38.3 C
Patna
Thursday, April 17, 2025
spot_img

भक्तों के लिए सार्वधिक कल्याणकारी होता है – नवरात्र के आठवां दिन – मां महागौरी का ध्यान, स्मरण और पूजन-आराधना

जितेन्द्र कुमार सिन्हा, पटना, 5 अप्रैल, 2025 ::

नवरात्र के नौ दिनों की आराधना क्रम में आठवां दिन मां महागौरी की आराधना-पूजा होती है। नवरात्र के पहले दिन से सातवें दिन तक देवी दुर्गा के शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चन्द्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी और कालरात्रि की पूजा हो चुका है। अब अंतिम दो दिन मां महागौरी और मां सिद्धिदात्री की दिव्य रूप की पूजा होगी।

नवरात्र के आठवें (अष्टमी) दिन मां दुर्गा का आठवां स्वरूप महागौरी की पूजा आराधना होती है। अष्टमी तिथि को कुंवारी पूजा के नाम से और महाअष्टमी जिसे दुर्गा अष्टमी के नाम से भी जाना जाता है।

महागौरी का वर्ण पूर्णतः गौर है। इस गौर की उपमा शंख, चंद्र और कुंद के फूल से की गई है। इनकी आयु आठ वर्ष की मानी गई है- ‘अष्टवर्षा भवेद् गौरी।’ इनके समस्त वस्त्र एवं आभूषण आदि भी श्वेत हैं।

मां महागौरी की चार भुजाओं में, ऊपर के दाहिने हाथ में त्रिशूल और नीचे वाले दाहिने हाथ वर-मुद्रा में है, वहीं ऊपर वाले बाएँ हाथ अभय मुद्रा में और नीचे के बाएँ हाथ में डमरू हैं। मां महागौरी का मुद्रा अत्यंत शांत है। मां महागौरी देवताओं की प्रार्थना पर हिमालय की श्रृंखला मे शाकंभरी के नाम से प्रकट हुई थी।

नवदुर्गा का सबसे दीप्तिमान और सुंदर रूप है महागौरी। महा शब्द का अर्थ है महान और गौरी शब्द का अर्थ उज्वल या गोरा, इसलिए इनका नाम महागौरी पड़ा। वह दयालु, देखभाल करने वाली और अपने सभी भक्तों की गहरी इच्छाओं को पूरा करने के लिए जानी जाती है। यह भी माना जाता है कि मां महागौरी हर तरह के दर्द और पीड़ा से राहत देती हैं और अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करती है। जो स्त्री मां महागौरी की पूजा भक्ति भाव साहित करती हैं उनके सुहाग की रक्षा देवी स्वंय करती है। अष्टमी तिथि के दिन मां महागौरी को नारियल का भोग लगाना चाहिए फिर नैवेद्य रूप में वह नारियल ब्राह्मण को दे देना चाहिए।

मां महागौरी ने देवी पार्वती के रूप में, भगवान शिव को पति-रूप में प्राप्त करने के लिए, कठोर तपस्या की थी। एक बार भगवान शिव ने माता पार्वती जी को देखकर कुछ कह देते हैं। जिससे देवी का मन आहत होता है और पार्वती जी तपस्या में लीन हो जाती हैं। इस प्रकार वषों तक कठोर तपस्या करने पर जब माता पार्वती जी नहीं आती है तो, माता पार्वती जी को खोजते हुए भगवान शिव उनके पास पहुँचते हैं, वहां माता पार्वती जी को देखकर आश्चर्य चकित रह जाते हैं। माता पार्वती जी का रंग अत्यंत ओजपूर्ण होता है, उनकी छटा चांदनी के सामन श्वेत और कुन्द के फूल के समान धवल दिखाई पड़ती है, उनके वस्त्र और आभूषण से प्रसन्न होकर देवी उमा को गौर वर्ण का वरदान देते हैं। वहीं दूसरी कथा अनुसार, भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए माता पार्वती जी ने कठोर तपस्या की थी, जिससे माता पार्वती जी का शरीर काला पड़ जाता है। माता पार्वती जी की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव इन्हें स्वीकार करते हैं और भगवान शिव इनके शरीर को गंगा-जल से धोते हैं तब देवी विद्युत के समान अत्यंत कांतिमान गौर वर्ण की हो जाती हैं तथा तभी से इनका नाम गौरी पड़ा। महागौरी रूप में देवी करूणामयी, स्नेहमयी, शांत और मृदुल दिखती हैं। देवी के इस रूप की प्रार्थना करते हुए देव और ऋषिगण कहते हैं-

सर्वमंगल मंग्ल्ये, शिवे सर्वार्थ साधिके।

शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोस्तुते”।।

माता पार्वती से संबंधित एक अन्य कथा भी प्रचलित है, जिसके अनुसार, एक सिंह काफी भूखा था, वह भोजन की तलाश में वहां पहुंचा जहां देवी उमा तपस्या कर रही होती हैं। देवी को देखकर सिंह की भूख बढ़ गयी परंतु वह देवी के तपस्या से उठने का इंतजार करते हुए वहीं बैठ गया। इस इंतजार में वह काफी कमजोर हो गया। देवी जब तप से उठी तो सिंह की दशा देखकर उन्हें उस पर बहुत दया आती है और माता पार्वती उसे अपना सवारी बना लेती हैं, क्योंकि एक प्रकार से उसने भी माता पार्वती के साथ तपस्या की थी। इसलिए देवी गौरी का वाहन बैल और सिंह दोनों ही हैं।

एक अन्य कथा के अनुसार दुर्गम दानव के अत्याचारों से संतप्त जब देवता भगवती शाकंभरी की शरण मे आये तब माता ने त्रिलोकी को मुग्ध करने वाले महागौरी रूप का प्रादुर्भाव किया। यही माता महागौरी आसन लगाकर शिवालिक पर्वत के शिखर पर विराजमान हुई और शाकंभरी देवी के नाम से उक्त पर्वत पर उनका मंदिर बना हुआ है यह वही स्थान है जहां देवी शाकंभरी ने महागौरी का रूप धारण की थी।

नवरात्र की अवधि में मां महागौरी का ध्यान, स्मरण, पूजन-आराधना भक्तों के लिए सार्वधिक कल्याणकारी होता है। इनकी कृपा से अलौकिक सिद्धियों की प्राप्ति होती है। पुराणों में माँ महागौरी की महिमा का प्रचुर आख्यान किया गया है। ये मनुष्य की वृत्तियों को सत्‌ की ओर प्रेरित करके असत्‌ का विनाश करती हैं।

मन्त्र

येथे सम श्वेताम्बरधरा शुचिः।

महागौरी शुभंदद्यान्महादेव-प्रमोद-दा।।

 

———————-

Related Articles

Stay Connected

0FansLike
0FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

error: Content is protected !!