जितेन्द्र कुमार सिन्हा, पटना, 17 जून ::
भारत में सभी धर्मों को बराबर सम्मान दिया जाता है, इसलिए भावना ही भारतीय संस्कृति की खासियत है “सर्वधर्म समभाव”। भारत हमेशा शांति, सदभाव और भाईचारा में विश्वास करता है। आजकल देश धर्म पर टिप्पणी कर विवाद का वातावरण बन गया है, जो खेद जनक है।
किसी भी धर्म की टिप्पणी को लेकर देश के विभिन्न राज्यों में तोड़-फोड़ होने लगती है और यह प्रशासन तंत्र पर पत्थर वाजी तो आम बात हो गई है, जो नहीं होना चाहिए। होना यह चाहिए था कि आवश्यकता पड़ने पर अपने अपने धर्म के सम्बन्ध में तथ्य परक जानकारी से समाज के सभी लोगों को टीवी के माध्यम से जानकारी देनी चाहिए, ताकि धार्मिक विवाद सदा के लिए बंद हो जाय। यह न होकर मात्र विरोध करना, तोड़फोड़ करना, पत्थर वाजी करना, तरह तरह की मांग करना, यह सब गलत बातों को बल देता है।
देश में अमन-शांति के लिए कई राजनीति पार्टी हस्ताक्षर अभियान चलाने लगते है, लोगों को जागरूक करने की पहल करने लगते है, आवश्यकता पड़ने पर गांधीवादी नीति अपनाने की गुजारिश करने लगते है। जबकि किसी भी धर्म हिंसा करने की इजाजत नहीं देता है, इसलिए चाहिए कि लोगों को किसी बात के विरोध के लिए व्यवहार और व्यक्तित्व को हथियार बनाये। भीड़ जुटाकर कहीं भी , किसी भी बात पर पत्थरबाजी करना या हिंसा करना गैर जिम्मेदाराना काम है।
जहां तक तोड़फोड़ और अशांति की अप्रिय घटना होती है, वहीं कुछ कट्टरपंथियों द्वारा गलत काम करने पर इनाम देने की घोषणा कर दिया जाता है। लोग शायद भूल गये हैं कि प्रख्यात शायर इकबाल ने यह पंक्ति लिखा था “मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना।” इसलिए देशवासियों को विवाद के पीछे की असली सच्चाई को समझना चाहिए और अनावश्यक तूल देने से बचना चाहिए। देश के सभी धर्म के लोगों को शांति, सदभाव और भाईचारे की राह पर चलकर देश की प्रगति का रास्ता चुनना चाहिए। ऐसा करने से सब लोगों के लिए बेहतर होगा।
भारत में अधिकांश लोग सभी धर्मों का सम्मान करने में विश्वास रखते है, यही कारण होता है कि यहाँ हर धर्म के लोग दुनिया के अन्य देशों के मुकाबले ज्यादा शांति और सुकून से रहने का अनुभव करते है।
देखा जा रहा है कि आज कल बच्चों में पनपती हिंसक प्रवृत्ति दिनों दिन चिंता का विषय बनता जा रहा है। यह सही है कि भारत में ऐसी व्यवस्था बैठे बिठाये नहीं बन रही होगी, बल्कि इसके पीछे कोई न कोई आवश्य काम कर रहा होगा। अब भारत की राजनीति में राष्ट्रवाद के जगह पर कट्टरवाद हावी होता दिख रहा है।
दुखद स्थिति यह है कि जब कानून व्यवस्था अपना काम करता है तो कुछ धर्म के लोग अपने धर्म के खिलाफ मानकर हो हल्ला करने लगते है। यह भी देखा जा रहा है कि जब किसी धर्म के लोगों के मतलब की बात होती है तो कानून के मुताबिक उसे सही कहा जाता है और जब उनको अपने मतलब का नहीं लगता है तो अपने धर्म की दुहाई देने लगते है। जब दूसरे धर्म वाले अपनी आस्था की बात करते है तो दूसरे धर्म वाले उनके के खिलाफ हल्ला बोल कर कानून की दुहाई देने लगते है।
अच्छा तो यह होता कि जो राष्ट्रवाद के विरोध में काम करे, चाहे वह किसी भी धर्म के हो, उनको केन्द्र और राज्य सरकार से मिलने वाली सभी सुविधाएं बन्द कर देनी चाहिए।