जितेन्द्र कुमार सिन्हा, समाचार संपादक
पटना, 23 मई, 2025 ::
भारतवर्ष की सांस्कृतिक परंपराएं सनातन धर्म की गहराईयों से जुड़ी हुई हैं। वट सावित्री व्रत ऐसा ही एक विशेष व्रत है, जिसे विशेष रूप से सुहागिन स्त्रियों द्वारा अपने पति की दीर्घायु, स्वास्थ्य और सुखमय जीवन के लिए किया जाता है। इस व्रत की कथा और परंपरा महाभारतकालीन स्त्री सावित्री से जुड़ी है, जिसने यमराज से अपने पति सत्यवान के प्राण वापस लाकर पतिव्रता धर्म की अमर गाथा लिखी थी।
इस वर्ष, 26 मई 2025 (सोमवार) को यह व्रत विशेष योग और संयोगों के साथ मनाया जाएगा। ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या तिथि को शोभन योग, भरणी, कृत्तिका नक्षत्रों का संयोग और सोमवती अमावस्या है। इस वर्ष वट सावित्री व्रत विशेष ज्योतिषीय संयोगों से युक्त है। 26 मई 2025 (सोमवार) को सुबह 11:02 बजे से शोभन योग, भरणी- कृत्तिका नक्षत्र में अमावस्या आरंभ होगा। अभिजीत मुहूर्त का समय सुबह 11:20 बजे से दोपहर 12:14 बजे तक, गुलिक काल दोपहर 1:28 बजे से 3:10 बजे तक और चर, लाभ, अमृत मुहूर्त दोपहर 1:28 बजे से संध्या 6:32 बजे तक है।
वट सावित्री व्रत इस वर्ष सोमवार को होगा। सोमवार दिन होने के कारण इसका महत्त्व बढ़ जाता है क्योंकि सोमवार को पड़ने वाली अमावस्या को “सोमवती अमावस्या” कहते हैं, जो अत्यंत फलदायी और दुर्लभ होती है।
वट सावित्री व्रत की पूजा के साथ सावित्री-सत्यवान की कथा सुनना आवश्यक होता है। कथा के संबंध में कहा जाता है कि “राजा अश्वपत की पुत्री सावित्री ने वनवासी युवक सत्यवान को अपना पति चुना, जो अपने पिता के साथ वन में रहकर तपस्वी जीवन जी रहा था। ज्योतिषियों ने भविष्यवाणी की थी कि सत्यवान एक वर्ष में मृत्यु को प्राप्त होगा। फिर भी सावित्री ने अपने पतिव्रता धर्म पर अडिग रहते हुए उससे विवाह किया। एक वर्ष पश्चात जब यमराज सत्यवान के प्राण हरने आए, तो सावित्री उनका पीछा करती गई और अपने तर्क, प्रेम और निष्ठा से यमराज को वशीभूत कर लिया। यमराज ने प्रसन्न होकर सत्यवान को जीवनदान दिया। तभी से सावित्री प्रतीक बन गईं एक आदर्श पत्नी की, और इस दिन को व्रत के रूप में मनाया जाने लगा।
वट सावित्री व्रत करने के लिए ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान करने के बाद व्रत का संकल्प लेना चाहिए कि– “मैं अपने पति की दीर्घायु के लिए वट सावित्री व्रत कर रही हूं।” उसके बाद पूजा करने के लिए लाल वस्त्र, कुमकुम, अक्षत, रोली, सूत, फल, फूल, दीपक, धूप, नई चूड़ियां, बिंदी, सिंदूर, मिठाई, पंचमेवा आदि लेकर, वट वृक्ष के नीचे बैठकर पूजा करना चाहिए। पूजा के क्रम में वृक्ष के चारों ओर कच्चा सूत (धागा) 7, 11 या 21 बार लपेटना चाहिए। वट वृक्ष को जल अर्पित करना चाहिए और रोली, अक्षत, फूल आदि चढ़ाना चाहिए।
वट वृक्ष के नीचे सावित्री-सत्यवान और यमराज की प्रतिमा स्थापित (रख कर) पूजा करना चाहिए। वट वृक्ष के नीचे व्रती महिला को वट सावित्री व्रत की कथा सुनना या पढ़ना चाहिए और सहस्त्रनाम और मंत्र जाप “ॐ नमः भगवत्यै सावित्र्यै स्वाहा” का जाप करना चाहिए ।
शोभन योग को शुभ कार्यों के लिए अत्यंत उत्तम माना जाता है। शोभन योग में किया गया व्रत और दान सौ गुना फल प्रदान करता है। यह योग जीवन में समृद्धि और कल्याण लाता है। वहीं, जब अमावस्या सोमवार को पड़े, तो वह विशेष रूप से तीर्थ स्नान, पितृ तर्पण, और व्रत के लिए श्रेष्ठ माना जाता है। इस दिन किया गया व्रत जीवन में सुख-शांति और रोगमुक्ति प्रदान करता है।
वट सावित्री व्रत केवल धार्मिक अनुष्ठान ही नहीं है, बल्कि एक सामाजिक संदेश भी है कि पति-पत्नी के बीच समर्पण, विश्वास और प्रेम रहना चाहिए। ग्रामीण भारत विशेषकर मिथिलांचल, बुंदेलखंड और अवध क्षेत्र में यह व्रत नवविवाहिताओं के लिए विशेष महत्व रखता है।
मिथिलांचल में नवविवाहित स्त्रियां पहली बार यह व्रत पूरे श्रृंगार के साथ करती हैं। अपने सास-ससुर और परिवार की बुजुर्ग महिलाओं के साथ वे मंदिरों और वटवृक्षों के समीप पूजा करती हैं। बेटियों को बचपन से ही यह परंपरा सिखाई जाती है, जिससे वे भारतीय संस्कृति की जड़ों से जुड़ी रहें और परिवार के प्रति कर्तव्यनिष्ठा सीखें।
आज के युग में जब रिश्तों में व्यस्तता, तनाव और दूरी बढ़ती जा रही है, वहीं वट सावित्री व्रत रिश्तों को जोड़ने और मजबूत करने का प्रतीक बन सकता है। यह व्रत केवल पत्नी के पति के लिए नहीं, बल्कि एक-दूसरे के जीवन में प्रेम और आदर बनाए रखने की प्रेरणा भी देता है। यह व्रत स्त्रियों को केवल धार्मिक नहीं, बल्कि आध्यात्मिक शांति भी देता है। ध्यान, कथा श्रवण और उपवास से आत्मानुशासन और मानसिक दृढ़ता का विकास होता है।
उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड में महिलाएं समूह में वट वृक्ष की पूजा करती हैं। वे पारंपरिक गीत गाती हैं और लोककथाओं का आदान-प्रदान करती हैं। वहीं, महाराष्ट्र में इसे वट पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है, जहां महिलाएं साड़ी पहनकर श्रृंगार करती हैं और अपने पति के चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लेती हैं। बंगाल और ओडिशा में भी व्रत की परंपरा है, हालांकि इसे सावित्री व्रत या “सती सावित्री पूजा” के रूप में मनाया जाता है।
वट सावित्री व्रत एक ऐसा व्रत है जो केवल धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि भारतीय नारी के त्याग, श्रद्धा और प्रेम की मिसाल है। 26 मई 2025 को जब शोभन योग, भरणी-कृत्तिका नक्षत्र और सोमवती अमावस्या का दुर्लभ संयोग बनेगा, तब देशभर की लाखों सुहागिनें वट वृक्ष के नीचे अपने पति की दीर्घायु की प्रार्थना करेंगी। इस व्रत के माध्यम से अपने जीवन में प्रेम, सहनशीलता, समर्पण और पर्यावरण के प्रति कर्तव्य का बोध होता है। जब हम परंपरा और प्रकृति को जोड़कर पूजा करते हैं, तब जीवन में न केवल आस्था बल्कि स्थायित्व और संतुलन भी आता है।
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