जनसंचार से वैश्विक फलक पर फैलता हिन्दी

डॉ नंदकिशोर शाह

हिन्दी भाषा और जनसंचार में अन्योन्याश्रय संबंध है। जनसंचार माध्यम ने हिन्दी भाषा को भू-भाग पर अंतरराष्ट्रीय भाषा बनाने में योगदान दिया है। अब हिन्दी की दुनिया केवल अपने देश तक ही सीमित नहीं है बल्कि वैश्विक स्तर तक फैल चुकी है। आज के वातावरण में हिन्दी भाषा का प्रसार चारों ओर हो रहा है। जनसंचार माध्यमों को बनाने का कार्य भाषा द्वारा संपन्न होता है। विचार समाज को दिशा निर्देश देता है तथा पत्रकारिता संबंधित विचार का विस्तार कर समाज के विकास की वैचारिक आधारशिला को तैयार करने में योगदान देता है। हिन्दी भाषा ही जनसंचार की रीड की हड्डी है।

देश की प्रमुख समाचार पत्र पत्रिकाओं के ऑनलाइन संस्करण के कारण हिन्दी पत्रकारिता में संख्यात्मक एवं गुणात्मक दोनों दृष्टि से वृद्धि हुई है। हिन्दी में बढ़ते स्वरूप को देखते हुए इंडिया टुडे को हिन्दी संस्करण निकालने के लिए विवश होना पड़ा। कंप्यूटर को लेकर भारत में लोकप्रियता इतनी बढ़ गई कि माइक्रोसॉफ्ट कंपनी का हिन्दी संस्करण बाजार में लाना पड़ा। जबकि कंप्यूटर का विकास सर्वप्रथम रोमन लिपि से ही हुआ किंतु देवनागरी लिपि के प्रयोग का श्री गणेश होते ही बिल गेट्स को भी स्वीकार करना पड़ा कि कंप्यूटर प्रयोग में हिन्दी पूरी तरह सक्षम है। सर्वप्रथम भारतीय रिजर्व बैंक ने देवनागरी मंा ईमेल भेजने की शुरुआत की।

सोशल मीडिया के जमाने में हिन्दी को सीखने और इस्तेमाल करने का सिलसिला तेजी से आम आदमी करने लगा है। लेकिन जिस तरह की मिलावटी हिन्दी का इस्तेमाल सोशल मीडिया पर बढ़ रहा है और हिन्दी को देवनागरी की जगह यूरोपीय लिपी में लिखने का फैशन बढ़ रहा है। वह हिन्दी को हिन्दी बने रहने के लिए सवाल पैदा करता दिखाई दे रहा है। सिनेमा, विज्ञापन, वेब, बाजार, संगीत और सेवा के क्षेत्र में हिन्दी जिस तेजी से बढ़ी है, उससे हिन्दी का भविष्य उज्ज्वल दिखाई देता है।

किन्तु आज के दौर में पत्रकारिता से जुड़ी हुई कुछ अखबारों की भाषा शैली गिरती जा रही है। यह सही है कि आज कोई एक ही भाषा जानने वाला समाज नहीं रहा। आज का समाज बहुभाषिकता वाला बनता जा रहा है। जनसंचार माध्यमों में अंग्रेजी का प्रयोग इतना बढ़ गया है कि हिन्दी हिंग्लिश हो गई है। हिन्दी भाषा का रूप विकृत बनाया जा रहा है। लोग सामान्य हिन्दी के शब्दों के साथ अंग्रेजी के शब्दों का प्रयोग कर रहे हैं। ऐसे प्रत्येक शब्द का प्रयोग करते हुए हमें यह सोचना चाहिए कि जो शब्द एक करोड़ प्रतियों में छप जाएगा और कई दिनों तक करोड़ों-करोड़ों पाठक जिसे पढ़ेंगे। एक दिन वह भ्रष्ट भाषा शुद्ध हिंदी मान ली जाएगी। आज जनसंचार माध्यमों में प्रयुक्त हिन्दी भाषा को संशोधित करने के लिए अनुसंधान की आवश्यकता है।

सन 1826 में कलकत्ता से हिन्दी में पहले समाचार पत्र उदंत मार्तंड की शुरुआत ने एक नए युग का सूत्रपात किया। इस नए युग में पत्रकारिता विज्ञापन एवं प्रचार-प्रसार के लिए हिन्दी भाषा का व्यापक प्रयोग किया जाने लगा। सन 1913 में हिन्दी में पहली फिल्म राजा हरिश्चंद्र दादा साहेब फाल्के ने बनाई थी। हिन्दी भाषा का सही परिचय तभी मिला जब यह गूंगी फिल्म बोलने लगी। सन 1913 में आलम आरा के प्रदर्शन के साथ ही भारतीय परिदृश्य में नई क्रांति का उदय हुआ, जिसमें श्रव्य- दृश्य माध्यम आदि के रूप में हिन्दी भाषा ने अपनी क्षमता का परिचय दिया। बाद में आकाशवाणी, टेलीफोन, दूरदर्शन, संगणक, इंटरनेट संचार माध्यम में हिन्दी भाषा अपनी क्षमता का परिचय दे रही है। धर्म-दर्शन सहित बच्चों के लिए तरह-तरह के मनोरंजक एवं ज्ञानवर्धक कार्यक्रमों को हिन्दी भाषा में प्रसारित कर रहे हैं। हिन्दी फिल्मी देश में ही नहीं विदेशों में भी बहुत पसंद की जाती है। भारत के बाहर हिन्दी अपने मौलिक रूप में कहीं ज्यादा सुरक्षित और मर्यादित है। अतः हिन्दी अपनाए हिन्दुस्तान को मजबूत बनाए।