कांग्रेस बार-बार क्यों दोहराती है – देश विरोधी भूलें?

जितेन्द्र कुमार सिन्हा, पटना, 25 अगस्त ::

भारतीय राजनीति का इतिहास जितना गौरवशाली है, उतना ही विवादास्पद भी। इस इतिहास में कांग्रेस पार्टी का नाम सबसे लंबे समय तकजी सत्ता में रहने के कारण प्रमुखता से जुड़ा है। किंतु विडम्बना यह है कि वही कांग्रेस, जिसने स्वतंत्रता संग्राम में योगदान दिया, स्वतंत्रता के बाद से लेकर आज तक ऐसे-ऐसे निर्णय लेती रही है जो भारत की संप्रभुता, अखण्डता और राष्ट्रीय गौरव को ठेस पहुँचाते हैं।

कर्नाटक कांग्रेस द्वारा सोशल मीडिया पर हाल ही में साझा किए गए नक्शे में जम्मू-कश्मीर के पाकिस्तान अधिकृत क्षेत्र को पाकिस्तान का हिस्सा दिखाना इसी श्रृंखला की नवीनतम कड़ी है।

यह घटना केवल “सोशल मीडिया टीम की गलती” नहीं कही जा सकती, बल्कि यह कांग्रेस की उसी प्रवृत्ति का हिस्सा है जिसमें पार्टी ने हमेशा देश से ऊपर राजनीति और विरोधी से ऊपर वोट बैंक को रखा है।

भारत का विभाजन, इतिहास की सबसे बड़ी त्रासदियों में से एक है। लाखों लोग मारे गए, करोड़ों विस्थापित हुए और आज तक उपमहाद्वीप की राजनीति इस विभाजन की पीड़ा से मुक्त नहीं हो पाई। कांग्रेस नेतृत्व ने मुस्लिम लीग के दबाव और अंग्रेज़ों की चाल के आगे घुटने टेक दिए। द्विराष्ट्र सिद्धांत का विरोध करने के बजाय उसे स्वीकार कर लिया गया। महात्मा गांधी की “भारत के दो टुकड़े न हों” वाली चेतावनी को भी नेतृत्व ने गंभीरता से नहीं लिया। परिणाम- भारत का बंटवारा हुआ और पाकिस्तान नाम का कट्टरपंथी इस्लामी राष्ट्र पैदा हुआ। यही वह घड़ी थी जिसने भारत की अखण्डता को पहली बार आघात पहुँचाया और इसमें कांग्रेस की भूमिका संदेह से परे है।

1947 में पाकिस्तान ने कबायली हमलावरों के जरिए जम्मू-कश्मीर पर हमला किया। महाराजा हरि सिंह ने भारत में विलय का प्रस्ताव दिया, और भारत ने सेना भेजकर कश्मीर का बड़ा हिस्सा बचा लिया। लेकिन दुर्भाग्य से तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने यह मुद्दा संयुक्त राष्ट्र में ले जाकर अंतरराष्ट्रीय विवाद बना दिया। यदि वह निर्णय न होता, तो आज पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) का अस्तित्व ही नहीं होता।

आज पूरा भारत PoK को वापस लेने के लिए संकल्पबद्ध है, लेकिन कांग्रेस की एक भूल ने इसे सात दशकों से अधिक समय तक भारत के घाव की तरह बना दिया।

नेपाल के तत्कालीन शाही शासक ने भारत में विलय की इच्छा जताई थी। यह भारत की सुरक्षा और सांस्कृतिक एकता के लिहाज से एक स्वर्णिम अवसर था। किंतु कांग्रेस नेतृत्व ने इसे अस्वीकार कर दिया। नतीजा यह हुआ कि आज नेपाल चीन की गोद में बैठा है। भारत के लिए सुरक्षा खतरे बढ़े हैं।

भारत को स्थायी सदस्यता का अवसर मिला था। लेकिन कांग्रेस सरकार ने यह सीट चीन को सौंप दी। नतीजा है आज चीन बार-बार भारत की राह रोकता है, वीटो का इस्तेमाल करता है और भारत की अंतरराष्ट्रीय स्थिति को कमजोर करता है।

कांग्रेस ने चीन को मित्र मानने की गलती की। 1950 में तिब्बत को चीन के हवाले कर दिया गया, जबकि तिब्बत भारत और चीन के बीच एक बफर जोन था। 1962 के युद्ध में भारत को करारी हार मिली। 43,000 वर्ग किलोमीटर भूमि (जिसमें अक्साई चिन शामिल) चीन के कब्जे में चली गई। आज तक यह भारत की सबसे बड़ी भू-राजनीतिक क्षति मानी जाती है।

1960 में कांग्रेस सरकार ने सिंधु जल संधि पर हस्ताक्षर किया। भारत के पास अपने हिस्से का पानी रोकने का अधिकार सीमित कर दिया गया। पाकिस्तान जैसे शत्रु राष्ट्र को जीवनरेखा सौंप दी गई। आज जब पाकिस्तान आतंकवाद फैलाता है, तब भी वह हमारी नदियों के जल से पनप रहा है।

भारत ने पाकिस्तान को हराकर 90,000 से अधिक सैनिकों को बंदी बनाया। यह भारत के पास एक अभूतपूर्व रणनीतिक लाभ था। लेकिन कांग्रेस नेतृत्व ने उन्हें बिना किसी ठोस समझौते के छोड़ दिया। पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर को वापस लेने का सुनहरा अवसर गंवा दिया।

1975-77 का आपातकाल भारतीय लोकतंत्र का सबसे काला अध्याय है। प्रेस की स्वतंत्रता छीनी गई। लाखों निर्दोष जेल में डाले गए। सत्ता को बनाए रखने के लिए संविधान तक में फेरबदल किया गया। कांग्रेस ने यह साबित किया कि उसके लिए सत्ता देशहित से बड़ी है।

कांग्रेस की सबसे बड़ी बीमारी रही है वोट बैंक की राजनीति। मुस्लिम तुष्टिकरण ने देश की राजनीति को जाति और मजहब के आधार पर बाँट दिया। रामसेतु मामले में भगवान श्रीराम के अस्तित्व तक को नकार दिया गया। आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई में भी कांग्रेस ढुलमुल रवैया अपनाती रही।

जब भारतीय सेना ने आतंकवाद पर सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक की, तो कांग्रेस ने सबूत माँगकर सेना के मनोबल को ठेस पहुँचाई। क्या कोई भी राष्ट्रभक्त दल ऐसा कर सकता है?

हालिया विवाद इस बात का प्रमाण है कि कांग्रेस अपनी पुरानी गलतियों से नहीं सीखती। सोशल मीडिया पर कांग्रेस ने जो नक्शा जारी किया, उसमें PoK पाकिस्तान के हिस्से के रूप में दिखाया गया। यह केवल तकनीकी भूल नहीं, बल्कि गहरी मानसिकता का परिचायक है। विरोध के बाद पोस्ट हटाना और “किसी की शरारत” बताना केवल बहाना है।

इतिहास गवाह है कि चाहे बंटवारा हो, कश्मीर का मुद्दा हो, चीन की नीति हो, पाकिस्तान से समझौते हो, कांग्रेस ने हर बार भारत की संप्रभुता से समझौता किया है। आज भी जब देश एकजुट होकर PoK को वापस लेने की बात करता है, कांग्रेस का रवैया लापरवाह और गैरजिम्मेदार है।

कांग्रेस का यह ताजा प्रकरण केवल एक गलती नहीं है, बल्कि उस लंबी ऐतिहासिक श्रृंखला का हिस्सा है जिसमें कांग्रेस बार-बार भारत के हितों से समझौता करती रही है। भारत के नागरिकों को यह समझना होगा कि देश की एकता, अखण्डता और गौरव सबसे ऊपर है। किसी भी राजनीतिक दल के लिए यह क्षमा योग्य नहीं है कि वह भारत की भौगोलिक संप्रभुता पर सवाल खड़े करने वाले कृत्य करे। आज आवश्यकता इस बात की है कि राष्ट्रहित सर्वोपरि रहे, दल और सत्ता की राजनीति बाद में।
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