जितेन्द्र कुमार सिन्हा, पटना, 18 अगस्त, 2024 ::

सावन माह में भगवान शिव पर जलाभिषेक करने वाले श्रद्धालुओं की तांता लगा रहता है, वहीं रुद्राभिषेक करने की भी लगातार सिलसिला चलता रहता है। देश के 12 ज्योतिर्लिंगों का पूजा अर्चना करने, दर्शन करने वाले श्रद्धालुओं की भी अच्छी-खासी भीड़ जमा होती है। मान्यता है कि सावन महीने में यदि शिवलिंग की पूजा श्रद्धा और मन से करते हैं, तो भगवान शिव श्रद्धालुओं की मनोकामना शीघ्र पूर्ण करते हैं।

भगवान शिव हिन्दू संस्कृति के प्रणेता आदिदेव महादेव हैं। पुराणों में, वेदों में और शास्त्रों में भगवान शिव-महाकाल के महात्म्य को प्रतिपादित किया गया है। सांस्कृतिक मान्यता के अनुसार 33सो कोटि के देवताओं में ‘शिरोमणि’ देव शिव हैं। सृष्टि के तीनों लोकों में भगवान शिव एक अलग, अलौकिक शक्ति वाले देव हैं। भगवान शिव पृथ्वी पर अपने निराकार-साकार रूप में निवास कर रहे हैं। भगवान शिव को सर्वव्यापक एवं सर्वशक्तिमान माना गया हैं। शिव प्रलय के पालनहार हैं और प्रलय के गर्भ में ही प्राणी का अंतिम कल्याण सन्निहित है।

पुराणों के अनुसार, बहुत से असुर भी शिव भक्त थे। रावण भी एक महान शिव भक्त था, लेकिन जब भगवान का भक्त ही अधर्म का कारण बन जाये तो भगवान को भी स्वयं अपने भक्तो का उद्धार करना पड़ता है। ऐसा ही तारकासुर पुत्रो के साथ भी हुआ था।

पुराणों में द्वादश ज्योतिर्लिंगों का वर्णन किया गया है। मान्यता है कि जहां-जहां ज्योतिर्लिंग है वहां स्वयं देवाधिदेव महादेव शिवलिंग के रूप में विराजमान हैं। यह भी मान्यता यह भी है कि 12 ज्योतिर्लिंग का नाम जप के रूप में करते रहने से पिछले सात जन्मों के पाप से मुक्त होकर मोक्ष पाया जा सकता है।12 ज्योतिर्लिंग में सोमनाथ ज्योतिर्लिंग, मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग, महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग, ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग, केदारनाथ ज्योतिर्लिंग, भीमशंकर ज्योतिर्लिंग, विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग, त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग, वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग , नागेश्वर ज्योतिर्लिंग, रामेश्वरम् ज्योतिर्लिंग, घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग है।

यह सही है कि रुद्राक्ष धारण करने वाले को ब्रह्मत्व, रुद्रत्व और सत्य संकल्प की प्राप्ति होती है। जो रुद्राक्ष धारण करता है, उसे रुद्र रूप ही समझना चाहिए इसमें किसी प्रकार का संसय नहीं होनी चाहिए। यह भी सही है कि रुद्र+अक्ष = रुद्राक्ष होता है और रुद्र अर्थात् शिव और अक्ष अर्थात् आँसू भी होता है। शिव पुराण के अनुसार सदाशिव ने लोकोपकार के लिए पार्वती जी से कहा कि हे देवि, मैंने पूर्व समय मन को स्थिर कर दिव्य सहस्त्र वर्ष पर्यन्त तपस्या की थी। उस समय मुझे कुछ भय सा लगा- जिससे मैने अपने नेत्र खोल दिये, मेरे नेत्र खुलने पर नेत्रों से आँसुओं की वुन्दें गिरने लगी, और यह बुंद पृथ्वी पर वृक्ष का रूप लेने लगा, बाद में इसे रुद्राक्ष के रुप में जाना गया। इस वृक्ष में जो फल लगता है उसे रुद्राक्ष का फल कहा जाता है। रूद्राक्ष भगवान शिव को सबसे अधिक प्रिय है। शिवपुराण के अनुसार इसे धारण करते समय भगवान शिव का ध्यान करना चाहिए।

सनातनियों के लिए सावन महीना में कांवड़ में जल लेकर भगवान महादेव पर जल चढ़ाने का बड़ा महत्व है। पुराणों के अनुसार, समुद्र मंथन के समय, मंथन से निकले विष को, भगवान महादेव जब ग्रहण किया था, तब विष के प्रभाव से भगवान महादेव के कंठ नीला पड़ गया था और तब से वह नीलकंठ कहलाने लगे। विष के प्रभाव को दूर करने के लिए महापंडित रावण ने कांवड़ में जल भरकर लाया और भगवान महादेव पर जलाभिषेक किया। इसके बाद विष के प्रभाव से भगवान महादेव मुक्त हुए। लोगों का मानना है कि तभी से कांवड़ यात्रा शुरू हुई।

बिहार की राजधानी पटना में पटना जंक्शन से लगभग 35 किलोमीटर दूर, खुसरूपुर प्रखंड स्थित बैकटपुर गांव में, मुगल शासक अकबर के सेनापति मान सिंह द्वारा शिवलिंग रूप में भगवान शिव के साथ माता-पार्वती का निर्माण कराया गया था। इस प्राचीन शिवलिंग में 112 शिवलिंग कटिंग है जिसे द्वादश शिवलिंग से भी जाना जाता है। इस प्रकार यह प्राचीन मंदिर बैकटपुर गांव में है, जहां शिवलिंग रूप में भगवान शिव के साथ माता-पार्वती भी विराजमान हैं। यह प्राचीन और ऐतिहासिक शिव मंदिर श्री गौरीशंकर बैकुंठ धाम के नाम से भी जाना जाता है।

प्राचीन काल में गंगा नदी के तट पर यह जगह बैकुंठ वन के नाम से जाना जाता था। आनंद रामायण में इस गांव की चर्चा बैकुंठा के रूप में किया गया है। लंका विजय के बाद रावण को मारने से जो ब्रह्म हत्या का पाप लगा था, उस पाप से मुक्ति के लिए भगवान श्रीराम इस मंदिर में आए थे।

अकबर के सेनापति रहे राजा मान सिंह, जब गंगा नदी में जलमार्ग से, बंगाल विद्रोह को खत्म करने के लिए अपने परिवार के साथ रनियासराय जा रहे थे, उसी वक्त राजा मान सिंह की नाव, गंगा नदी स्थित कौड़िया खाड़ में फंस गई। काफी प्रयास करने के बाद भी जब राजा मान सिंह की नाव कौड़िया खाड़ से नहीं निकल सकी, तो पूरी रात मानसिंह को सेना सहित वहीं डेरा डालना पड़ा। उस रात को राजा मान सिंह को सपने में भगवान शंकर ने दर्शन दिया और कौड़िया खाड़ के पहले स्थापित जीर्ण-शीर्ण मंदिर को पुनः स्थापित करने को कहा। मान सिंह ने उसी रात मंदिर के जीर्णोद्धार का आदेश दिया और उसके बाद यात्रा शुरू की।

मंदिर का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा हुआ है। पुरानी कथाओं के अनुसार महाभारत काल के जरासंध से भी इसका है। मान्यताओं के अनुसार, मगध क्षेत्र के राजा जरासंध के पिता बृहद्रथ भगवान भोलेनाथ का भक्त था। शास्त्रों के अनुसार, प्रतिदिन वह गंगा किनारे आते थे और भगवान भोलेनाथ की पूजा करते थे। इसी जगह पर एक ऋषि मुनि ने राजा बृहद्रथ को संतान उत्पत्ति के लिए एक फल दिया था, राजा बृहद्रथ को दो रानियाँ थी, इसलिए राजा बृहद्रथ ने फल के दो टुकड़े कर अपनी दोनों पत्नियों को खिला दिया था। फलस्वरूप दोनों रानियों के एक पुत्र के अलग-अलग टुकड़े हुए थे जिसे जंगल में फेंकवाया गया था। उसके बाद उसे जोड़ा नाम की राक्षसी ने जोड़ दिया जिसे जरासंध के नाम से जाना गया। जरासंध भगवान शंकर का बहुत बड़ा भक्त था। जरासंध रोज इस मंदिर में राजगृह से आकर पूजा करता था। जरासंध हमेशा अपनी बांह पर एक शिवलिंग की आकृति का ताबीज पहने रहता था। जरासंध को भगवान शंकर का वरदान था कि जब तक उसके बांह पर शिवलिंग रहेगा तब तक उसे कोई हरा नहीं सकता है। जरासंध को पराजित करने के लिए श्रीकृष्ण ने छल से जरासंध की बांह पर बंधे शिवलिंग को गंगा में प्रवाहित करा दिया था और तब वह मारा गया था।

मान्यता है कि सच्चे मन से बैक‍ुंठधाम में भोले शंकर की जो पूजा करता है, उसकी मनोकामना अवश्य पूरी होती है। सावन माह में इस मंदिर में लाखों की संख्या में लोग जलाभिषेक करते हैं। जलाभिषेक के लिए पटना के कलेक्टेरिएट घाट या फतुहा के त्रिवेणी कटैया घाट से हजारों की संख्या में लोग रविवार को जल उठा कर रात भर की यात्रा कर सोमवार को जल चढाते है।

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