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Sunday, April 27, 2025
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अक्षय तृतीया के दिन किये गए दान का कभी क्षय नहीं होता है

जितेन्द्र कुमार सिन्हा, पटना, 21 अप्रैल ::

वैशाख की शुक्ल पक्ष तृतीया को ग्रीष्म ॠतु में अक्षय तृतीया मनाया जाता है। इस वर्ष अक्षय तृतीया 22 अप्रैल (शनिवार) को होगी। साढ़े तीन मुहूर्तो में से एक मुहूर्त माने जाने वाला यह एक मुहूर्त है। इसी दिन से त्रेतायुग का प्रारंभ हुआ । इस दिन से एक कलह काल का अंत और दूसरे सत्‍य युग का प्रारंभ, ऐसी संधि होने के कारण अक्षय तृतीया के संपूर्ण दिन को मुहूर्त कहते हैं । मुहूर्त केवल एक क्षण का हो तो भी संधि काल के कारण उसका परिणाम 24 घंटे रहता है इसीलिए यह दिन संपूर्ण दिन शुभ माना जाता है, इसीलिए अक्षय तृतीया इस दिन को साढे तीन मुहूर्त में से एक मुहूर्त माना जाता है। मान्यता है कि अक्षय तृतीया त्रेता युग का प्रारंभदिन है । इस तिथि को हयग्रीव अवतार, नर-नारायण प्रकटिकरण और परशुराम अवतार हुआ है। इस तिथि को ब्रह्मा और विष्‍णु की एकत्रित तरंगें उच्‍च देवताओं के लोक से पृथ्‍वी पर आती हैं। इस कारण पृथ्‍वी की सात्‍विकता बढ़ जाती है।

अक्षय तृतीया के दिन पवित्र स्नान, यज्ञ, हवन, तिल तर्पण, उदकुंभ दान, मृत्तिका पूजन, धार्मिक कृतियां करने से आध्‍यात्‍मिक लाभ होते है और देव एवं पितरों को उद्देश्‍य कर जो कर्म किए जाते हैं वे सब अक्षय होते हैं। भविष्यपुराण, मत्स्यपुराण, पद्मपुराण, विष्णुधर्मोत्तर पुराण, स्कन्दपुराण अनुसार अक्षय तृतीया में शुभ कार्य करने में श्रेष्ठ फल मिलता है। वैशाख मास भगवान विष्णु को अतिप्रिय है इसलिए भगवान विष्णु के अवतार भगवान परशुराम की उपासना की जाती है ।

स्कन्दपुराण के अनुसार मनुष्य अक्षय तृतीया को सूर्योदय काल में प्रातः स्नान कर भगवान विष्णु , भगवान परशुराम, भगवान कृष्ण की पूजा करके कथा सुनने हैं तो वह मोक्ष के भागीदार होते हैं और पुण्यकर्म के कारण भगवान की कृपा से अक्षय फल प्राप्त होते हैं। भविष्यपुराण के मध्यमपर्व के अनुसार वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया को गंगाजी में स्नान करने वाले लोग सब प्रकार के पापों से मुक्त हो जाता है।

मान्यता है कि गुड़ और कर्पूर से युक्त जल दान करने वाले पुरुष ब्रह्मलोक में पूजित होते है। बुधवार और श्रवण से युक्त तृतीया में स्नान और उपवास करनेसे अनंत फल प्राप्त होता हैं। मदनरत्न के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण युधिष्ठर से कहते हैं कि हे राजन इस तिथि को किए गए दान एवं हवन का क्षय नहीं होता है, इसलिए हमारे ऋषि-मुनियों ने इसे ‘अक्षय तृतीया’ कहा है। इसलिए इस तिथि को भगवान की कृपादृष्टि पाने और पितरों के लिए की गई विधियां, अक्षय- अविनाशी होती हैं। मान्यता है कि अक्षय तृतीया के दिन किये गए दान का कभी क्षय नहीं होता, इसलिए इस दिन किए गए दान से पुण्‍य संचय बढ़ता है। दान कई प्रकार का होता है जिसमें धन का दान, तन का दान, मन का दान प्रमुख है।

सर्वविदित है कि अक्षय तृतीया के दिन केसर और हल्दी से देवी लक्ष्मी की पूजा करने से आर्थिक परेशानियों में लाभ मिलता है। इस दिन सोने की चीजें खरीदी जाती हैं, इससे बरकत आती है। अक्षय तृतीया के दिन 11 कौड़ियों को लाल कपडे में बांधकर पूजा स्थान में रखने से देवी लक्ष्मी आकर्षित होती है। देवी लक्ष्मी के समान ही कौड़ियां समुद्र से उत्पन्न हुई हैं। इनका प्रयोग तंत्र मंत्र में भी किया जाता है। अक्षय तृतीया के दिन घर में पूजा स्थान में एकाक्षी नारियल स्थापित करने से भी देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है। अक्षय तृतीया में भगवान विष्णु के 8 अवतार में भगवान परशुराम एवं माता अन्नपूर्णा का जन्म तथा माता गंगा का अवतरण शामिल है।

तिल सात्‍विकता का और जल शुद्ध भाव का प्रतीक है। इसलिए तिल और जल अर्पण करने से साधक का अहंकार नहीं बढता है। अक्षय तृतीया को पूर्वज पृथ्‍वी के निकट आने के कारण मानव को अधिक तकलीफ होने की संभावना बनी रहती है। मानव पर जो पूर्वजों का ऋण है उसको उतारने के लिए मानव को प्रयत्न करना चाहिए, इसलिए अक्षय तृतीया को पूर्वजों को सद्गति मिलने के लिए तिल तर्पण करना चाहिए।

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