जितेन्द्र कुमार सिन्हा, पटना, 28 अक्तूबर ::
भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में 28 अक्टूबर, 1950 का दिन स्वर्ण अक्षरों में दर्ज है। यही वह दिन था जब इंडियन फेडरेशन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स (IFWJ) का जन्म दिल्ली के जंतर मंतर पर हुआ था। यह केवल एक संगठन की स्थापना नहीं थी, बल्कि भारतीय लोकतंत्र की रक्षा और पत्रकारिता की स्वतंत्रता के प्रति अटूट समर्पण की ऐतिहासिक शुरुआत थी।
स्वतंत्र भारत के नए संविधान के लागू होने के नौ महीने बाद जब IFWJ की नींव रखी गई, तब देश नव-निर्माण के दौर से गुजर रहा था। ऐसे समय में पत्रकारों ने यह जिम्मेदारी उठाई कि वे लोकतंत्र की आवाज बनेंगे। IFWJ ने न केवल पत्रकारों के अधिकारों की रक्षा की, बल्कि स्वतंत्र और निष्पक्ष प्रेस की परंपरा को भी मजबूत किया।
आज जब यह संगठन अपने 75 वर्ष पूरे कर रहा है, तब यह देश के सबसे बड़े पत्रकार संगठनों में से एक बन चुका है। लगभग 40,000 सदस्य, 17 भाषाओं में काम करने वाले पत्रकार और 12,000 से अधिक प्रकाशन एव चैनल, यह आंकड़ा बताता है कि भारतीय पत्रकारिता का यह परिवार कितना व्यापक और सशक्त हो चुका है।
IFWJ का इतिहास केवल उपलब्धियों का नहीं है, बल्कि संघर्ष और बलिदान की मिसाल भी है। 1975-77 के आपातकाल के दौरान जब अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर पहरा बिठाया गया, तब IFWJ के अनेक सदस्य पत्रकारों ने इस दमनकारी वातावरण का डटकर विरोध किया। विशेष रूप से संगठन के वरिष्ठ नेता और अध्यक्ष डॉ. के. विक्रम राव जैसे पत्रकारों ने जेल जाकर यह सिद्ध किया कि प्रेस की स्वतंत्रता किसी सत्ता की कृपा नहीं, बल्कि लोकतंत्र की आत्मा है।
आज जब फेक न्यूज, प्रचारवाद और कॉर्पोरेट प्रभाव जैसी चुनौतियाँ पत्रकारिता के समक्ष हैं, IFWJ अपने मूल सिद्धांतों पर अडिग है, सत्य, निष्पक्षता और जनहित।
75वें स्थापना दिवस पर, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष मोहन कुमार ने कहा है कि यह अवसर न केवल हमारे गौरवपूर्ण इतिहास पर मनन का है, बल्कि यह नई ऊर्जा के साथ स्वतंत्र पत्रकारिता की रक्षा का संकल्प लेने का भी क्षण है।
IFWJ की बिहार इकाई ने भी 28 अक्टूबर को अपने स्थापना दिवस को विशेष उत्सव के रूप में मनाया। इस अवसर पर पत्रकारों ने कलम और कैमरे को लोकतंत्र के सशक्त उपकरण के रूप में पुनः प्रतिष्ठित करने की शपथ ली। बिहार के पत्रकारों ने यह दोहराया कि वे समाचारों और विचारों के स्वतंत्र प्रवाह को बनाए रखने में कोई समझौता नहीं करेंगे।
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