32.6 C
Patna
Thursday, May 15, 2025
spot_img

1ली अप्रैल से शुरू होगा चार दिवसीय छठ पर्व

जितेन्द्र कुमार सिन्हा, पटना, 31 मार्च, 2025 ::

चैत माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से शुरू होकर चैत शुक्ल पक्ष सप्तमी पर समाप्त होने वाली छठ पूजा जिसे लोग सूर्य षष्ठी के नाम से भी जानते है। इस वर्ष छठ पर्व 01 अप्रैल मंगलवार से शुरू होकर 04 अप्रैल शुक्रवार तक चलेगा।

चैत माह के चतुर्थी तिथि यानि 01 अप्रैल मंगलवार को छठ पर्व के पहले दिन नहाय खाय, चैत माह के पंचवी तिथि यानि 02 अप्रैल बुधवार को खरना, चैत माह के षष्ठी तिथि यानि 3 अप्रैल वृहस्पतिवार को पहली अर्घ्य (संध्या अर्घ्य) डूबते सूर्य को और चैत माह के सप्तमी तिथि यानि 04 अप्रैल शुक्रवार को दूसरी अर्घ्य (उषा अर्घ्य) उगते सूर्य को दिया जाएगा और इसी दिन अर्घ्य देने के बाद व्रत का पारण कर पर्व का समापन किया जाएगा।

भगवान सूर्य के लिए की जाने वाली इस अनुष्ठान में 36 घंटे का निर्जला व्रत रखा जाता है। इसमें व्रत में पवित्र स्नान, पीने के पानी से परहेज करना, कुछ अनुष्ठान करने के लिए पानी में खड़े होना, डूबते और उगते भगवान सूर्य से प्रार्थना करना, पहली अर्घ्य डूबते हुए सूर्य को देना और दूसरी अर्घ्य उगते सूर्य को देना शामिल रहता है। मान्यता है कि यह व्रत भगवान सूर्य को धन्यवाद देने और संतान के लिए खास रूप से मनाया जाता है।

छठ व्रत पुरुष और महिलाएं दोनों करते हैं। कुछ लोग अपनी मुरादें पूरी करने के लिए सिर्फ जल में खड़ा होकर अनुष्ठान करते है जिसे कशटी व्रत करना कहते है। देखा जाए तो भारत में यह प्राचीन वैदिक त्योहार विशेष रूप से बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश, झारखंड और नेपाल राज्यों के माघई लोगों, मैथिल और भोजपुरी लोगों द्वारा मनाया जाता है। लेकिन आजकल विदेशों में भी छठ व्रत करते देखा जाता है।

छठ व्रत के पहले दिन नहाय खाय किया जाता है जिसमें व्रती स्नान आदि से निवृत्त होकर भोजनादि पकाने की परंपरा निभाती है। इस दिन साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखा जाता है। दूसरे दिन खरना होता है। इस दिन गुड़ की खीर, रोटी, फल और कहीं कहीं चपाती या दाल चावल बनाया जाता है, जिसे प्रसाद के रूप में व्रती रात में ग्रहण करती हैं। इसके बाद से 36 घंटे के लिए निराजली अनुष्ठान शुरू हो जाता है। तीसरे दिन जब सूर्यास्त होने लगता है तब व्रत रखने वाली महिलाएं और पुरूष जिसे व्रती कहा जाता है वे महिला और पुरुष नदी, तालाब या कुंड में जाकर पानी में खड़े होकर डूबते हुए सूर्य को बांस की सूप (टोकरी) में फल, ठेकुआ, चावल के लड्डू आदि लेकर सूर्य देव को अर्घ्य देती है और उस समय उपस्थित लोग सूर्य देव को दूध एवं जल अर्पित करते है। चौथे दिन व्रती उसी स्थान पर जहां संध्या में डूबते सूर्य को अर्घ्य देती है वही पर पानी में खड़े होकर उगते सूर्य (उषा काल में) को अर्घ्य देती है। इसके बाद छठ पूजा का समापन होता है और फिर व्रत का पारण करती है। इस प्रकार यह व्रत पूरी विधि-विधान के साथ सम्पन्न होता है।

———-

Related Articles

Stay Connected

0FansLike
0FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

error: Content is protected !!