रंजीत कुमार ब्यूरो दिल्ली
संज्ञान में यह अत्यंत दुखद घटना लाना चाहते हैं कि दिनांक 30/06/2020 को सचदेवा तकनीकी संस्थान और सचदेवा पॉलीटेक्निक संस्थान, फरह, मथुरा के चेयरमैन डॉ सुधीर सचदेवा ने बिना शिक्षकों को पूर्व में सूचित किए, सारे नियमों व कायदों की धज्जियां उड़ाते हुए हिटलरशाही अंदाज में शिक्षकों और छात्रों के भविष्य की परवाह किए बिना संस्थान बंद करने का नोटिस चस्पा कर दिया है। नोटिस चस्पा होने की सूचना भी शिक्षकों को दिनांक 01/07/2020 को बाह्य स्रोतों से प्राप्त हुई जिसके बाद तो मानो वज्रपात और कुठाराघात हो गया जिसका दर्द शब्दों में बयां करना शायद मुश्किल है। शिक्षकों के साथ न केवल नाइंसाफी नोटिस लगा कर की गई बल्कि उससे बड़ा दर्द शिक्षकों के लंबित देनदारियों का न चुकाना भी है जिसमें पांच माह का लंबित वेतन, ग्रेच्युटी, तीन माह का नोटिस अवधि का भुगतान और अर्जित अवकाश की धनराशि शामिल है। कई लाखों की देनदारियां हर एक शिक्षक की है। दिनांक 02/07/2020 से दिनांक 31/07/2020 तक संस्थान में प्रबंध तंत्र से गुहार लगाते – लगाते अब हम शिक्षक थक कर पस्त हो गए हैं। हमें अब केवल अंधकार नजर आ रहा है। शिक्षक जान की बाजी लगाकर इस भयंकर महामारी कॉरोना काल में मालिक के संस्थान की चौखट पर एक भिखारी कि भांति भीख मांग रहे हैं, लेकिन वो रोज नया बहाना बना, टालमटोली कर रहा है। केवल कोरा, झूठा, मौखिक आश्वासन दे रहा है जो एक मृगतृष्णा है। नोटिस चस्पा होने से आज दिनांक 31/07/2020 तक पूरा एक माह बीत जाने के बाद भी वेतन लंबित हैं। रोजाना चेयरमैन साहब जादूगर कि भांति नया जादू दिखाते हैं और ये समझते हैं कि शिक्षक तो मूर्ख प्राणी हैं जो उनके छलावे में आ जाएंगे। कल दिनांक 30/07/2020 को चेयरमैन ने हमसे कहा है कि आपकी देनदारियां मैं छह से नौ माह में पोस्ट डेटेड चैक देकर करूंगा, यह भी उनके जादू का एक नया में को लुभाने वाला शिगूफा है। अब पता नहीं हमारे साथ क्या होगा अभी तो हम कुछ भी समझ नहीं पा रहे हैं।
शिक्षक तो देश के भविष्य का निर्माता है तो उसके साथ इतना बड़ा अन्याय क्यों हो रहा है? हमारे द्वारा पढ़ाए हुए छात्र ही देश के बड़े से बड़े पद पर आसीन होते हैं। हमारे जैसे न जाने कितने शिक्षकों के साथ रोजाना अन्याय हो रहा है। हम तो कलम के सिपाही हैं और तो हमारे पास कुछ है नहीं परन्तु यदि हमारी यह दयनीय दशा हो रही है तो निश्चित ही देश पर संकट के बादल उमड़ रहे हैं क्यूंकि जिस देश में शिक्षक का सम्मान नहीं होता है वह कभी फलता फूलता नहीं है। अतः हम सभी शिक्षकों की आपसे तहे दिल से गुजारिश है कि आप हमें न्याय दिलाने का भरसक प्रयत्न करें तथा हमारी कलम कि आवाज़ को देश के हुक्मरानों और हाकिमों तक पहुंचाएं ताकि लंबित वित्तीय देनदारियां को दिलवाने में तत्काल, अविलंब कोई मसीहा बन हमें हमारे दर्द से निजात दिलाए। हम और हमारा परिवार आत्मदाह की स्थिति में जी रहा है। अत्यधिक आर्थिक संकट और मानसिक अस्वस्थता के दौर में अपना हर एक लम्हा गुजार रहे हैं।