पहले चरण में साइलेंट मतदाताओं ने दिखाया लोकतंत्र का परिपक्व चेहरा

जितेन्द्र कुमार सिन्हा, पटना, 06 नवम्बर ::

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के पहले चरण का मतदान अब इतिहास का हिस्सा बन चुका है, लेकिन इस मतदान की सबसे खास बात यह रही कि मतदाता उत्साह से मतदान केंद्रों तक पहुंचे, फिर भी उनके चेहरों पर कोई जोशोखरोश या नारेबाजी नहीं दिखी। वे शांत थे, संयमित थे और पूरी सजगता के साथ अपने लोकतांत्रिक अधिकार का प्रयोग कर रहे थे।

यह “साइलेंट वोटिंग” बिहार के मतदाताओं की परिपक्वता और राजनीतिक समझदारी का एक संकेत है। यह बताता है कि अब जनता न तो किसी पार्टी के शोरगुल में बहती है और न किसी प्रचार के मायाजाल में फंसती है। वह अपने विवेक से सोचकर वोट देती है और यही लोकतंत्र की असली शक्ति है।

सुबह के सात बजते ही पटना सहित सभी जिलों में मतदान केंद्रों के द्वार खुल गए। सशक्त सुरक्षा व्यवस्था के बीच पहले चरण के मतदान की शुरुआत हुई। बूथों पर सुरक्षा बलों की उपस्थिति, मतदाता पंक्तियों का अनुशासित माहौल और मतदान कर्मियों की तत्परता ने एक विश्वासपूर्ण वातावरण बनाया।

कुम्हरार विधानसभा क्षेत्र के मतदान केंद्रों पर देखा गया कि मतदाता आराम से, बिना किसी भीड़भाड़ के, एक-एक कर मतदान केंद्रों तक पहुंच रहे थे। वहां न तो किसी प्रकार की अफरा-तफरी थी, न ही किसी प्रकार की असुरक्षा की भावना।

पुरुष मतदाताओं की तुलना में महिलाओं में मतदान को लेकर अधिक उत्साह देखा गया। वे सुबह-सुबह ही अपने घरों के कार्य निपटाकर मतदान के लिए निकल पड़ीं। कई बूथों पर यह दृश्य देखने को मिला कि पुरुषों की तुलना में महिलाओं की पंक्तियाँ लंबी थीं।

जब कुछ मतदाताओं से बातचीत की गई तो उन्होंने साफ कहा कि वे “विकास” को ध्यान में रखकर मतदान कर रहे हैं। पटना शहर के कुम्हरार क्षेत्र में मतदान करने वाले सुरेन्द्र कुमार रंजन ने कहा कि “इस बार हम किसी जाति या पार्टी के नाम पर नहीं, बल्कि काम के नाम पर वोट कर रहे हैं।” सुशांत कुमार रंजन ने भी यही बात दोहराई कि “पिछले कुछ वर्षों में शहर में सड़कों की हालत, जलनिकासी की व्यवस्था और बिजली की उपलब्धता जैसे मुद्दों पर हमने सरकार का काम देखा है। अब समय है कि जो वास्तव में जनता के लिए काम करे, वही सत्ता में आए।”

फतुहा विधानसभा क्षेत्र के जैवर ग्राम के बूथ संख्या 107, 108, 109 और 110 पर भी यही नजारा देखने को मिला। लोग शांतिपूर्वक मतदान करने आ रहे थे। सुरक्षा बल हर बूथ पर मुस्तैद थे। नरेन्द्र कुमार सिन्हा ने कहा कि “इस बार सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम हैं। पहले जैसी अफवाहें या डर का माहौल नहीं है। इसलिए हमलोग निडर होकर मतदान करने आए हैं।”

कलावती सिन्हा और आभा सिन्हा जैसी महिला मतदाताओं ने कहा कि उन्हें अब किसी भी तरह का भय नहीं लगता है। बूथों पर महिला पुलिस की तैनाती ने महिलाओं को अतिरिक्त सुरक्षा और विश्वास दिया है।

इस चुनाव में सबसे दिलचस्प पहलू रहा “साइलेंट वोटर”, यानि वे मतदाता जो न तो अपनी पसंद जाहिर करते हैं, न सोशल मीडिया पर बहस में उतरते हैं, लेकिन मतदान के दिन सीधे बूथ जाकर लोकतंत्र को नया मोड़ दे देते हैं। प्रशांत कुमार सिन्हा का कहना था कि “हम किसी से बहस नहीं करते, न किसी प्रचार में हिस्सा लेते हैं। पर जब वोट देने की बारी आती है, तो हमारा एक-एक वोट सोच-समझकर पड़ता है।”

दरअसल, यही साइलेंट वोटर आज के लोकतंत्र की असली रीढ़ हैं। ये वही लोग हैं जो चुनावी मौसम में भीड़ का हिस्सा नहीं बनते, लेकिन परिणाम तय करने में निर्णायक भूमिका निभाते हैं।

इस चुनाव में महिलाओं की भागीदारी उल्लेखनीय रही। कुम्हरार, फतुहा, और पटना देहात के कई बूथों पर महिलाओं की लंबी कतारें यह दर्शा रही थीं कि अब महिलाओं की राजनीतिक चेतना पहले से कहीं अधिक बढ़ी है। महिला मतदाताओं ने बताया कि वे अब सिर्फ घरेलू मुद्दों तक सीमित नहीं हैं। वे शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा और रोजगार जैसे व्यापक मुद्दों पर सोचकर मतदान करती हैं। सुरभि सिन्हा ने कहा कि “हम अपने बच्चों का भविष्य देखकर वोट देते हैं। अब केवल नाम या वादा नहीं, काम देखना जरूरी है।”

पटना के देहात इलाकों, विशेष रूप से फतुहा और इसके आसपास के गांवों में भी मतदाताओं में जागरूकता दिखी। हालांकि शहर की तरह यहां भी भीड़भाड़ नहीं थी, पर ग्रामीण मतदाता एक-एक कर मतदान करने पहुंचे। यह दर्शाता है कि ग्रामीण समाज में भी अब राजनीतिक परिपक्वता गहराई तक उतर चुकी है। जैवर गांव के एक बुजुर्ग मतदाता प्रमोद कुमार सिन्हा ने कहा कि “पहले लोग जाति देखकर वोट देते थे, अब विकास देखकर देते हैं। गांव में सड़क, स्कूल, अस्पताल जैसी सुविधाएं होंगी तभी जीवन सुधरेगा।”

पूरे दिन मतदान केंद्रों पर शांति बनी रही। कहीं से भी किसी अप्रिय घटना की सूचना नहीं मिली। सुरक्षा बलों ने बूथों के भीतर और बाहर अनुशासन बनाए रखा। मतदाताओं ने भी बड़ी जिम्मेदारी के साथ मतदान किया। यह दृश्य बिहार के लोकतंत्र की परिपक्वता की मिसाल बन गया।

कुम्हरार विधानसभा के कई बूथों पर देखा गया कि मतदाता शांत भाव से अंदर जा रहे हैं, मतदान कर रहे हैं और फिर बिना किसी शोर के निकल जा रहे हैं। यह शांति किसी उदासीनता की नहीं, बल्कि समझदारी और आत्मविश्वास की थी।

इस बार चुनावी प्रचार में शोर जरूर बहुत था, रैलियों में भीड़, नारों का अंबार, सोशल मीडिया पर आरोप-प्रत्यारोप, लेकिन जब वोट डालने की बारी आई, तो जनता ने चुपचाप अपनी बात बैलेट के जरिए कही। यह “शांत मतदान” इस बात का संकेत है कि जनता अब केवल भाषणों पर नहीं, बल्कि जमीन पर दिखने वाले कामों पर भरोसा करती है।

साइलेंट वोटर की यह संस्कृति राजनीति को एक नई दिशा दे रही है। यह बताती है कि लोकतंत्र की असली ताकत उस आम नागरिक के पास है, जो बिना शोर किए अपना निर्णय देता है और वही निर्णय सत्ता की कुर्सी तय करता है।

बिहार जैसे राज्य में, जहां कभी जातिगत समीकरण चुनाव का केंद्र हुआ करता था, आज वहां विकास, शिक्षा और रोजगार जैसे मुद्दे प्राथमिकता पा रहा है। साइलेंट वोटिंग इस बदलाव की सशक्त अभिव्यक्ति है। यह दिखाता है कि समाज अब मतदाताओं की नई पीढ़ी के साथ आगे बढ़ रहा है, जो नारे नहीं, नतीजे चाहती है।

पहले चरण के मतदान में प्रशासन की तैयारियाँ सराहनीय रहीं। सुरक्षा बलों की सतर्कता और मतदान कर्मियों की जिम्मेदारी ने यह सुनिश्चित किया है कि कहीं भी अशांति न फैले। कई मतदान केंद्रों पर दिव्यांग और वरिष्ठ नागरिकों के लिए विशेष व्यवस्था की गई थी। रैम्प, व्हीलचेयर और पीने के पानी की सुविधा ने मतदान को सहज और सम्मानजनक बनाया।

अब सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि यह साइलेंट वोट किसके पक्ष में गया? राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि इस बार “साइलेंट बहुमत” ही चुनावी परिणामों का रुख तय करेगा। क्योंकि यह वही वर्ग है जो न तो सर्वे में बोलता है, न मीडिया को बयान देता है, लेकिन अंत में सबसे निर्णायक साबित होता है।

पहले चरण का मतदान यह साबित करता है कि बिहार का मतदाता अब पहले जैसा भावुक नहीं रहा। वह समझदार है, विश्लेषक है और राजनीतिक रूप से परिपक्व भी। वह जानता है कि उसकी चुप्पी भी बहुत कुछ कहती है, क्योंकि हर वोट एक संदेश है, और हर संदेश सत्ता के भविष्य की दिशा तय करता है।

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के पहले चरण ने जो तस्वीर पेश की है, वह लोकतंत्र की असली परिभाषा को दर्शाती है। साइलेंट मतदाताओं ने किसी नारेबाजी या बहस के बिना, अपने शांत लेकिन सशक्त निर्णय से यह दिखा दिया है कि लोकतंत्र की नींव अब पहले से कहीं अधिक मजबूत है। यह सन्नाटा दरअसल उस जागरूकता की आवाज है जो भीतर से उठती है, जो कहती है कि “हम जाग चुके हैं, हमें बहकाया नहीं जा सकता।”

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