खंडित रूद्राक्ष धारण नहीं करना चाहिए

जितेन्द्र कुमार सिन्हा, पटना ::

रूद्राक्ष धारण करने वालों को अपने नित्य जीवन में, अपने आचरण और अपने कर्मों की ओर भी ध्यान देना चाहिए। उन्हें सदाचरण, सत्कर्म अपनाना चाहिए, भगवान शिव के पूजन में श्रद्धापूर्वक मन लगाना चाहिए, दुष्कर्मों को यत्नपूर्वक जीवन से निकाने का प्रयत्न करना चाहिए, तब ही रूद्राक्ष धारण करने का लाभ मिलेगा।

पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, जिस घर में रूद्राक्ष की नित्य पूजा की जाती है, वहाँ अन्न, वस्त्र, धन, धान्य आदि, किसी भी वस्तु की कमी नहीं होती है। यानि उस घर में धन का साम्राज्य रहता है। रूद्राक्ष धारण करने वाले को, किसी भी तरह की गम्भीर, शारीरिक एवं मानसिक बीमारियाँ नहीं होती है, बल्कि रूद्राक्षधारी असाध्य गम्भीर रोग से भी, मुक्ति पा लेता है। इसलिए रूद्राक्ष धारण करने वालों को शिवस्वरूप की प्राप्ति होता है।

शिवपुराण, स्कंदपुराण, देवीभागवतपुराण में रूद्राक्ष के महत्व को बताया गया है। शिवपुराण में बताया गया है कि भगवान शिव को रूद्राक्ष सर्वाधिक प्रिय है और रूद्राक्ष दर्शन, स्पर्श और जाप से पापों का नाश होता है। रूद्राक्ष की महत्ता को देखते हुए आजकल भारतीय अध्यात्म का अनुशरण करने वाले अनेक देशों में रूद्राक्ष की लोकप्रियता दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है।

रूद्राक्ष के संबंध में सर्वविदित है कि भारत के पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय इन्दिरा गाँधी भी 108 एकमुखी रूद्राक्ष की माला सदैव धारण करती थी। फलस्वरूप उन्होंने काफी समय तक एक छत्र शासन की, लेकिन जब वह माला टूटी तो उनके राजनीतिक जीवन में भारी उतार-चढ़ाव आया। यह कहा जाता है कि उन्हें यह माला तत्कालीन नेपाल नरेश ने भेंट स्वरूप दिया था।

रूद्राक्ष धारण का आध्यात्मिक महत्त्व के साथ वैज्ञानिक महत्त्व भी है। वैज्ञानिकों का मानना है कि रूद्राक्ष में चुम्बकीय आकर्षण और विद्युतीय शक्ति विद्यमान है, जिससे रूद्राक्ष धारण करने वालों को शारीरिक दृष्टि से अनुकूल प्रभाव पड़ता है। इसलिए अब चुम्बकीय लाभ के लिए भी रूद्राक्ष का उपयोग किया जाने लगा है।

रूद्राक्ष के संबंध में बताया जाता है कि जो असली रूद्राक्ष होते हैं वो गोलाकार होता है। रूद्राक्ष पर थोड़ी-थोड़ी दूरी पर सीधी खड़ी स्पष्ट धारियाँ बनी होती है, जो इसके एक छोर से दूसरे छोर तक स्पष्ट दिखाई देती है। असली रूद्राक्ष को पानी में डालने से पानी पर रूद्राक्ष पानी में डूब कर उसके तल में जाकर बैठ जाता है। जो रूद्राक्ष पानी में डूब कर पानी के तल में नहीं बैठता है और पानी में तैरने लगता है तो उसे भद्राक्ष रूद्राक्ष कहते है। असली रूद्राक्ष को जब तांबे के दो सिक्कों के मध्य में रखकर हल्का सा दबाव डालने पर वह तत्काल दिशा परिवर्तित कर लेता है, जबकि नकली रूद्राक्ष यथावत दोनों सिक्कों के बीच दबा रहता है। असली रूद्राक्ष में प्राकृतिक तौर पर छोटा छिद्र होता है, जिसमें पतला धागा ही पिरोया जा सकता है।

रूद्राक्ष स्निग्ध, उभरे दानों वाला अच्छा कहलाता है। खंडित रूद्राक्ष को अशुभ माना गया है। इसलिए खंडित रूद्राक्ष नहीं पहनने का परामर्श दिया जाता है। कहने का तात्पर्य है कि वैसा रूद्राक्ष ही पहना चाहिए जिसके दानों में उभार हो और उसमें धागा आसानी से पिरोया जा सके तथा रूद्राक्ष कहीं से भी टूटा न हो। असली रूद्राक्ष आकार में छोटा, रोएं से युक्त, चिकना, उभरे दोनों वाला होता है। इस रूद्राक्ष में इतना बारीक छिद्र होता है कि पतले से पतले धागे को मुश्किल से पिरोया जा सकता है।

रूद्राक्ष धारण करने की शास्त्रों में अनेक विधियाँ बताई गयी है, लेकिन सामान्यतः प्रत्येक रूद्राक्ष को सोमवार के दिन प्रातःकाल नित्य कर्म से निवृत होकर शिव मंदिर जाकर अथवा अपने घर के पवित्र कक्ष में बैठकर, गंगाजल और कच्चे दूघ से धोकर सही और संबंधित मंत्रों का जाप कर धारण करना चाहिए। रूद्राक्ष को लाल, काले या सफेद धागे में अथवा सोने या चाँदी की चेन में डालकर धारण किया जा सकता है। यदि कोई व्यक्ति रूद्राक्ष के सही और संबंधित मंत्रों का शुद्ध उच्चारण करने में असमर्थ हो तो, पंचाक्षर मंत्र ‘‘ओम नमः शिवाय’’ का जाप करते हुए रूद्राक्ष पर बेलपत्र से 108 बार गंगाजल छिड़क कर भी उसे धारण किया जा सकता है। एक बार अभिमंत्रित किये गये रूद्राक्ष को धारण करने के एक वर्ष बाद उसे पुनः अभिमंत्रित कर लेना चाहिए। ऐसे तो साधारणतया रूद्राक्ष को बिना मंत्रादि का उच्चारण किये भी धारण किया जा सकता है, किन्तु यदि शास्त्रीय विधि से रूद्राक्ष को अभिमंत्रित करके धारण किया जाय तो अतिउत्तम होता है। मंत्र द्वारा रूद्राक्ष को अभिमंत्रित कर लेने से उसमें विलक्षण शक्ति आ जाती है तथा यह अभिमंत्रित रूद्राक्ष धारक को अधिक फल प्रदान करता है।
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