जितेन्द्र कुमार सिन्हा, पटना, 13 नवम्बर :: बिहार विधान सभा निर्वाचन, 2020 की समाप्ति के उपरांत 17वीं विधान सभा गठन की कार्रवाई चल रही है। सभी गठबन्धन और पार्टियाँ अपने-अपने दलों के नेता का चयन करने में लगे हैं।
शुक्रवार को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के आवास पर NDA की बैठक सम्पन्न हुआ, जिसमें नीतीश कुमार को अपना नेता माना गया है। सर्वसम्मति से विधायक दल का नेता चुनने के लिए 15 नवम्बर को 12.30 बजे एक बैठक होगी। वहीं, शाम 4.30 बजे से मंत्रिमंडल की बैठक भी हुई। बैठक में 16वीं विधानसभा को भंग करने का निर्णय लिया गया। निर्णय के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इस्तीफा देने के लिये राजभवन पहुंचे और विधान सभा भंग करने की अनुशंसा से राज्यपाल अवगत कराया। राज्यपाल ने अगली व्यवस्था होने तक उन्हे कार्यवाहक मुख्यमंत्री के रूप में कार्य करते रहने को कहा है।
राजद के तेजस्वी, हम के जीतन राम मांझी और VIP के मुकेश सहनी अपने अपने दलों का नेता चुने गए है। कांग्रेस और लेफ्ट की बैठक पर बैठक चल रही है। निर्दलीय विधायक सुमित सिंह का समर्थन भी जदयू को देने की बात सामने आ रही है।
कांग्रेस के मात्र 19 विधायक ही इस बार चुनाव जीत सके हैं। ऐसे में अब पार्टी के अंदर ही घमासान की स्थिति बनी हुई है। चुनाव में 70 सीटों के विरूद्ध 29 सीट पर मिली जीत को हार मानकर कांग्रेस में मंथन का दौर शुरू हो चुका है।
कांग्रेस के बड़े नेताओं का कथन है कि ‘हमें सच को स्वीकार करना चाहिए। कांग्रेस के कमजोर प्रदर्शन के कारण महागठबंधन की सरकार से बिहार महरूम रह गया। इस विषय पर आत्म चिंतन करना ज़रूर है कि कहां चूक हुई है।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ने सीमांचल क्षेत्र में ओवैसी की ताकत को कम आंकना एक गलती मानते हुए कहा है कि MIM की बिहार में एंट्री को शुभ संकेत नहीं मानना चाहिए। बेहतर भविष्य के लिए पार्टी में बिहार स्तर पर बड़े बदलाव की जरूरत है। उनका मानना है कि इस बार कांग्रेस ने राजद और वामदलों के साथ मिलकर चुनाव लड़ी थी जिसमें उसे अपने सहयोगियों की तुलना में सबसे कम सीटें प्राप्त हुई हैं। यह पार्टी के लिए अच्छा संकेत नहीं है। महागठबंधन को ओवैसी की पार्टी से समर्थन भी नहीं लेना चाहिए।