मन की बात

मन की बात

मृत्युंजय कुमार सिंह

वर्तमान समय में न्यूज़ में जो दृश्य दिख रहा है या न्यूज़ में पढ़ रहे है उससे काफ़ी भिन्न कहानी है। शहरों में इंसान डरावने तरीके से छटपटा रहा है।यहां लोग अपनों की ज़िंदगी बचाने के लिए दर-दर भटक रहे हैं, गिड़गिड़ा रहे हैं।सांस की परेशानी और होस्पिटल में बेड के अभाव या ज़रूरत की इलाज सामग्री जिंदगी के साँसें को रोक रही है। बहुत सारे पुलिसकर्मी और समाजिक मित्रों का फ़ोन सहायता के लिए आ रहा है। मुझे अब तनिक भी अच्छा नहीं लग रहा कि बार – बार अस्पतालों के मालिकों या फिर अपने कुछ सहयोगियों को फोन करना, क्योंकि वे भी असमर्थ है।यह सत्य है कि संसार में इंसानियत से बड़ा कोई धर्म नहीं है।कुछ मित्र हैं जो कहने पर पूरी कोशिश कर रहे हैं मदद करने और मरीज को बेहतर इलाज दिलवाने में, उनको मैं केवल धन्यवाद भी नहीं कर सकता क्योंकि उनका यह काम ऐसे औपचारिक धन्यवाद शब्दों से कहीं बड़ा और काफ़ी मूल्यवान है।कुछ दोस्त, कुछ डॉक्टर मित्र और मेरे कुछ सहयोगी साथ दिये है।ईश्वर उनको सदा सुखी रहने का आशीर्वाद दे।कल मित्रवत् सम्बंध पुलिस विभाग के वरीय अधिकारी को हाल समाचार के लिए अचानक फ़ोन किया।बताए की ममी और पापा दोनो प्राइवेट होस्पिटल में भर्ती है।माता जी की स्थिति ज़्यादा गम्भीर है।काफ़ी मस्कत और पुलिसिया प्रयास के बाद सुई मिला तो माँ को दिलाया है यह सब बताते हुए वे फ़ोन पर ही रोने लगे।मेरी भी आँखें भर आइ। हमने उनका हिम्मत बढ़ाया और साथ ही दो तीन वरीय पुलिस अधिकारी को फ़ोन कर बताया और उन लोगों से बोला की फ़ोन कर के उनको हिम्मत बढ़ाए । साथ ही एक मीडिया हाउस के सम्पादक भाई जो उनके भी मित्र है को बोला की उनको हिम्मत बढ़ाए।
कुछ दिनो में अनेको मित्र और सम्बंधी को हमने और आपने खोया है।जो दुनिया के खबरों में सायद नही है।उनके खोने का काफ़ी दर्द है।इस बार भी 95% कोरोना मरीज होम आइसोलेशन में स्वयं डाक्टर से पूछ कर इलाज कर के ईश्वर कृपा से ठीक हो रहे हैं।
लोगों की परेशानी और पीढ़ा सुन कर मन अशांत और विचलित हो जा रहा है।फिर भी संस्कार से जुड़ा हु। ह्रदय से जनता को चरणवंदन करता हु कि असहनीय पीढ़ा में भी धैर्य और अनुशासन की मिशाल पेश किये है।सभी बिहारी जनता आप सदा पूजनीय रहे है और रहेंगे।
अंत में एक उक्ति जो सदियों से चली आ रही है:-
*झोपड़ी में आग लगला पर कुवाँ खोदाई, तब जाके आग बुझावल ज़ाई।*
फेसबुक से साभार

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