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नवरात्र में सप्तमी को – मां कालरात्रि की पूजा – मां कालरात्रि को ‘मां शुंभकारी, महायोगिनी, महायोगीश्वरी’ भी कहते हैं

जितेन्द्र कुमार सिन्हा, पटना, 4 अप्रैल, 2025 ::

नवरात्र देवी पूजा को समर्पित है। यह एक हिन्दू त्योहार है। माता दुर्गा को आदिशक्ति, जगत जननी और जगदम्बा भी कहा जाता है। भगवती के नौ मुख्य रूप है जिनकी विशेष पूजा व साधना नवरात्र के दौरान किया जाता है।

नवरात्र में मां दुर्गा के नौ रूपों की अलग-अलग पूजा होती है। हर दिन माता के खास रूप की पूजा का विधान है। नवरात्र के पहले दिन मां शैलपुत्री, दूसरे दिन ब्रह्मचारिणी, तीसरे दिन चंद्रघंटा, चौथे दिन कुष्मांडा, पांचवें दिन स्कंदमाता और छठे दिन कात्यायनी की पूजा-आराधना हो चुकी है। अब सातवें दिन मां कालरात्रि, आठवें दिन महागौरी और नौवे दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा होनी है।

नवरात्र के सातवें दिन मां कालरात्रि की पूजा की जाती है। मां कालरात्रि का शरीर अंधकार की तरह काला, बाल लंबे और बिखरे हुए होते हैं। गले में बिजली की तरह चमकती हुई माला है। मां कालरात्रि के चार हाथ में से एक हाथ में खड़क, दूसरे हाथ में लोह अस्त्र, तीसरे हाथ हठ वर मुद्रा और चौथे हाथ अभय मुद्रा है। मां कालरात्रि को लाल वस्त्र प्रिय है, इसलिए मां कालरात्रि को लाल वस्त्रादि अर्पित करना चाहिए।

पौराणिक कथाओं के अनुसार, मां कालरात्रि की पूजा करने से दुष्टों का विनाश होता है। मां के इस स्वरूप को वीरता और साहस का प्रतीक माना जाता है। दुष्टों का नाश करने के लिए आदिशक्ति ने यह रूप धारण किया था। भक्तों के लिए मां कालरात्रि सदैव शुभ फल देने वाली हैं। इस कारण मां का नाम ‘शुभंकारी’ भी है। मान्यता है कि मां कालरात्रि की कृपा से भक्त हमेशा भयमुक्त रहता है, उसे अग्नि भय, जल भय, शत्रु भय, रात्रि भय आदि कभी नहीं होता।

मां कालरात्रि ने दैत्य रक्तबीज का वध की थी। ‘जब दैत्य शुंभ-निशुंभ और रक्तबीज ने तीनों लोकों में हाहाकार मचा रखा था, तब इससे चिंतित होकर सभी देवता शिवजी के पास गए और उनसे रक्षा की प्रार्थना करने लगे। भगवान शिव ने माता पार्वती से राक्षसों का वध कर अपने भक्तों की रक्षा करने को कहा। शिवजी की बात मानकर माता पार्वती ने दुर्गा का रूप धारण की और शुंभ-निशुंभ का वध कर दी। जब मां दुर्गा ने दैत्य रक्तबीज को मौत के घाट उतारी, तो उसके शरीर से निकले वाले रक्त से लाखों रक्तबीज दैत्य उत्पन्न हो गए। इसे देख मां दुर्गा ने अपने तेज से कालरात्रि को उत्पन्न की। इसके बाद जब मां दुर्गा ने दैत्य रक्तबीज का वध करने लगी और उसके शरीर से निकलने वाले रक्त को मां कालरात्रि ने जमीन पर गिरने से पहले ही अपने मुख में भर लेती थी। इस तरह मां दुर्गा ने सबका गला काटते हुए रक्तबीज का वध कर दी।

मां कालरात्रि को गुड़ का भोग प्रिय है। गुड़ का नैवेद्य चढ़ाने और उसे ब्राह्मण को दान करने से शोक से मुक्ति मिलती है और आने वाले आकस्मिक संकटों से रक्षा होती है।

मां कालरात्रि को महायोगिनी, महायोगीश्वरी भी कहा जाता है। यह नागदौन औषधि के रूप में जानी जाती है। सभी प्रकार के रोगों की नाशक, सर्वत्र विजय दिलाने वाली, मन एवं मस्तिष्क के समस्त विकारों को दूर करने वाली औषधि है।

मां कालरात्रि को गुड़ का भोग प्रिय है। सातवें दिन नवरात्र पर मां को गुड़ का नैवेद्य चढ़ाने और उसे ब्राह्मण को दान करने से शोक से मुक्ति मिलती है और आकस्मिक आने वाले संकटों से रक्षा होती है। इसके अलावा गुड़ का भोग लगाकर उसे प्रसाद के रूप में खाना सेहत के लिए भी फायदेमंद है।

नवरात्र में साधक का मन ‘सहस्रार’ चक्र में स्थित रहता है। इसके लिए ब्रह्मांड की समस्त सिद्धियों का द्वार खुलने लगता है। देवी कालरात्रि को व्यापक रूप से काली, महाकाली, भद्रकाली, भैरवी, मृत्यु – रुद्राणी, ही चामुंडा, चंडी और दुर्गा के कई विनाशकारी रूपों में से एक माना जाता है। रौद्री, धूम्रवर्णा कालरात्रि मां के अन्य कम प्रसिद्ध नामों में हैं। मान्यता है कि है कि देवी के इस रूप में सभी राक्षस, भूत, प्रेत, पिशाच और नकारात्मक ऊर्जाओं का नाश होता है, जो उनके आगमन से पलायन करते हैं। मां कालरात्रि का अनुभव सब जड़ चेतन मृत्यु को प्राप्त होने के समय स्वरूप का अनुभव होता है। किसी भी मंत्र का जप विधि – ‘ॐ फट् शत्रून साघय घातय ॐ।’
मां कालरात्रि का मंत्र

एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता, लम्बोष्टी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी।

वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा, वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी॥
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