राष्ट्रहित के लिये कायस्थ समाज प्रतिबद्ध

राष्ट्रहित के लिये कायस्थ समाज प्रतिबद्ध : राजीव रंजन प्रसाद

जीकेसी के सात मूलाधार का अनुकरण कर कार्यों को धरातल पर लाने के लिए संकल्पित..श्वेता सुमन

भागलपुर का कालजेयी इतिहास, कला संस्कृति और साहित्य संजोने के लिए जीकेसी के माध्यम से यह विश्व स्तर पर सक्रिय होगा…तरुण घोष

भागलपुर में एक समृद्ध अवसर है, हम उसे धरातल पर लाने का सफल प्रयास करेंगे…अभय घोष सोनू

राष्ट्र की सांस्कृतिक अक्षुण्णता को बरकरार रखने के लिए हर संभव प्रयास करेंगे…प्रणब दास

जितेन्द्र कुमार सिन्हा, पटना (भागलपुर), 02 अगस्त ::

अंतरराष्ट्रीय संगठन जीकेसी (ग्लोबल कायस्थ कांफ्रेंस) कला संस्कृति प्रकोष्ठ की राष्ट्रीय सचिव एवं गो ग्रीन की राष्ट्रीय -सह- प्रभारी श्वेता सुमन के नेतृत्व में कृष्णा कलायन कला केंद्र, भागलपुर में बैठक का आयोजन किया गया।

बैठक में जीकेसी के ग्लोबल अध्यक्ष राजीव रंजन प्रसाद, जीकेसी कला संस्कृति प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय संयुक्त सचिव तरुण घोष, राजनीतिक प्रकोष्ठ के संयुक्त सचिव अभय सोनू घोष , प्रणब दास, बिहार सचिव संजय सिन्हा, भागलपुर जिला अध्यक्ष चंदन सहाय एवं उषा सिन्हा ग्राम दीदी, मीतू मित्रा, अंजली दास ने भाग लिया। कार्यक्रम की शुरुआत पदाधिकारियों द्वारा भगवान चित्रगुप्त को माल्यार्पण कर एवं दीप प्रज्वलन कर किया गया। शौर्य द्वारा गणेश वंदना की प्रस्तुति की गई और संचालन श्वेता सुमन ने किया।

बैठक में जीकेसी के सात मूलाधार सेवा, सहयोग, सम्प्रेषण, सरलता, समन्यवय, सकारात्मकता, एवं संवेदनशीलता पर चर्चा की गयी और जीकेसी के सभी पदाधिकारी एवं सदस्य इस मूलाधार सेवा पर कार्य करेंगे।
पर्यावरण संरक्षण गो ग्रीन के लिए भी सकारात्मक कदम और योजनाओं को लागू किया जाएगा। बैठक में कला संस्कृति एवं पर्यावरण से संबंधित कार्यों को धरातल पर लाने का संकल्प लिया गया।

जीकेसी के ग्लोबल अध्यक्ष राजीव रंजन प्रसाद ने कहा कि जीकेसी विश्व स्तर पर अपने सभी पदाधिकारियों के साथ मुस्तैदी से अपने मूल आधारों पर काम कर रहा है। संगठन से जुड़े सभी चित्रांश शक्तियाँ एकजुट होकर कार्य करने के लिए प्रतिबद्ध है।

उन्होंने भागलपुर की संस्कृति के बारे में कहा कि गुणों की खान है भागलपुर की धरती। महाभारत काल से ही समृद्ध है, दानवीर कर्ण की यह भूमि जिसने एक से एक साहित्यकार, कलाकार, नेता ,समाजसेवी, शिक्षक और समाजसेवी दिए।भारत के उत्थान में हम अंगप्रदेश के योगदान को नकार ही नही सकते। आज भी यहां की साहित्य संस्कृति उतनी ही चमकदार है।

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