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Thursday, May 22, 2025
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योग की सार्वभौमिक आवश्यकता : अवधेश झा

योग की सार्वभौमिक आवश्यकता : अवधेश झा

जितेन्द्र कुमार सिन्हा, पटना, 12 मई ::

योग का पहला सुव्यवस्थित व प्रामाणिक ग्रंथ ‘योगसूत्र’ 200 ई.पू. में लिखा गया। योग का प्रारम्भ भगवान शंकर के बाद वैदिक ऋषि-मुनियों से ही माना जाता है। बाद में कृष्ण, महावीर और बुद्ध ने इसे अपनी तरह से विस्तार दिया। इसके पश्चात पतंजलि ने इसे सुव्यवस्थित रूप दिया। योगसूत्र, योग दर्शन का मूल ग्रंथ है। योगसूत्र में पूर्ण कल्याण तथा शारीरिक, मानसिक और आत्मिक शुद्धि की बात की गई है।

महर्षि पतंजलि के अनुसार चित्त की वृत्तियों को चंचल होने से रोकना (चित्तवृत्तिनिरोधः) ही योग है। अर्थात मन को इधर- उधर भटकने न देना, केवल एक ही वस्तु में स्थिर रखना ही योग है। पतंजलि का योगदर्शन, समाधि, साधन, विभूति और कैवल्य इन चार पादों या भागों में विभक्त है। समाधिपाद में यह बतलाया गया है कि योग के उद्देश्य और लक्षण क्या हैं और उसका साधन किस प्रकार होता है। साधनपाद में क्लेश, कर्मविपाक और कर्मफल आदि का विवेचन है। विभूतिपाद में यह बतलाया गया है कि योग के अंग क्या हैं, उसका परिणाम क्या होता है और उसके द्वारा अणिमा, महिमा आदि सिद्धियों की किस प्रकार प्राप्ति होती है। कैवल्यपाद में कैवल्य या मोक्ष का विवेचन किया गया है।
महर्षि पतंजलि के योगसूत्र में आठ आयामों वाला अष्टांग-मार्ग है। जिसमें यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि का साधन आवश्यक और अनिवार्य कहा गया है। यम सामाजिक नैतिकता का पाठ सिखाता है। नियम हमारी व्यक्तिगत नैतिकता है। योग का प्रथम अभ्यास आसन है। योगासनों द्वारा शारीरिक नियंत्रण किया जाता है। प्राणायाम अनावश्यक सांसारिक कार्यों को करने से रोकता है। प्राणायाम की नित्य क्रिया मस्तिष्क की एकाग्रता और स्थायित्व को बढ़ाता है। प्राणायाम मन की स्थिरता को पाने में मदद करता है और मानसिक उद्वेलनों को नियंत्रित करता है। प्रत्याहार इन्द्रियों को अंतर्मुखी करना है। प्रत्याहार में जब इंद्रियों की ज़रुरत होती है, तब इनका प्रयोग करते है। अन्यथा इनको शांत रखते है। धारणा है-एकाग्रचित्त होना। किसी स्थान (मन के भीतर या बाहर) विशेष पर चित्त को स्थिर करने का नाम धारणा है। ध्यान करते से मस्तिष्क को नई उर्जा प्राप्त होती है।योगशास्त्र में ध्यान का स्थान बहुत ऊंचा है। ध्यान के प्रकार बहुत से हैं। आत्मा से जुड़ना समाधि है। ध्यान की उच्च अवस्था को समाधि कहते हैं।
प्राचीन काल खंड के पश्चात वर्तमान समय में अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस से भारत की विश्व ख्याति में वृद्धि हुई है और इसका श्रेय भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी को जाता है। उनका योग और जीवन के संदर्भ में एक ही मूल मंत्र है -योगस्थः कुरुकर्माणि। आदि काल से ही योग मानवता की सेवा करता रहा है, लेकिन जब से प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने पहल की है, योग ने इतने बड़े पैमाने पर वैश्विक स्वीकृति प्राप्त की है, जिसके बारे में पहले सोचा भी नहीं जा सकता था। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सितंबर, 2014 में अपने संयुक्त राष्ट्र महासभा के भाषण में विश्व समुदाय से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर योग का उत्सव मनाने का आग्रह किया था। उनकी अपील के बाद, संयुक्त राष्ट्र ने 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के रूप में घोषित किया है।

योग ने कल्याणकारी स्वास्थ्य प्रणाली के रूप में दुनियाभर में अपनी छाप छोड़ी है। इसी का परिणाम है कि 27 नवंबर, 2020 को राष्ट्रीय योग खेल महासंघ (एनवाईएसएफ) के अन्तर्गत योग को एक प्रतिस्पर्धी खेल के रूप में मान्यता प्राप्त हुई।

योग के क्षेत्र में उभर रही बेहतर संभावनाओं के कारण हाल के समय में योग की डिग्री भी मुख्यधारा की अन्य तमाम डिग्रियों की तरह प्रचलित होने लगी है। इसका एक प्रमाण है 2013 में शुरू हुआ गुजरात का लकुलिश योग विश्वविद्यालय, जिसमें प्रवेश लेने वालों की संख्या में वर्ष 2018 में तीन गुना वृद्धि देखी गयी।

योग के अभ्यास को डिजिटल रूप से प्रचारित करने के लिए मंत्रालय ने हाल ही में ‘नमस्ते योग ऐप’ भी जारी किया है। यह एप लोगों को योग से संबंधित जानकारी, योग कार्यक्रमों और योग कक्षाओं का डिजिटल रूप से लाभ लेने में सक्षम बनाता है। समय की कमी से जूझ रहे कामकाजी लोगों के लिए भी यह ऐप बहुत काम का है। इस ऐप के माध्यम से पांच मिनट में चुनिंदा योगाभ्यास से व्यक्ति स्वयं को तनाव- मुक्त कर सकता है, फिर से ऊर्जावान महसूस कर सकता है और अपने काम पर केन्द्रित करने के लिए तैयार हो सकता है।

योग के दृष्टिकोण से आयुष के लिए प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी के मन में विशेष स्थान है। उसी के अनुरूप केंद्रीय मंत्रिमंडल ने हाल ही में 4,607.30 करोड़ रुपये के प्रावधान के साथ राष्ट्रीय आयुष मिशन को केंद्र प्रायोजित योजना के रूप में 2026 तक जारी रखने की मंजूरी दी। दुनिया भर में कोविड-19 संक्रमण के दौर ने योग को और अधिक प्रासंगिक बना दिया है कि हम अपने शरीर – अंतर्मन- चेतना को स्वास्थ्य पर आने वाले किसी भी तरह के खतरे का सामना करने के लिए तैयार रखें।

अधिकांश लोगों ने सूर्य नमस्कार के बारे में अवश्य सुना होगा, प्रधानमंत्री ने सूर्य नमस्कार की श्रृंखला को अभ्यास करते हुए वीडियो के माध्यम से जन जन को सूर्य नमस्कार से होने वाले फायदा से अवगत कराया।
योग के क्षेत्र में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने आयुष के बाद मोरारजी देसाई राष्ट्रीय योग संस्थान को भी बड़ी जिम्मेवारी सौंपी, उसी का अनुसरण करते हुए संस्थान कई तरह के योग प्रोटोकॉल का निर्माण किया तथा हाल ही में संस्थान के निदेशक डॉ. ईश्वर वी. बसवरद्दी के नेतृत्व में मोरारजी देसाई राष्ट्रीय योग संस्थान के विशेषज्ञों द्वारा योग के सामान्य तौर- तरीकों का एक लाइव प्रदर्शन किया गया, जिसमें 3000 से अधिक योग साधकों ने लाल किले पर योग के सामान्य तौर- तरीकों का प्रदर्शन किया। कार्यक्रम को आयुष मंत्रालय, मोरारजी देसाई राष्ट्रीय योग संस्थान और अन्य योग संस्थानों के विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफार्मों के माध्यम से स्ट्रीम किया गया था।

आज दुनियाभर में योग का अभ्यास किया जा रहा है। एक सर्वेक्षण के मुताबिक विश्व के लगभग 2 अरब लोग योग का अभ्यास करते हैं। पिछले कई वर्षों से योग करने वाले की संख्या में लगातार वृद्धि हुई है।

ध्यातव्य है कि अवधेश झा, (ट्रस्टी एवं अंतरराष्ट्रीय योग समन्वयक, ज्योतिर्मय ट्रस्ट-यूनिट ऑफ योग रिसर्च फाउंडेशन, मियामी, फ्लोरिडा, यू.एस.ए.) से जुड़े हुए हैं।

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