जितेन्द्र कुमार सिन्हा, पटना, 05 सितम्बर ::
बिहार की राजनीति लंबे समय से दो ध्रुवों के इर्द-गिर्द घूमती रही है। एक तरफ सत्तारूढ़ जदयू-भाजपा गठबंधन, और दूसरी तरफ लालू प्रसाद तथा तेजस्वी यादव के नेतृत्व में राजद। कांग्रेस दशकों से हाशिए पर पड़ी थी और चुनावी समीकरण में उसकी भूमिका सीमित होकर रह गयी थी। लेकिन हाल के घटनाक्रमों ने तस्वीर बदलनी शुरू कर दी है। राहुल गांधी की ‘वोटर अधिकार यात्रा’ ने न केवल कांग्रेस को फिर से प्रासंगिक बनाया है, बल्कि विपक्षी राजनीति को भी नई दिशा दी है। यह यात्रा जनता से सीधा संवाद बनाकर उभरी है और बिहार में बदलते राजनीतिक समीकरणों की गवाही दे रही है।
बिहार का राजनीतिक इतिहास सामाजिक न्याय, जातीय समीकरण और गठबंधनों के उतार-चढ़ाव से भरा हुआ है। लालू प्रसाद ने 90 के दशक में सामाजिक न्याय और पिछड़े वर्ग की राजनीति को केंद्र में रखा। नीतीश कुमार ने सुशासन और विकास का नारा देकर सत्ता में अपनी पकड़ मजबूत की। भाजपा ने अपने संगठन और कैडर के दम पर बिहार में स्थायी उपस्थिति दर्ज की। कांग्रेस, जो कभी राज्य की सबसे बड़ी ताकत थी, धीरे-धीरे सिमटती चली गयी।
लंबे समय से समीकरण यही था कि भाजपा-जदयू गठबंधन बनाम राजद। लेकिन इस बार समीकरण में तीसरा ध्रुव तेजी से उभर रहा है – कांग्रेस और राहुल गांधी की सक्रियता।
राहुल गांधी की यह यात्रा केवल राजनीतिक प्रदर्शन नहीं है, बल्कि जनता से संवाद का एक अनोखा प्रयास है। इसमें शिक्षा, स्वास्थ्य, बेरोजगारी, महंगाई, किसानों की समस्या और पलायन जैसे मुद्दे प्रमुख हैं। गांव और कस्बों की गलियों में पहुंचकर जनता की आवाज सुनना इस यात्रा की सबसे बड़ी खासियत है। कार्यकर्ता स्तर पर कांग्रेस को ऊर्जा और मजबूती मिल रही है। जनता महसूस कर रही है कि कोई नेता उनकी आवाज को केवल चुनावी नारे तक सीमित नहीं रख रहा है, बल्कि उसे राष्ट्रीय विमर्श का हिस्सा बना रहा है।
यह सवाल अब बार-बार उठ रहा है कि बिहार में विपक्ष का चेहरा कौन है। तेजस्वी यादव ने विधानसभा के भीतर बेरोजगारी, शिक्षा और सामाजिक न्याय जैसे मुद्दे उठाए। उनके भाषण धारदार होते हैं, लेकिन सीमित दायरे तक। राहुल गांधी ने मैदान में उतरकर मुद्दों को आंदोलन का रूप दिया। जनता से सीधे संवाद, पदयात्रा और सभाओं के माध्यम से उन्होंने विपक्ष को नई ऊर्जा दी। यानि तेजस्वी यादव की राजनीति कथनी तक सीमित है, जबकि राहुल गांधी की राजनीति करनी और आंदोलन तक पहुंच रही है।
कांग्रेस का बिहार में लंबा इतिहास है। लेकिन 90 के दशक के बाद वह लगातार सिमटती चली गयी। सीटों का ग्राफ गिरता गया। कार्यकर्ताओं का मनोबल टूटता गया। जनता ने कांग्रेस को विकल्प मानना छोड़ दिया। लेकिन वोटर अधिकार यात्रा ने इस स्थिति को बदल दिया है। बूथ स्तर तक कार्यकर्ताओं में सक्रियता लौट रही है। जनता से सीधा संवाद ने कांग्रेस को नई पहचान दी है। पार्टी केवल राजद की सहयोगी न रहकर, वैकल्पिक शक्ति के रूप में उभर रही है।
इस यात्रा का सबसे बड़ा आकर्षण है मुद्दों और अधिकारों की राजनीति। राहुल गांधी ने चुनावी नारों की बजाय बुनियादी सवालों को केंद्र में रखा है, रोजगार और पलायन, किसानों की बदहाली, शिक्षा और स्वास्थ्य, महंगाई और भ्रष्टाचार, महिलाओं की सुरक्षा और भागीदारी। यानि राहुल गांधी की रणनीति है लोकतंत्र में जनता की भागीदारी को असली मुद्दा बनाना।
गांवों और कस्बों में सभाओं के दौरान जिस तरह युवाओं, महिलाओं और किसानों की भागीदारी बढ़ी है, वह संकेत देता है कि जनता पारंपरिक राजनीति से हटकर नए विकल्प की तलाश में है। लोग महसूस करने लगे हैं कि राहुल गांधी केवल नेता नहीं हैं, बल्कि जनता की आवाज को आंदोलन का रूप देने वाले नेता हैं।
राहुल गांधी की यात्रा ने दोहरा असर डाला है। एनडीए सरकार को सीधे सवालों के कटघरे में खड़ा किया है।
राजद को यह अहसास कराया कि विपक्ष का नेतृत्व केवल उनके हाथों में नहीं है। यह स्थिति राजद के लिए चुनौती है। कांग्रेस के उभार से विपक्ष की राजनीति में नई शक्ति संतुलन बन रहा है।
जनता विपक्ष से केवल सत्ता पक्ष की आलोचना नहीं, बल्कि सड़क पर आंदोलन और ठोस पहल की उम्मीद करती है। इस कसौटी पर तेजस्वी यादव कमजोर पड़ते हैं। राहुल गांधी का तरीका जनता को ज्यादा आकर्षित करता है। राहुल की शैली अलग है, वे सुनते हैं, नोट करते हैं और फिर उन्हें राजनीतिक विमर्श का हिस्सा बनाते हैं। यही उनकी ताकत है।
बिहार में विधानसभा चुनाव नजदीक हैं। कांग्रेस की सक्रियता वोट शेयर में बढ़ोतरी कर सकती है। राजद और जदयू-भाजपा गठबंधन दोनों को अपनी रणनीति बदलनी पड़ेगी। राहुल गांधी का चेहरा विपक्ष को नया भरोसा देता है। अगर यह रफ्तार जारी रही, तो कांग्रेस बिहार की राजनीति में फिर से मजबूत दावेदार बन सकती है।
राहुल गांधी ने पहले भारत जोड़ो यात्रा की थी, जिसने उन्हें जनता से जोड़ने का काम किया। अब वोटर अधिकार यात्रा ने यह संदेश और मजबूत कर दिया है कि राहुल केवल संसद में बोलने वाले नेता नहीं हैं, बल्कि सड़कों पर संघर्ष करने वाले नेता हैं।
आज की स्थिति को देखकर कहा जा सकता है कि बिहार की राजनीति एक नए मोड़ पर खड़ी है। कांग्रेस फिर से प्रासंगिक बन रही है। राहुल गांधी ने विपक्षी राजनीति को नया चेहरा दिया है। जनता एक नए विकल्प की तलाश में है। यह यात्रा केवल कांग्रेस की वापसी नहीं है, बल्कि भारतीय लोकतंत्र में विपक्ष की भूमिका को मजबूत करने का प्रयास है।
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