महिला सशक्तिकरण की मिसाल थी सावित्री बाई फुले : डा. नम्रता आनंद
जितेन्द्र कुमार सिन्हा,पटना, 04 जनवरी ::
दीदीजी फाउंडेशन ने राजधानी पटना में सावित्रीबाई फुले की जयंती के अवसर पर 03 जनवरी (सोमवार) को नारी रत्न सम्मान समारोह का आयोजन किया, जिसमें समाज में अलग-अलग क्षेत्र में उत्कृष्ट काम कर रही 09 महिला शक्तियों को सम्मानित किया गया। सम्मानित की गयी महिला शक्तियों में रत्ना गांगुली, मीनाक्षी सिन्हा, उर्वशी सिन्हा, सृष्टि सिन्हा, मेघाश्री अंजुम, नायशा टाकिया, दिव्या, आदया शक्ति, निहारिका शामिल हैं। कार्यक्रम की शुरूआत सावित्री बाई फूले के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित कर की गई।
उक्त अवसर पर दीदीजी फाउंडेशन की संस्थापक, शिक्षिका और अंतर्राष्ट्रीय-राष्ट्रीय-राजकीय सम्मान से अंलकृत डा. नम्रता आनंद ने सावित्री बाई फुले को याद करते हुये कहा कि सावित्रीबाई फुले 19 वीं शताब्दी की वह सुनहरी किरण थी, जिसमें ब्रिटिश उपनिवेशवाद के भीतर अपनी न केवल आभा बिखेरी बल्कि अंधविश्वास, पाखंड, ढोंग धार्मिक कर्मकांडों को चीर कर ज्ञान के स्रोत को अछूतों एवं स्त्रियों के लिये रेखांकित किया। भारत की प्रथम प्रशिक्षित शिक्षिका होने का गौरव उन्हें ही प्राप्त है। सावित्रीबाई फुले ऐसी शख्स थी जिन्होंने समाज द्वारा लड़कियों की शिक्षा के विरोध के बावजूद उन्हें शिक्षित करने का प्रण लिया।ऐसे समय में उन्होंने शिक्षा पर कार्य करना शुरू किया, जब शिक्षा के सारे द्वार स्त्रियों के लिए प्रायः बंद थे।उन्होंने सदियों से शिक्षा से महरुम शोषित वंचित, दलित-आदिवासी और स्त्री समाज को अपने निस्वार्थ प्रेम, सामाजिक प्रतिबद्धता, सरलता तथा अपने अनथक सार्थक प्रयासों से शिक्षा पाने का अधिकार दिलवाया। समाज सुधारक क्रांति ज्योति सावित्री बाई फुले युग नायिका बनकर उभरीं। अपनी तीक्ष्ण बुद्धि, निर्भीक व्यक्तित्व, सामाजिक सरोकारो से ओत-प्रोत सावित्री बाई फुले ने स्त्री जीवन को गौरवान्वित किया एवं सामाजिक न्याय को लक्षित किया।आज के ज़माने में महिला सशक्तिकरण इतना अधिक हुआ है तो इसका सबसे पहला श्रेय सावित्रीबाई फुले को जाता है।सावित्री बाई फुले ने 19वीं सदी में महिलाओं के अधिकारों, अशिक्षा, छुआछूत, सती प्रथा, बाल विवाह जैसी कुरीतियों के विरुद्ध आवाज उठाई। सावित्री बाई फुले न केवल सामाजिक कार्यकर्ता शिक्षिका थीं बल्कि वे कोमल हृदय चेतनाशील, कवयित्री भी थीं।
उन्होंने कहा कि सावित्रीबाई फुले न केवल भारत की पहली अध्यापिका और पहली प्रधानाचार्या थीं, बल्कि वह सम्पूर्ण समाज के लिए एक आदर्श प्रेरणा स्त्रोत, प्रख्यात समाज सुधारक, जागरूक और प्रतिबद्ध कवयित्री, विचारशील चिन्तक, भारत के स्त्री आन्दोलन की अगुआ भी थीं। सावित्रीबाई फुले एक ऐसी ही शख्स है जिन्होंने स्त्री शिक्षा के लिए न केवल संधर्ष किया बल्कि पहली बार उनके लिए बालिका विद्यालय की भी स्थापना की। वह पहली महिला थी जो बालिकाओं की शिक्षिका भी थी और उनके विद्यालय की संस्थापक भी। सावित्रीबाई फुले ने अपने पति और सामाजिक क्रान्तिकारी नेता ज्योतिबा फुले के साथ मिलकर लगातार एक के बाद एक बिना किसी आर्थिक मदद और सहारे के लड़कियों के लिए कई स्कूल खोलकर, सामाजिक क्रान्ति का बिगुल बजा दिया था।सावित्रीबाई फुले ने न केवल शिक्षा के क्षेत्र में अभूतपूर्व काम किया ल्कि भारतीय स्त्री की दशा सुधारने के लिए उन्होंने ‘महिला मण्डल’ का गठन कर भारतीय महिला आन्दोलन की प्रथम अगुआ भी बन गईं।समाज में अंधविश्वास कुरीति-रूढ़ि परम्पराओं के विरुद्ध शिक्षा, ज्ञान, समता और नारी समानता के लिए लड़ने वाली भारत की पहली शिक्षिका, समाज सुधारने वाली पहली क्रांतिकारी नारी मुक्ति आंदोलन की पहली नेत्री सावित्रीबाई फुले को शत:शत नमन।
डा. नम्रता आनंद ने कहा अलग-अलग क्षेत्रों में काम करने वाली महिलायें आज अपने दम पर समाज में फैली कुरीतियों को मिटाकर और पुरुषों के साथ हर कदम पर साथ चलकर इतिहास रच रही हैं। वे आगे बढ़ रही हैं और अपनी उपलब्धियों से देश का गौरव बढ़ा रही हैं।नारी सशक्तिकरण के बिना मानवता का विकास अधूरा है। यह जरूरी है कि हम स्वयं को और अपनी शक्तियों को समझें। जब कई कार्य एक समय पर करने की बात आती है तो महिलाओं को कोई नहीं पछाड़ सकता। यह उनकी शक्ति है और हमें इस पर गर्व होना चाहिए।