जितेन्द्र कुमार सिन्हा, 19 अक्टूबर ::
आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को (नवरात्रि के तीसरे दिन) माँ चंद्रघंटा की आराधना की जाती है। माँ दुर्गा के इस रूप की विशेष मान्यता है, क्योंकि माँ इस रुप में धर्म की रक्षा और असुरों का संहार करने के लिए अवतरित हुई थी।
पौराणिक कथाओं के अनुसार माँ चंद्रघंटा के स्वरूप को परम शांतिदायक और कल्याणकारी माना गया है। माँ चंद्रघंटा के दस हाथ है, जो शस्त्र-अस्त्र से विभूषित हैं और माँ की सवारी सिंह है। मस्तिष्क पर घंटे के आकार का आधा चंद्र है और रूप रंग स्वर्ण के समान है।
माँ चंद्रघंटा की पूजा- उपासना से अलौकिक ज्ञान की प्राप्ति और साहस – निडरता में वृद्धि होती है। भय से मुक्ति मिलती है।
माँ चंद्रघंटा की पूजा मंत्र है-
या देवी सर्वभूतेषु मां चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमो नम:।।
माँ चंद्रघंटा ब्रह्मा, विष्णु और महेश के मुख के ऊर्जा से उत्पन्न हुई थी। माँ चंद्रघंटा को शंकर से त्रिशूल, विष्णु से चक्र देवराज इंद्र से एक घंटा, सूर्य से तेज और तलवार, सवारी के लिए सिंह के अतिरिक्त सभी देवी देवताओं से अस्त्र मिला था। और माँ चंद्रघंटा ने महिषासुर का संहार कर देवताओं की रक्षा की थी।