*पंडित शम्भू नाथ झा ने किया – “स्वर्गारोहिणी यात्रा”* 

जितेन्द्र कुमार सिन्हा, पटना, 22 नवम्बर ::

धरती पर स्वर्ग की अनुभूति यदि कहीं संभव है, तो वह है उत्तराखंड की हिमगर्भित चोटियों पर स्थित पौराणिक “स्वर्गारोहिणी मार्ग”, यह वह पथ है जहाँ से धर्मराज युधिष्ठिर सशरीर स्वर्ग गए थे। इसी दिव्य और दुर्गम यात्रा को संपन्न करने का सौभाग्य मधुबनी जिला के पंडौल प्रखंड, श्रीपुर हाटी मध्य नवहय गांव के सुपुत्र पंडित शम्भू नाथ झा को प्राप्त हुआ। ज्योतिषाचार्य “पंडित शम्भू नाथ झा” ने इस अलौकिक यात्रा के दौरान जो शांति, ऊर्जा और दिव्यता अनुभव की, वह साधारण मनुष्य के लिए कल्पना से परे है।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, महाभारत युद्ध के पश्चात् जब पांडवों ने राजपाट त्यागा, तब स्वर्गारोहण हेतु वे इसी मार्ग से आगे बढ़े। द्रोपदी सहित भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव रास्ते में ही काल के गाल में समा गए, लेकिन धर्मराज युधिष्ठिर अपने सत्य और धर्म के बल पर एक स्वान के साथ सशरीर बैकुंठ के लिए प्रस्थान किया। माना जाता है कि स्वर्गारोहण के दौरान पांडवों ने 14,300 फीट की ऊंचाई पर स्थित पवित्र सतोपंथ झील में स्नान किया था।

“पंडित शम्भू नाथ झा” बताते हैं कि ‘स्वर्गारोहिणी का मार्ग’ सालों भर हिमखंडों से आच्छादित रहता है। हवा में शीत तो होती है, पर हृदय में एक अनोखी तपस्या और शांति का भाव जन्म लेता है। वे कहते हैं कि इस कठिन पथ पर कई ऐसे स्थान आते हैं जहाँ आज भी ऋषि-मुनियों की दिव्य अनुभूति होती है। कई दफा लगता है कि स्वयं किसी अदृश्य शक्ति ने मार्ग दिखाया हो। उनका मानना है कि यह यात्रा केवल शारीरिक सामर्थ्य नहीं है, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक दृढ़ता की भी परीक्षा लेती है।

बद्रीनाथ धाम से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी तय कर भोजपत्र के विस्तृत जंगलों, लक्ष्मी वन, चक्रतीर्थ जैसे पवित्र स्थलों से होते हुए “पंडित शम्भू नाथ झा” आगे बढ़े। इन स्थानों के बारे में माना जाता है कि यहां स्वयं देवी-देवताओं का वास है। सतोपंथ पहुंचने पर उन्होंने पवित्र झील में स्नान कर विधिवत रूद्राभिषेक किया, वही प्रक्रिया जो पांडवों ने हजारों वर्ष पहले की थी। हिन्दू आस्था के अनुसार, हर एकादशी को स्वयं ब्रह्मा, विष्णु और महेश इस झील में स्नान करने आते हैं। यह स्थान सदियों से तपस्वियों का प्रिय स्थल रहा है, और प्राचीन काल में यात्री यहाँ स्थित गुफाओं में रात्रि निवास करते थे।

‘स्वर्गारोहिणी’ की कठिनाई का वर्णन करते हुए “पंडित शम्भू नाथ झा” कहते हैं कि यह मार्ग जितना विकट है, उतना ही दिव्य भी। यहाँ कदम-कदम पर प्रकृति की शक्ति और परमात्मा की अनुभूति होती है। ऊंचे पर्वत, शांत झीलें, पवित्र वातावरण, और असीम शांति, सब मिलकर मनुष्य को उसकी आत्मा के और करीब ले जाता है।

“पंडित शम्भू नाथ झा” की “स्वर्गारोहिणी यात्रा” न केवल एक आध्यात्मिक उपलब्धि है, बल्कि यह दर्शाता है कि आज भी श्रद्धा, साहस और आस्था के बल पर इंसान उन स्थलों तक पहुंच सकता है, जहाँ कभी देवताओं और महापुरुषों के चरण पड़े थे।

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