अंतर्राष्ट्रीय वेबिनार ” प्रकाशनार्थ अंतर्राष्ट्रीय वेबिनार शिक्षा पर वैश्विक आपदा का प्रभाव ऑनलाइन शिक्षा पारंपरिक शिक्षा का विकल्प नहीं

बिंदेश्वर प्रसाद गुप्ता

कोविड-19 की आपदा से समग्र संसार पीड़ित है। इससे न केवल जनधन की हानि हुई है ,बल्कि इसका दुष्प्रभाव जीवन के हर एक क्षेत्र पर पड़ा है और शिक्षा व्यवस्था को सबसे बड़ा आघात पहुंचा है । अन्य राष्ट्रों की भांति रूस में भी शिक्षा पर बुरा प्रभाव पड़ा है । ऑनलाइन शिक्षा तो दी जा रही है , किंतु छोटे बच्चे तथा पढ़ाई में मन नहीं लगाने वाले बच्चे को इससे कोई लाभ नहीं हो रहा है।

विगत दिनों ,भारतीय रूसी मैत्री संघ,दिशा, मास्को, जापान हिंदी कल्चरल सेंटर ,टोक्यो तथा बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन, पटना ( बिहार) के संयुक्त तत्त्वावधान में ” शिक्षा पर वैश्विक आपदा का प्रभाव ” विषय पर अंतर्राष्ट्रीय ऑनलाइन वेबिनार आयोजित किया गया जिसका उद्घाटन भारतीय रूसी मैत्री संघ दिशा, मास्को, के अध्यक्ष रामेश्वर सिंह ने इस वेबिनार का उद्घाटन करते हुए उपरोक्त बातें कही ।

वेबिनार में लगभग सभी वक्ताओं का यही कहना रहा कि कोविड-19 की वैश्विक आपदा के कारण विद्यार्थियों की शिक्षा हेतु ऑनलाइन कक्षा की व्यवस्था विवशता की आवश्यकता बनी है । इस पद्धति में अनेक त्रुटियां हैं। इसे एक ‘ कामचलाऊ ‘ विकल्प भर माना जाना चाहिये। यह व्यवस्था विद्यालयों , महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में दी जाने वाली पारंपरिक शिक्षा व्यवस्था का विकल्प नहीं हो सकती।

अनुराग शर्मा , मुख्य संपादक, ‘ सेतु ‘
(मासिक ) ,पीटरवर्ग ,अमेरिका, ने अमेरिका में कोरोना के प्रभाव की चर्चा करते हुए कहा कि शिक्षा पर अमेरिका में अन्य राष्ट्रों की तुलना में उतना गहरा दुष्प्रभाव इसीलिए नहीं हुआ कि वहां ऑनलाइन और डिजिटल शिक्षा से संबंधित आधारभूत संरचना पर्याप्त रूप से सुदृढ़ है । जब ‘आग लगे तब कुआं ‘खोदना लाभकारी सिद्ध नहीं होता । हमें दूरगामी सोच के साथ अपनी संरचना विकसित करनी चाहिए।

डॉक्टर करुणा शंकर उपाध्याय, शैक्षिक संगोष्ठी के मुख्य वक्ता तथा विभागाध्यक्ष, हिंदी विभाग, मुंबई विश्वविद्यालय का कहना था कि भारत में ऑनलाइन शिक्षा के लिए आधारभूत संरचना का घोर अभाव है। ग्रामीण क्षेत्रों में मात्र 15% विद्यार्थियों के पास स्मार्टफोन या लैपटॉप उपलब्ध है । 30% विद्यार्थी भी कक्षा में उपस्थित नहीं होते हैं ।उनमें से भी कितने निरंतर बने रहते हैं और ध्यानपूर्वक सुनते हैं, यह कहा नहीं जा सकता।

इंग्लैंड के लंदन से जुड़े चर्चित कवि ,लेखक आशीष मिश्र ने बताया कि यहां की सरकार शिक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता में रखती है। अतः इंग्लैंड में सार्वजनिक बंदी की प्रक्रिया में विद्यालयों और महाविद्यालयों को सबसे अंत में रखा गया। सबसे अंत में, विद्यालयों और महाविद्यालयों को बंद किए गए । डॉ.रमा शर्मा ,अध्यक्ष ,जापान हिंदी कल्चरल सेंटर , टोक्यो का कहना था कि जापान एक समृद्ध देश है। यहां सभी प्रकार की तकनीकी सुविधा उपलब्ध है और सभी इसके उपयोग की विधि भी जानते हैं। इसीलिए डिजिटल शिक्षा का यहां अपेक्षाकृत पर्याप्त लाभ उठाया गया है । किंतु यह विद्यालयी शिक्षा का विकल्प नहीं हो सकता ।

डॉक्टर अनिल सुलभ ,अध्यक्ष, बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन, पटना , बिहार , ने इस अंतर्राष्ट्रीय वेबिनार की अध्यक्षता करते हुए कहा कि भारत जैसे विकासशील राष्ट्र में जहां ऑनलाइन शिक्षा के लिए तकनीकी आधारभूत संरचना विद्यालयों तथा महाविद्यालयों के सभी विभागों में अभाव है, ऑनलाइन खानापूर्ति ही साबित हुई है। शिक्षक समुदाय भी इस क्षेत्र में तकनीक के उपयोग करने की विधि से प्रायः अपरिचित हैं। अस्तु ,यह पद्धति वर्तमान परिस्थिति में उपयोगी सिद्ध नहीं हो सकती। उनका कहना था कि यह ऑनलाइन पद्धति पारंपरिक शिक्षा पद्धति का न तो कभी विकल्प हो सकती है ,और न ही बनायी जानी चाहिए। इस पद्धति से किसी प्रकार से सैद्धांतिक शिक्षा तो संभवतः दी भी जा सके , किंतु प्रायोगिक प्रशिक्षण संभव नहीं हो सकता । उन्होंने कहा कि कोई भी आपदा या स्थिति दीर्घकालीन नहीं होती । निकट भविष्य में संसार के लोग इस आपदा से मुक्त भी होंगे और पारंपरिक शिक्षा पुनः आरंभ होगी ।

इनके अतिरिक्त ,प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा ,हिंदी विभागाध्यक्ष ,विक्रम विश्वविद्यालय ,उज्जैन(मध्य -प्रदेश) तथा भूपेंद्र कलसी ,साहित्य मंत्री, बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन पटना ने भी अपने विचार व्यक्त किए। वेबिनार संगोष्ठी की संयोजिका थीं — डॉक्टर मोनिका देवी , सदस्य , जापान हिंदी कल्चरल सेंटर , टोकियो।
इस वेबिनार में डॉक्टर अर्चना त्रिपाठी ,योगेंद्र प्रसाद मिश्र , बिंदेश्वर प्रसाद गुप्ता, डॉक्टर विष्णुपुरी ,डॉक्टर शालिनी पांडे, डॉ. पंकज प्रियम सहित लगभग ढ़ाई हजार दर्शकों ने अपनी उपस्थिति दर्ज करते हुए वेबिनार से लाभान्वित हुए।

वरिष्ठ कवि ,लेखक व पत्रकार
मो. –8409393487

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