बिहार में नया सियासी मोड़ – जन सुराज की हुई आशा – आर.सी.पी. सिंह के नेतृत्व में संगठन को मिलेगी नई दिशा

जितेन्द्र कुमार सिन्हा, पटना, 26 मई ::

बिहार की राजनीति हमेशा से ही बदलाव और प्रयोग का केन्द्र रहा है। जातीय समीकरणों, विकास की चुनौतियों और सामाजिक परिवर्तन के बीच समय-समय पर नई राजनीतिक धाराएं जन्म लेती रही हैं। इसी क्रम में हाल ही में एक अहम घटनाक्रम ने राजनीतिक गलियारों में चर्चा को हवा दे दी है। आसा (आप सबकी आवाज) पार्टी का जन सुराज पार्टी में विलय।

इस विलय से पूर्व भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी और पूर्व केन्द्रीय मंत्री रामचंद्र प्रसाद सिंह (आर.सी.पी. सिंह) ने 17 मई 2025 को अपनी पार्टी को प्रशांत किशोर की अगुवाई वाली जन सुराज पार्टी में शामिल कर दिया। इस ऐतिहासिक कदम की घोषणा के बाद आसा पार्टी के उपाध्यक्ष, प्रवक्ता और कलमजीवी प्रकोष्ठ के अध्यक्ष डॉ. प्रभात चंद्रा ने एक विशेष वार्ता में इस राजनीतिक बदलाव की गहराई से जानकारी दी।

आर.सी.पी. सिंह का नाम बिहार की राजनीति में किसी परिचय का मोहताज नहीं है। एक पूर्व भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी के तौर पर प्रशासनिक दक्षता से लेकर नीतीश कुमार के करीबी और केन्द्रीय इस्पात मंत्री जैसे अहम पदों को सुशोभित करने वाले आर.सी.पी. सिंह ने अपनी नई राजनीतिक राह खुद चुनी है। जदयू से अलग होकर उन्होंने ‘आसा पार्टी’ की स्थापना की, जिसकी बुनियाद जन मुद्दों, सुशासन और सर्वसमावेशी विकास पर टिकी थी। लेकिन बिहार की राजनीतिक जमीन में एकल प्रयासों की सफलता अक्सर सीमित रही है। यही कारण रहा है कि आर.सी.पी. सिंह ने रणनीतिक दृष्टि से प्रशांत किशोर की पार्टी से हाथ मिलाया, जिसमें संगठन की ताकत, जमीनी पकड़ और भविष्य का विजन पहले से मौजूद है।

17 मई 2025 को जब आसा पार्टी का जन सुराज में विलय हुआ, तो यह न सिर्फ दोनों दलों के लिए, बल्कि बिहार के राजनीतिक परिदृश्य के लिए भी एक बड़ा मोड़ साबित हुआ।

डॉ. प्रभात चंद्रा, जो आसा पार्टी के उपाध्यक्ष और प्रमुख प्रवक्ता रहे हैं, ने इस अवसर पर कहा कि “प्रशांत किशोर ने स्पष्ट रूप से यह कहा है कि आर.सी.पी. सिंह का दायित्व है जन सुराज पार्टी के संगठन को मजबूत करना।” इस कथन में दो बातें स्पष्ट होती हैं। पहली यह कि जन सुराज पार्टी में आर.सी.पी. सिंह को सम्मानजनक भूमिका दी गई है और दूसरा संगठन को सुदृढ़ करने के लिए उनके अनुभव का उपयोग किया जाएगा।

डॉ. चंद्रा ने आगे यह भी बताया कि आसा पार्टी के पदाधिकारियों को जन सुराज पार्टी में और भी अधिक सम्मानजनक पद दिए जाएंगे, जिससे उनके आत्मसम्मान और कार्यक्षमता दोनों को बढ़ावा मिलेगा।

इस राजनीतिक घटनाक्रम में डॉ. प्रभात चंद्रा की भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। कलमजीवी प्रकोष्ठ के अध्यक्ष होने के साथ-साथ उन्होंने आसा पार्टी में बौद्धिक नेतृत्व की भूमिका निभाई है। उनके शब्दों में, “जन सुराज पार्टी ही बिहार में एक ऐसा विकल्प है, जो प्रदेश के विकास, रोजगार और सुशासन के मुद्दों पर ईमानदारी से काम कर सकता है।”

डॉ. चंद्रा ने यह भी स्पष्ट किया कि उनका उद्देश्य सिर्फ राजनीतिक सत्ता नहीं, बल्कि नीतिगत परिवर्तन है, जिससे आमजन की जिन्दगी में वास्तविक बदलाव लाया जा सके।

जन सुराज पार्टी की नींव एक राजनीतिक पार्टी से अधिक एक सामाजिक आंदोलन की तरह रखी गई थी। प्रशांत किशोर, जो एक रणनीतिकार के रूप में राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध हो चुके हैं, उन्होंने बिहार में ‘पदयात्रा’ के माध्यम से पार्टी की जमीनी पकड़ बनाने की पहल की थी।

उनकी रणनीति में राजनीति का पारंपरिक ढांचा नहीं, बल्कि जन भागीदारी, स्थानीय नेतृत्व, और मुद्दों पर आधारित राजनीति है। ऐसे में आर.सी.पी. सिंह जैसे अनुभवी नेता का पार्टी में आना पार्टी की रणनीतिक गहराई को और मजबूत करता है।

जन सुराज पार्टी अभी भी संगठनात्मक दृष्टि से विस्तृत नहीं हुई है। लेकिन जिलों से लेकर प्रखंड स्तर तक मजबूत संगठन तैयार करना, योग्य कार्यकर्ताओं को चिन्हित करना, प्रशिक्षण देना और उन्हें चुनावी तैयारी के लिए तैयार करना एक कठिन कार्य है। ऐसे में आर.सी.पी. सिंह को इस नए दायित्व के तहत जमीनी स्तर पर सक्रिय इकाइयों का गठन, युवा नेतृत्व को प्राथमिकता, समुदाय आधारित भागीदारी, टेक्नोलॉजी और डिजिटल प्लेटफॉर्म का उपयोग और राजनीतिक शुचिता और पारदर्शिता जैसे बिंदुओं पर ध्यान देना होगा। आर.सी.पी. सिंह के लिए यह चुनौती इसलिए भी अहम है क्योंकि बिहार में पहले से मौजूद बड़े दलों के मुकाबले जन सुराज को एक विश्वसनीय विकल्प के रूप में स्थापित करना है।

कई बार छोटे दलों का बड़े दलों में विलय होने पर पुराने कार्यकर्ताओं की अनदेखी हो जाती है। लेकिन डॉ. प्रभात चंद्रा ने यह साफ कर दिया है कि आसा पार्टी के सभी पदाधिकारियों को उनके योगदान और योग्यता के अनुसार जन सुराज पार्टी में सम्मानजनक स्थान मिलेगा। यह घोषणा न सिर्फ पुराने कार्यकर्ताओं के मनोबल को बनाए रखेगी, बल्कि नए कार्यकर्ताओं को भी प्रेरित करेगी कि संगठन के साथ उनका भविष्य सुरक्षित है।

डॉ. चंद्रा के अनुसार, जन सुराज पार्टी ही बिहार की राजनीतिक और विकासात्मक दिशा को सही दिशा में ले जाने में सक्षम है। उनकी दृष्टि में यह पार्टी जाति आधारित राजनीति से ऊपर उठकर, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार जैसे मूलभूत मुद्दों पर ध्यान देगी, और ग्रामीण क्षेत्रों में विकास की नई अवधारणा को स्थापित करना चाहती है। इसलिए जन सुराज पार्टी को केवल एक राजनीतिक दल नहीं, बल्कि एक सामाजिक परिवर्तन का वाहक समझा जाना चाहिए।

जहां एक ओर आसा पार्टी के जन सुराज में विलय को इसके समर्थक एक सकारात्मक पहल बता रहे हैं, वहीं विरोधी दलों ने इसे ‘नया प्रयोग’ कहकर आलोचना शुरू कर दी है। कुछ राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि बिहार की राजनीति में ‘तृतीय शक्ति’ बनने के प्रयास पहले भी असफल रहे हैं, चाहे वह समता पार्टी हो या लोजपा का कोई गुट। लेकिन जन सुराज का मॉडल इनसे अलग इसलिए है क्योंकि यह आंदोलन आधारित राजनीति को अपनाता है।

 

अब प्रश्न उठता है कि बिहार की जनता इस नई राजनीतिक संरचना को कैसे देखेगी? क्या यह महज पुराने नेताओं का नया मंच है या वाकई कोई नई सोच लेकर आई है? जनता के मन में यह सवाल उठना स्वाभाविक है क्योंकि विगत वर्षों में तमाम ऐसे गठजोड़ बने जो जनता के भरोसे पर खरे नहीं उतर पाए। इसलिए जन सुराज पार्टी को यह साबित करना होगा कि यह सिर्फ ‘नेताओं की पार्टी’ नहीं, बल्कि जनता की आकांक्षाओं की प्रतिनिधि पार्टी है।

आसा पार्टी का जन सुराज में विलय और आर.सी.पी. सिंह का संगठनात्मक भूमिका में आना, बिहार की राजनीति में एक नए अध्याय की शुरुआत का संकेत देता है। यह न सिर्फ राजनीतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि सामाजिक-सांस्कृतिक परिवर्तन की संभावना भी इसमें निहित है। यदि जन सुराज पार्टी अपने सिद्धांतों और नीतियों पर डटी रही, जमीनी कार्य को प्राथमिकता दी और युवा नेतृत्व को सामने लाया, तो यह वाकई बिहार की राजनीतिक दिशा बदलने वाली पार्टी बन सकती है।

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