25 दिसम्बर को हिन्दुओं का बड़ा दिन और ईसाइयों का क्रिसमस
जितेन्द्र कुमार सिन्हा, पटना :: ईसाइयों का सबसे बड़ा त्योहार माना जाता है क्रिसमस। इसे क्रिश्चियन समुदाय के लोग प्रत्येक वर्ष 25 दिसंबर को मनाते हैं। उनलोगों का मानना है कि इसी दिन प्रभु ईसा मसीह या जीसस क्राइस्ट का जन्म हुआ था, इसलिए इसे बड़ा दिन कहते हैं।भारत में इस दिन को लोग बड़ा दिन के नाम से भी जानते है। क्रिसमस के अवसर पर लगभग सभी देशों में इस दिन छुट्टी (अवकाश) रहता है। क्रिसमस के अवसर पर सभी चर्च को रंग बिरंगी रोशनियों से सजाया जाता है और सजावट में मुख्य रूप से प्रदर्शित क्रिसमस ट्री, जन्म के झांकी आदि शामिल होता है।
क्रिसमस से जुड़ी एक लोकप्रिय परंतु काल्पनिक शख्सियत है सांता क्लॉज़ (जिसे क्रिसमस का पिता भी कहा जाता है) जिसे अक्सर क्रिसमस के अवसर पर बच्चों के लिए तोहफे लाने के साथ जोड़ा जाता है। बच्चों के लिए सबसे ज्यादा आकर्षण का केंद्र होता है सांताक्लॉज, जो लाल और सफेद कपड़ों में बच्चों के लिए ढेर सारे उपहार और चॉकलेट्स लेकर आता है।जबकि यह एक काल्पनिक किरदार होता है जिसके प्रति बच्चों का लगाव होता है। ऐसा कहा जाता है कि सांताक्लाज स्वर्ग से आता है और लोगों को मनचाही चीजें उपहार के तौर पर दे जाता है। यही कारण है कि कुछ लोग सांताक्लाज की वेशभूषा बच्चों को पहनाकर बच्चों को खुश कर देते हैं।इस त्योहार में केक का विशेष महत्व है। केक क्रिसमस का विशेष व्यंजन है, इसके बिना क्रिसमस अधूरा माना जाता है।
एन्नो डोमिनी काल प्रणाली के अनुसार, यीशु का जन्म, 7 से 2 ई.पू. के बीच हुआ था। 25 दिसम्बर को यीशु मसीह के जन्म दिन मनाने की कोई वास्तविक जानकारी किसी को नहीं हैं। ऐसा लगता है कि इस तिथि को रोमन पर्व या मकर संक्रांति से जोड़ कर, स्थापित करने के लिए चुना गया है।
क्रिसमस के अवसर पर सभी चर्च को विशेष रूप से सजाया जाता है और प्रभु यीशु मसीह की जन्म गाथा को नाटक के रूप में प्रदर्शित किया जाता है। कई जगह क्रिसमस की पूर्व रात्रि पर गिरजाघर में रात्रिकालीन प्रार्थना सभा आयोजित की जाती है जो रात के 12 बजे तक चलती है। ठीक 12 बजे लोग अपने प्रियजनों को क्रिसमस की बधाइयां देते हैं और खुशियां मनाते हैं। क्रिसमस की सुबह गिरिजाघरों में विशेष प्रार्थना सभा भी आयोजित की जाती है। कई जगह क्रिसमस के दिन ईसाई समुदाय द्वारा जुलूस निकाला जाता है। जिसमें प्रभु यीशु मसीह की झांकियां प्रस्तुत की जाती हैं। अब सिर्फ ईसाई समुदाय ही नहीं बल्कि अन्य धर्मों के लोग भी इस दिन चर्च में मोमबत्तियां जलाकर प्रार्थना करने लगे हैं।
क्रिसमस मूलरूप से ईसाई लोगों का पर्व हैं, लेकिन अज्ञानतावश आजकल गैर ईसाई लोग भी इसे एक धर्मनिरपेक्ष, सांस्कृतिक पर्व मानकर उत्सव के रूप मे मनाते हैं। इस दौरान उपहारों का आदान प्रदान, सजावट के सामानों की खरोद-फरोक्त करतेहै और छुट्टी के दिन को मौजमस्ती में बिताते है।
अधिकतर देशों में क्रिसमस जूलियस कैलेंडर के अनुसार 25 दिसम्बर को मनाया जाता है। लेकिन जर्मनी और कुछ अन्य देशों में क्रिसमस की पूर्व संध्या यानि 24 दिसम्बर को ही क्रिसमस से जुड़े समारोह शुरु हो जाते हैं। ब्रिटेन और अन्य राष्ट्रमंडल देशों में क्रिसमस के बाद अगले दिन यानि 26 दिसम्बर को बॉक्सिंग डे के रूप मे क्रिसमस मनाते है। कुछ कैथोलिक देशों में क्रिसमस को सेंट स्टीफेंस डे या फीस्ट ऑफ़ सेंट स्टीफेंस भी कहा जाता हैं। जबकि आर्मीनियाई अपोस्टोलिक चर्च में 6 जनवरी को क्रिसमस मनाया जाता है।
बाईबिल के अनुसार जर्मन के ईसाइयों की मान्यता है कि यीशु “मसीहा” मरियम (Virgin Mary) के पुत्र के रूप में पैदा हुआ था। मैथ्यू की धर्म शिक्षा गोस्पेल ऑफ़ मैथ्यू में दी गई है और दी ल्यूक की धर्मं शिक्षा गोस्पेल ऑफ़ लुके में, विशेषकर येशु मरियम कों उनके पति सेंट जोसेफ के मदद से बेतलेहेम (Bethlehem) में मिला था। लोकप्रिय परम्परा के अनुसार इनका जन्म एक अस्तबल में हुआ था, जो हर तरफ़ से जानवरों से घिरा था। हालांकि बाइबल में अस्तबल और जानवरों का कोई जिक्र नही है।जबकि, एक “व्यवस्थापक” ल्यूक में लिखा है कि “वह कपड़ों में लिपटा हुआ और उसे एक टोकरी में रखा हुआ था।
210 साल पहले, अंग्रेजों ने जब भारत में अपनी पकड़ मजबूत कर ली थी और भारत में ईसाई धर्म फैलाना चाहता था, तो उन्होंने 25 दिसम्बर को जिसे अलग-अलग देशों में गज़ के नाम से पुकारा जाता था, भारत और इसके पड़ोसी देशों में इसे बड़ा दिन और महत्वपूर्ण दिन माना जाता था, को हीं अपनी पकड़ मजबूत करने और ईसाई धर्म को फैलाना के लिये इस दिन का चयन किया था, ताकि वहां की संस्कृति, सभ्यता, धर्म पर अपनी संस्कृति, सभ्यता और धर्म को कायम किया जा सके। भारत के हिन्दुओं में 25 दिसम्बर से होने वाली बड़ा दिन का बहुत महत्व है, जिसे नकारा नही जा सकता था। शायद इसी लिये ईसाई धर्म के लोगों ने क्रिसमस को बड़ा दिन कहा जाने लगा ताकि भारत के हिन्दू इसे आसानी से स्वीकार कर लें।