्थिति भी बहुत उत्साहजनक नहीं है। बिहार जैसे कुछ राज्यों में न केवल अस्पताल ठीक नहीं हैं, बल्कि क्वारंटाइन केंद्र और इसमें दिया जाने वाला भोजन दोनों रहने और खाने योग्य नहीं है। यह आश्चर्य की बात है कि व्यवस्था बनाने के लिए अब तो पर्याप्त समय मिल गया था उसके बावजूद भी राज्य सरकारों को कुशलता से स्थिति को संभाल नहीं पा रहीं हैं। इसका मतलब यह नहीं है कि राज्य सरकारें कुशलता से काम करना नहीं चाह रही हैं बल्कि यह कहना होगा कि इसमें निर्वाचित प्रतिनिधियों को बहुत सख्ती से काम लेने की आवश्यकता है। इस कोरोना संकट के दौरान निर्वाचित प्रतिनिधियों की भूमिका कम देखने को मिल रही है वह भी हमारे लोकतंत्र के नियमों के विपरीत है जोकि नहीं होना चाहिए।कोविड 19 की कहानी दिसंबर 2019 में चीन से शुरू होने के बाद से ही देखा गया है कि हमारी केंद्र सरकार की दूर दृष्टि और अनुभव में कमी रहीं है। परिणाम स्वरूप केंद्र सरकार राज्य सरकारों को समय पर और सटीक दिशा निर्देश नहीं दे सकी। अब जब स्थिति हाथ से बाहर हो गई है, तो केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों को तालाबंदी में ढील देने और एहतियाती उपायों को अपनाने के लिए उन पर छोड़ दिया है। देश के लिए सबसे महत्वपूर्ण बात अब अर्थव्यवस्था को फिर से शुरू करना है। प्रधानमंत्री द्वारा 20 लाख करोड़ रुपए का आर्थिक पैकेज घोषित किया गया। लेकिन दुर्भाग्य से घोषित आर्थिक पैकेज विशेषज्ञ और अर्थशास्त्रियों की समझ से परे है। इनका कहना है कि यह पैकेज जीडीपी का केवल 0.9 फीसदी मतलब कि2 लाख करोड़ रुपए से भी कम होगा। ऐसे हालात पैदा करने के बावजूद सरकार को दोनों हाथ खोलकर गरीबों की मदद करनी चाहिए थी। मगर अफसोस कि सरकार ऐसा नहीं कर रही है। इसलिए समय की जरूरत है कि एहतियाती उपायों के साथ लॉकडाउन को उठाया जाए, प्रवासी श्रमिकों की जल्द से जल्द वापसी की व्यवस्था की जाए और आर्थिक पैकेज की फिर से घोषणा की जाए जो विशेष रूप से इन श्रमिकों के लिए लाभ का प्रदर्शन करे ताकि वे आकर्षित हों। जब तक ये श्रमिक वापस नहीं आएंगे, तब तक आर्थिक गतिविधियाँ शुरू नहीं होगी।

एक आश्चर्यजनक बात और देखने को मिली है कि ऐसे समय में जबकि देशवासी पूरी तरह से परेशान और तकलीफ़ में हैं खासतौर से हमारे श्रमिक भाई बहन जिनके साथ दुर्व्यवहार हुआ है यह सरकार पिछले साल की अपनी उपलब्धियों का बखान कर रही है। ऐसा बिल्कुल करना वाजिब नहीं था। जो उपलब्धियां भी यह सरकार गिनवा रही है वह भी हास्यप्रद हैं। यह समय बहुत सोच समझ कर और सभी से विचार करके देश के हित के लिए काम करने का है उसके लिए अनुभव और ठीक नीयत की जरूरत होगी।

*लेखक पूर्व केंद्रीय मंत्री और लोक सभा और राज्य सभा के सदस्य रहे है।

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