भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान योद्धा, सम्पूर्ण क्रांति के मसीहा, सेवा, त्याग, लगन और साधनामय जीवन के पूजारी थे लोकनायक जयप्रकाश नारायण
जितेन्द्र कुमार सिन्हा ::
सम्पूर्ण क्रांति के मसीहा, समाजवादी आन्दोलन के जनक, जन-जन के कंठहार लोकनायक जयप्रकाश नारायण का जन्म सारण जिलान्तर्गत सिताब दियारा गाँव में 11 अक्तूबर, 1902 को हुआ था। प्रारम्भिक शिक्षा सिताब दियारा के एक प्राइमरी स्कूल में हुई थी। आगे की शिक्षा के लिये पटना कॉलेज में दाखिला हुआ था। वर्ष 1919 में प्रथम श्रेणी में प्रतिभामानक छात्रवृति लेकर हाई स्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण किया था। जून 1919 में जयप्रकाश जी का विवाह स्वतंत्रता आन्दोलन के अग्रणी बाबू ब्रजकिशोर प्रसाद जी की बेटी प्रभावती जी से हुआ था।
ऊँची शिक्षा पाने की चाह, घर-गृहस्ती की जिम्मेदारियाँ और देश की पीड़ा अपने मन में संजोकर भी वे विचलित नहीं हुए थे, बल्कि बिहार विद्यापीठ से आई0ए0सी0 की परीक्षा में सम्मान सहित उतीर्णता प्राप्त की थी। यह वह समय था जब सारे देश में असहयोग आन्दोलन के स्वर गूँज रहे थे। देश की जवानी ब्रिटिश हुकूमत की ईंट-से-ईंट बजाकर अपना पौरूश आंकने पर तुली थी और लोग सरकारी नौकरियों तथा सरकार द्वारा दी गई उपाधियों की होली जलाकर बन्दे मारतम् के गीत गा रहे थे।
इस आन्दोलन के प्रवाह का जो प्रभाव राष्ट्रीय जीवन पर पड़ा, यह उसी सहज परिणति थी कि जयप्रकाश नारायण ने जनवरी 1921 में कॉलेज छोड़ दिया। ऐसे में इनके पास केवल एक ही सपना था कि देश कैसे स्वाधीन हो और स्वराज्य कैसे हासिल हो।
माता-पिता तथा नवविवाहिता पत्नी से विदा लेकर 1922 में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए अमेरिका चले गये थे। अमेरिका में वे सात वर्षां तक रहे। वहां वे बारी-बारी कैलीफोर्निया (बवले), इयोबा, बिस्कौन्सिन और ओहियो विश्वविद्यालय में अध्ययन करते रहे। उन्होंने स्तानतक की परीक्षा पास की और समाज शास्त्र में स्नातकोत्तर की उपाधि भी प्राप्त की। अमेरिका प्रवास का खर्च पूरा करने के लिए उन्हें खेतों में, कारखानों में और होटलों में काम करना पड़ा था।
अमेरिका में उनका सम्पर्क कुछ साम्यवादी विद्यार्थियों से हो गया था। मार्क्स तथा उनके अनुयायियों द्वारा लिखित साहित्य पढ़कर जयप्रकाश नारायण मार्क्सवाद में पूर्णतः दीक्षित हो गये और मार्सवादी बनकर 1929 में भारत लौटे। भारत लौटते ही वे राष्ट्रीय आन्दोलन में शामिल हो गये।
जयप्रकाश नारायण के अमेरिका प्रवास के दौरान प्रभावती जी गाँधी जी के आश्रम में रहती थीं। वे गाँधी जी और कस्तूरबा की प्यारी बेटी बन चुकी थीं। अमेरिका से लौटने के बाद जयप्रकाश नारायण गांधी और नहेरू की घनिष्ठ सम्पर्क में आए। जयप्रकाश नारायण नेहरू जी को बड़ा भाई मानते थे। उन दिनों नेहरू जी कांग्रेस के अध्यक्ष थे। उन्होंने जयप्रकाश नारायण को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस कमिटी के श्रमिक शोध विभाग में रख दिया। 1932 में जब द्वितीय सत्याग्रह आन्दोलन शुरू हुआ तो जयप्रकाश नारायण कांग्रेस के महामंत्री बन गए। प्रमुख कांग्रेसी नेताओं के गिरफ्तार होने के बाद उन्होंने एक भूमिगत कार्यालय की स्थापना की। भूमिगत रहकर वे कई महीनों तक देश के विभिन्न भागों में संघर्ष का संचालन करते रहे। अंग्रेजी सरकार ने उन्हें गिरफ्तार कर नासिक जेल में बन्द कर दिया।
इस अवधि में भारत के साम्यवादियों ने राष्ट्रीय संघर्ष से अपने को न केवल अलग रखा बल्कि आन्दोलन को पूंजीपतियों के हित में चलाया गया आन्दोलन कहकर उसकी निन्दा भी की। उन्हें विश्वास हो गया कि स्वतंत्रता का आन्दोलन साम्यवादी दल के नेतृत्व में सम्भव नहीं। इसलिए उन्हें एक ऐसे समाजवादी दल की स्थापना की आवश्यकता महसूस हुई जो स्वतंत्रता के लिए राष्ट्रीय आन्दोलन सफलतापूर्वक चला सके। काफी कांग्रेसजन इस चिंतन धारा के समर्थक थे। इस चिंतन के फलस्वरूप 1934 में कांग्रेस समाजवादी दल का गठन हुआ। 32 वर्ष की उम्र में ही जयप्रकाश नारायण ने इस दल के महामंत्री का दायित्व प्राप्त कर अखिल भारतीय ख्याति अर्जित कर ली। 1952 के आम चुनाव में समाजवादी दल को आशानुकूल सफलता नहीं मिली, किन्तु इससे जयप्रकाश नारायण हतोत्साहित नहीं हुए। उन्होंने समाज मानस वाले विरोधी दलों के एकीकरण का प्रयास किया और समाजवादी दल तथा किसान मजदूर प्रजा पार्टी का विलयन कर ‘‘प्रजा समाजवादी’’ दल का गठन किया।
1953 में नेहरू जी ने जयप्रकाश नारायण को सरकार में सम्मिलित होने के लिए आमंत्रित किया, परन्तु जयप्रकाश नारायण को सत्ता में आने का आकर्षण नहीं था, इसलिए उन्होंने आमंत्रण को अस्वीकार कर दिया और स्पष्ट कह दिया कि जबतक उन्हें यह विश्वास नहीं हो जाता कि सरकार तेजी से समाजवादी की ओर कदम बढ़ायेगी तबतक उसमें शामिल होने की उनकी रूचि नहीं है।
मार्क्सवाद से जयप्रकाश नारायण का अंतिम विच्छेद पूना में उनके इक्कीस दिनों के उपवास के बाद हुआ था। ज्यों-ज्यों मार्क्सवाद से जयप्रकाश नारायण का विकर्षण होता गया, गांधीवादी प्रभाव उन पर बढ़ता गया। जयप्रकाश नारायण गांधीवाद के निकट पहुंच चुके थे। पुराने घिसे-पीटे विचारों, रूढ़ियों और जातिवाद की कठोर सीमाओं में बंधकर चलना जयप्रकाश नारायण का गुण नहीं था। महात्मा गांधी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी संत विनोवा भावे द्वारा चलाये जा रहे भूदान आन्दोलन में वे 1952 में कूद पड़े। देश में व्याप्त राजनीतिक गतिविधियों से निराश होकर उन्होंने 1957 में आम चुनाव के बाद दलीय राजनीति से संबंध-विच्छेद कर लिया। उसके बाद वे भूदान आन्दोलन और समाज सेवा में लग गए। वे पूर्णतः सर्वोदयी बन गये। किसी भी समस्या के समाधान के प्रति जयप्रकाश नारायण का दृष्टिकोण सदा माननीय रहता था और मानवता की सीमाओं में रहकर ही सभी समस्याओं का समाधान ढूंढ़ा करते थे।
अक्तूबर, 1971 में चम्बल घाटी तथा बुन्देलखंड के लगभग चार-पांच सौ बागियों ने जयप्रकाश नारायण के व्यक्तित्व से प्रभावित होकर गांधी जी के चित्र के सामने अपनी बन्दूकें फेंक दी और स्वेच्छा से आत्म समर्पण कर दिया। जयप्रकाश नारायण के सामने आत्म समर्पण की यह मिसाल, दुनिया के इतिहास में बेजोड़ थी। आत्म समर्पण के बाद बागियों को सम्बोधित करते हुए उन्होंने कहा था- ‘‘मैंने भी अपनी जान आपकी जान के साथ तराजू पर रख दी है फिर भी यदि किसी को फांसी होगी तो मैं उपवास करके मर जाऊँगा।’’
1972 में आम चुनाव के बाद देश की राजनीति में भ्रष्टाचार के जिस नंगे नाच की तस्वीर राष्ट्रीय मंच पर देखने को मिली, उससे जयप्रकाश नारायण क्षुब्ध हो उठे, उनका दिल रो पड़ा।
सम्पन्न्ता, समानता और सहयोग वाली राजनीति की जगह फंड, फोर्स और फ्रॉड की राजनीति ने उनके हृदय को झकझोर दिया। समाज की घुटन, पीड़ा को जयप्रकाश नारायण ने एक चुनौती दी, जिसमें सारा देश एकजुट होकर संघर्षरत हुआ।
1974 में उन्होंने सम्पूर्ण क्रांति का नारा दिया। सम्पूर्ण क्रांति के अन्तर्गत समाज, राजनीति में व्याप्त भ्रष्टाचार के उन्मूलन का दृढ़ संकल्प अभिव्यक्त किया गया था। सम्पूर्ण क्रांति के स्वरूप को राष्ट्रव्यापी बनाने की दृष्टि से जयप्रकाश नारायण ने अनेक राज्यों का दौरा किया । उनका शरीर भले ही कमजोर था पर उनका संकल्प मजबूत था। उनकी मान्यता थी- ‘‘हिंसा, बेईमानी, भ्रष्टाचार आदि समाज के फोड़े हैं। समाज की आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक व्यवस्था में अनेक गलत मूल्य है। मूल्य बदले बिना समस्याओं का समाधान नहीं होगा। इसलिये समस्याओं के निराकरण के लिए उनकी जड़ तक जाना होगा। हमें सम्पूर्ण व्यवस्था को जड़ से दलने का प्रयास करना होगा।’’
जयप्रकाश नारायण के अथक प्रयास से केन्द्र में जनता पार्टी की सरकार बनी। जयप्रकाश नारायण को जनता पार्टी के घटकों के कलह और विवाद से गहरा आघात पहुंचा।
जेल से ही जयप्रकाश नारायण को किडनी की तकलीफ शुरू हो गई थी। वे काफी दिनों तक डाइलेसिस पर रखे गए। अन्ततः 8 अक्तूबर 1979 को पटना में उनका निधन हो गया।
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान योद्धा, सम्पूर्ण क्रांति का मसीहा लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने सेवा, त्याग, लगन और साधनामय जीवन के कारण जो विराट यश और अपूर्व गौरव अर्जित किया था, वह उनके विशाल एवं विलक्षण व्यक्तित्व के सर्वथा अनुरूप था। उनकी योग्यता, नम्रता, सच्चाई, सरलता और निस्पृहता की कहानी आज भी इतिहास के पत्रों में स्वर्णाक्षरों में अंकित है। बिहार की पुण्य सलिला भूमि को इस बात का गौरव है कि इसने जयप्रकाश नारायण जैसे रत्न को पैदा किया।