बिहार में चल रही लॉक डाउन क्या सही है?
जितेन्द्र कुमार सिन्हा, पटना, 09 मई ::
कोरोना संक्रमण चेन को रोकने के लिए लॉकडाउन की अवधि में अत्यावश्यक सुबिधाओं को छोड़ कर सभी तरह का प्रतिबंधित होना चाहिए। बिहार में कोरोना संक्रमण से बचने के लिए लॉकडाउन चलाई जा रही है। लॉक डाउन की अवधि में राज्य सरकार गाइडलाइंस भी जारी की है और उसे पालन कराने के लिए प्रशासन मुस्तेदी से काम कर रही है।
लॉक डाउन की अवधि तक राज्य सरकार के सारे कार्यालय बंद कर दिये गये हैं, लेकिन जिला प्रशासन, पुलिस, जल आपूर्ति, बिजली, स्वास्थ्य, दूरसंचार , डाक विभाग जैसी सेवाओं के दफ्तर को लॉक डाउन से छूट दी गई है। वहीं
अस्पताल, जांच लैब औऱ दवा दुकान को भी इससे मुक्त रखा गया है।
लॉक डाउन में सभी दुकानें और गैर सरकारी कार्यालय भी बंद रखे गए हैं। परन्तु बैंकिग, बीमा, ATM, औद्योगिक इकाई, पेट्रोल पंप, प्रिंट औऱ इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को इससे छूट दी गई है।
इसी तरह किराना यानि खाने-पीने के सामान की दुकानें, फल औऱ सब्जी की दुकानें, मांस-मछली, दूध औऱ पीडीएस की दुकानें सुबह 7 बजे से लेकर 11 बजे तक के लिए लॉक डाउन से मुक्त रखा गया है। लेकिन सड़कों और सार्वजनिक स्थानों पर आना-जाना पूरी तरीके से प्रतिबंधित है। आवश्यक काम से लोग घर से बाहर निकल सकते हैं लेकिन उसके लिए उन्हें बाजिव कारण का सबूत अपने पास रखना होगा। सभी प्रकार के वाहनों का परिचालन बंद रहेगा। लेकिन हवाई जहाज, रेल या बस से बाहर से बिहार में आने वालों के लिए पब्लिक ट्रांसपोर्ट जारी है, जिसमें यात्रियों की बैठने की क्षमता सिर्फ 50 फीसदी है।
राज्य सरकार ने एयरपोर्ट या रेलवे स्टेशन आने जाने वाले वाहनों पर भी रोक नहीं लगाई है। लेकिन इसके लिए यात्री के पास टिकट होना चाहिये। आपातकालीन सेवा से जुड़े लोगों की आवाजाही पर भी रोक नहीं है। यहाँ तक कि जिला प्रशासन जरूरी काम के लिए वाहनों को ई पास भी जारी करेगा, उन पर रोक नहीं रहेगी।
राज्य सरकार अंतर्राज्यीय मार्ग से जा रहे निजी वाहनों पर रोक नहीं लगाई है। जबकि सभी स्कूल, कॉलेज, कोचिंग औऱ दूसरे शिक्षण संस्थान बंद कर दी है। यहाँ तक कि मई महीने की 15 तारीख तक बिहार में कोई परीक्षा नहीं होगी। रेस्टोरेंट और खाने-पीने की दुकानें खुल रही है, लेकिन वहां बैठ कर खाने की व्यवस्था नहीं है। सिर्फ होम डिलेवरी के लिए ही खाने-पीने की दुकानों को खोला जा रहा है।
राज्य सरकार ने लॉक डाउन की अवधि तक सभी धार्मिक स्थल, सभी सिनेमा हॉल, शॉपिंग मॉल, क्लब, जिम, स्वीमिंग पूल, स्टेडियम, पार्क पूरी तरह से बंद कर दिया है। सार्वजनिक स्थल पर किसी तरह का कोई आयोजन नहीं हो रहा है। यहाँ तक कि शादी-ब्याह में कोई बैंड बाजा या बारात भी नही हो रहा है।
राज्य सरकार ने लॉकडाउन के दौरान गरीबों को सुविधा देने के उद्देश्य से उन्हें मई महीने का राशन का अनाज पीडीएस दुकानों से मुफ्त देगी। वहीं जिलों में सामुदायिक किचेन चला रही है जिसमें लोगों को मुफ्त खाना दिया जा रहा है। राज्य सरकार ने गरीबों को ग्रामीण इलाके में मनरेगा के तहत काम देने का भी एलान किया है।
अब विचारणीय प्रश्न है यह है कि राज्य सरकार कोरोना संक्रमण की चेन को रोकना चाहती या लॉक डाउन के बहाने कोरोना संक्रमण को जिंदा रखना चाहती है? जड़ा सोंचिये, प्रतिदिन किराना यानि खाने-पीने के सामान की दुकान, मांस-मछली, दूध और पीडीएस की दुकानें सुबह 7 बजे से 11 बजे तक खुली रहेगी तो लोगों की भीड़ हो रही है या नही? यदि भीड़ हो रही है तो कोरोना संक्रमण की चेन रुकेगा या बढ़ेगा? उसी तरह राज्य सरकार ने एयरपोर्ट या रेलवे स्टेशन आने जाने वाले वाहनों पर रोक नहीं लगाई है। हवाई जहाज, रेल या बस से बाहर से राज्य में आने वालों के लिए पब्लिक ट्रांसपोर्ट जारी रखा है। क्या इसे जारी रखने से कोरोना संक्रमण चेन रुकेगा या बढ़ेगा?
अब यह भी विचारणीय प्रश्न है कि जब सरकार प्रतिदिन दुकान आदि खोल रही है तो फिर मुफ्त अनाज बांटना, सामुदायिक रसोइया खोलने का औचित्य क्या है? इन जगहों पर भी लोगों की जमावड़ा होगी ही तो कोरोना संक्रमण का चेन कैसे रुकेगा?
कभी कभी सोचने पर विवश होना पड़ता है कि कहीं आयकर जो सामान्य नागरिकों द्वारा दी जाती है, का दुरुपयोग करने के लिए लॉक डाउन का दिखावा तो नही है? ऐसी स्थिति में संक्रमण से मरने बाले के परिजन और सरकार ही समझ सकती है। क्योंकि जब लॉक डाउन पूरी तरह से है ही नही। सरकार को चाहिए कि संक्रमित लोगों के लिए दवा, एम्बुलेंस, ऑक्सीजन, अस्पताल में सीटों की कमी पर ध्यान केन्द्रित कर नागरिक सुबिधाओं की ओर पूरी पहल करें और अगर संक्रमण चेन रोकना हो तो कम से कम एक सप्ताह का अत्यावश्यक सुविधाओं को छोड़कर पूर्ण लॉक डाउन की पहल करें।