भारत में लागू हुआ “समान नागरिक संहिता कानून

जितेन्द्र कुमार सिन्हा, पटना, 11 मार्च ::

भारत ने *समान नागरिक संहिता कानून* सोमवार को अधिसूचित कर दिया है। कानून लागू होने पर तीन देशों के पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बंगलादेश से भारत आए अल्पसंख्यक शरणार्थियों को नागरिकता मिलने की रास्ता साफ हो गया है। शरणार्थियों को नागरिकता देने का पूरा अधिकार केन्द्र सरकार के पास होगी।

इस कानून के तहत बांग्लादेश से 31 दिसंबर 2014 से पहले, आने वाले छह अल्पसंख्यकों (हिंदू, ईसाई, सिख, जैन, बौद्ध और पारसी) को भारत की नागरिकता देने का रास्ता साफ हो गया है।

समान नागरिक संहिता कानून के तहत ऑनलाइन पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन के लिए लांच किया जायेगा। केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने इसका ड्राई रन संभवतः कर लिया है। इस पोर्टल के माध्यम से शरणार्थी अल्पसंख्यकों को अपना रजिस्ट्रेशन कराना होगा और सरकारी जांच पड़ताल होने के बाद इस कानून के तहत उन्हें नागरिकता दी जाएगी।

इसके लिए बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आए शरणार्थी अल्पसंख्यकों को कोई दस्तावेज देने की जरूरत नहीं होगी।

भारतीय जनता पार्टी ने वर्ष 2019 में अपने चुनावी घोषणा पत्र में समान नागरिक संहिता कानून लागू करने की बात कही थी और 2020 में संसद द्वारा समान नागरिक संहिता पारित किया गया था। कतिपय कारणों से नियम बनाने में समय लगा और सोमवार (11मार्च,2024) को यह कानून लागू हो गया। इस कानून के लागू होने से वैसे शरणार्थियों को जो गैर मुस्लिम हैं उन्हें भी भारत की नागरिकता मिल सकेगी।

बंगला देश से सटे असम और बंगाल में समान नागरिक संहिता कानून का विरोध किया जा रहा है और कई राज्य ने इसका विरोध भी किया है।

देखा जाय तो दुनियाँ के अधिकांश देशों में नागरिक कानून सबके लिए समान है। भारत में वोट बैंक की राजनीति करने वाले लोग “समान नागरिकता संहिता” का पुरजोर विरोध करते रहे है। लेकिन किसी भी धर्मनिरपेक्ष देश के लिए कानून, धर्म के आधार पर नहीं होनी चाहिए। यदि देश और राज्य धर्मनिरपेक्ष है, तो कानून धर्म पर आधारित कैसे हो सकता है?

भारत में “समान नागरिकता संहिता” लागू करने से संबंधित कुछ राज्यों में सर्वोच्च न्यायालय और उच्य न्यायालय के सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीशों की अध्यक्षता में समिति बनी थी, उसके समक्ष विभिन्न धर्मों के लोग अपने- अपने विचार रख रहे थे। केन्द्र सरकार हर प्रकार की लोकतांत्रिक चर्चा पूरा होने के बाद ही देश में “समान नागरिक संहिता” लाने के लिए प्रतिबद्ध थी।

भारतीय संविधान में “समान नागरिक संहिता” का उल्लेख भाग 4 के अनुच्छेद 44 में है। इसमें नीति निर्देश दिया गया है कि “समान नागरिक कानून” लागू करना हमारा लक्ष्य होगा। डॉ भीम राव अंबेडकर भी इस संहिता के पक्षधर थे।

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व वाली सरकार ने 4 फरवरी 2024 को मंत्रिमंडल की बैठक में समान नागरिक संहिता के मसौदे को मंजूरी दी थी, उसके बाद उत्तराखंड विधानसभा में समान नागरिक संहिता (यूसीसी) बिल रखा गया था। विधान सभा में 80 प्रतिशत सहमति के साथ प्रस्ताव स्वीकृत किया गया। इस प्रकार उत्तराखंड विधानसभा में यूसीसी बिल पास होने के बाद उत्तराखंड समान नागरिक संहिता लागू करने वाला देश का पहला राज्य बन गया था।

समान नागरिक संहिता लागू हो जाने पर विशेष रूप से अल्पसंख्यक वर्ग की महिलाओं की स्थिति में व्यापक सुधार आयेगा। “समान नागरिकता संहिता” बन जाने के बाद उनके लिए अपने पिता की संपत्ति पर अधिकार जताने और गोद लेने जैसे मामलों में एक समान नियम लागू हो सकेगा। समान नागरिक संहिता लागू होने से में सभी धर्मों, समुदायों के लिए एक सामान, एक बराबर कानून होगा। लगता है कि इसे लागू करने के उद्देश्य से ही पूरे भारत में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता कानून लागू किया गया है।

जहां तक मैं समझता हूं कि समान नागरिक संहिता कानून लागू होने से राज्य में बहु विवाह पर रोक लगेगा, एक पति या पत्नी के जीवित रहते कोई नागरिक दूसरा विवाह नहीं कर सकेगा, ‘लिव-इन’ में रहने वाली महिला को अगर उसका पुरूष साथी छोड़ देता है तो वह उससे गुजारा-भत्ता पाने का दावा कर सकगी, हलाला और इद्दत पर रोक होगी, तलाकशुदा पति या पत्नी का एक दूसरे से पुनर्विवाह बिना किसी शर्त के अनुमन्य होगा, वहीं पुनर्विवाह से पहले उन्हें किसी तीसरे व्यक्ति से विवाह करने की आवश्यकता नहीं होगी।

भारत में आपराधिक कानून और उस पर सजा का प्रावधान सभी धर्मों के अनुयायियों पर समान रूप से लागू होता है, यानि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) में सभी धर्म के लोगों के लिए सजा का कानून समान है। ऐसी स्थिति में प्रश्न यह उठता रहा है कि “फैमली लॉ” में समानता क्यों नहीं होनी चाहिए? अब समान नागरिक संहिता कानून लागू होने पर ऐसा लगता है कि अल्पसंख्यक देश के मुख्य धारा में आ जायेंगे।

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