खुशी में 5 दीपक जलाते हैं और दुख में अंधेरा रखते है

खुशी में 5 दीपक जलाते हैं और दुख में अंधेरा रखते है

जितेन्द्र कुमार सिन्हा, पटना, 01जनवरी, 2021 :: हमारे यहाँ ज्योति और प्रकाश का एक खास महत्त्व होता है। हमलोग खुशी में 5 दीपक जलाते हैं और दुख में अंधेरा रखते हैं। हमारी संस्कृति हमे सिखाता है और संस्कार हमें उस पर चलना सिखाता है। हमारे यहाँ जब भी शुभ कार्य होता है, तो दीपक जलाते हैं और अपने देवता को विशेष कर मोतीचुर लड्डू अर्पित करते हैं। मोतीचुर लड्डू जो एकता का प्रतीक है इसे परसादी के रुप में लोगों को बांटते है। यह शुभ और खुशी का प्रतीक माना गया है, क्योंकि मोतीचुर को बांध कर लड्डू का स्वरुप दिया जाता है। इससे यह सन्देश मिलता है कि हर शुभ क्षण को हम एक साथ मिलकर मनायें, इससे आनंद और खुशियाँ बढ़ जाती है। कहने का उद्देश्य यह है कि इसमें एकता और एक जुटता का सन्देश छिपा रहता है।

लेकिन आज क्या हो रहा है, लोग आधुनिक युग के नाम पर पाश्चात्य सभ्यता का अनुकरण करने में लगे हैं। उत्सव छोटा हो या बड़ा, हर उत्सव में केक काटा जाने लगा है। जबकि हमारी संस्कृति में काटना वर्जित माना जाता है। अब देखा जाय, काटने वाले ने केक काटा और अपना हिस्सा अलग कर लिया। अब वो उसे खुद खाये या अपने किसी खास प्रिय को खिलाये तथा बाकी बचा खुचा जिसे खाना हो खाये या मुंह में मले, उससे उसका ( काटने बाले का) कोई लेना देना नहीं रहता है। यही वजह है कि आज हमलोग एकाकी और सीमित होते जा रहे हैं।

अव देखिए हमलोग जन्म दिन हो या कोई अन्य उत्सव तो केक जरूर काटते हैं और केक काटने की प्रक्रिया क्या होता है। हमलोग पहले केक पर मोमबत्ती जलाते हैं और फिर उस मोमवत्ती को खुद फूंक कर बुझा देते हैं। जबकि यह हमलोगो की संस्कृति के बिलकुल विपरीत है। क्योंकि हमारे यहाँ यदि दिया जलाया जाए और वो दिया बुझ जाए तो इसे अपसगुन माना जाता है और किसी अनजानी अनहोनी होने की ओर इशारा समझा जाता है। लेकिन आज का समाज दिया जलाने में नहीं उसे बुझाने को खुशी का पर्याय मानने लगा है।

आज नववर्ष (नया साल) का जश्न मनाया जा रहा है। नये साल का स्वागत ही हमलोग 31दिसम्बर की आधी रात को अंधेरा करके मनाते है; भले उसके बाद पटाखे या आतिशबाजी करें। लेकिन नये साल का प्रवेश तो अंधकार में ही होता है। शायद यही वजह है कि हम कही न कही, अंधेरे में भटक गये हैं। हमें सही राह नहीं मिल पा रहा है। प्रकाश को ज्ञानपुंज कहा जाता है और अंधकार को अज्ञान। लेकिन आज हमलोग अज्ञानता को हीं गले लगा रहे हैं।

लगभग हर जगह नये साल का जश्न हुआ, केक कटे, अंधेरा किया गया. फिर अचानक रोशनी की गई और सब चीखने लगें Happy New Year. फिर सैम्पेन और दारु की बोतलें खुली और न जाने कितने जीवों की हत्या कर बनाया गया भोजन परोसा गया। यानि साल की शुरुआत ही हम पाप कर्म से करते है। अब दीखिए चीन में इसी तरह पापकर्म होने के कारण पिछले साल कोरोना वायरस का जन्म हुआ और वर्ष 2020 में इसकी चपेट से सारी दुनिया और मानवता कराह उठी। सारी दुनिया लॉकडाउन और वायरस के भय से घर में दुबक गयी थी। ऐसे अभी भी यह खतरा पूरी तरह टला नहीं है। टीके की खोज जारी है। पूरी दुनिया में सबसे कम मौत दर भारत में रहा… क्योंकि हमलोगो की संस्कृति और खानपान के चक्कर में यह वायरस उलझकर रह गया। इसका मुख्य कारण भारतीय ॠषि मुनीयों द्वारा प्रचलित खानपान, गर्म पानी और आयुर्वेदिक काढ़ा का प्रयोग है। इसके उपयोग से करोड़ो लोग कोरोना पोजीटिव होने के बावजूद ठीक हो गये। सारी दुनिया यह देखकर दंग रह गई और हमारा अनुकरण करने पर मजबूर हो गयी।

हमलोग कब सुधरेंगे। सुधरने के लिए आवश्यक है की हमलोगो को संकल्पित होना होगा। भारतीय संस्कृति के अनुरुप शाकाहार अपनाते हुए गुरुकुल शिक्षा पद्धति को पुन: अंगीकृत करेंगे तथा आर्यन जीवन पद्धति को शाश्वत सत्य मान स्मार्ट सिटी की जगह स्मार्ट विलेज को विकसित करेंगे ! क्योंकि स्मार्ट सिटी के फ्लैटों में गाय और बुजुर्गों के लिए कोई प्रावधान नहीं है। भारतीय संस्कृति में गौ सेवा एवं बुजुर्गो के आशीर्वाद के अभाव में मोक्ष प्राप्ति असंभव है !

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