भारत की भिन्नताओं में एकता का संदेश देती नाट्य प्रदर्शन भारत की संतान

ख़ास रिपोर्ट-

कैप्शन-भारत की संतान कार्यक्रम में शामिल युवा

एक व्यक्तित्व जो भारत अनेक भाषाओं को संस्कृतिक पटल पर लाने का जीवंत उदाहरण है। व्यक्तिव ऐसा जो देश और दुनिया का नाज़िर बन चुका है , नाम है नरेंद्र भाई-

भाषाओं की जीवंत गाथा है भारत की संतान

गीता कौर /कुमुद रंजन सिंह की समलित रिपोर्ट-

भारत की संतान एक टाइटल है।टाइटल एक सांस्कृतिक कार्यक्रम का जो कि अपने आप में एक अद्भुत प्रस्तुति है जिसमें हमारे देश की संस्कृति को अनेकता ने एकता के रूप में प्रदशित किया जाता है। संविधान की अनेक भाषाओं को उसके ही रंगरूप के साथ जिसे पिरोया गया है। इन भाषाओं को अपने अलग अलग रूप के साथ नाचता देख हर वो व्यक्ति खुद को भारत की एक सुन्दर और मनमोहक छवि में पाता हैं ।

भाषाओं की इस जीवंत गाथा को संविधान की 18 भाषाओं के साथ तैयार किया गया है। जिसमें संस्कृत, मणीपुरी, असमिया, कश्मीरी, गुजराती, मलयालम, बंग्ला, मराठी, तेलंगू, सिंधी, ओड़िया, नेपाली, कोंकणी, उर्दू, कन्नड़, पंजाबी, तमिल और हिंदी शामिल है।

क्या महत्व है इस कार्यक्रम का?

कैप्शन-कार्यक्रम की तैयारी कराते नरेंद्र भाई

भारत की संतान कार्यक्रम करने के पीछे बड़ा महत्व है हमारे भारत देश में 1654 मातृभाषा है और हमारे भारत के संविधान में 18 अधिक 4 भाषाओं को जोड़ा गया है .. सोवियत रूस में 16 भाषा बोलते थे पर वहां उस देश में भाषा के नाम पर झगड़े हुए और एक देश के 16 देश बन गए। श्रीलंका में 2 भाषा है सिंहाली और तमिल , इस देश में 2 भाषा के कारण भी झगड़े हो रहे .. भारत में भाषा के नाम पर कई विवाद हो चुके हैं, झगड़े हो चुके हैं, इसलिए भारत के संतान के कार्यक्रम के माध्यम से भारत देश को भाषा के नाम पर या धर्म के नाम पर टूटने नहीं देना है।यह हमारा प्रयास है । भारत की संतान, कार्यक्रम के माध्यम से संविधान के 18 भाषा को आम जनता सुनती हैं , उस राज्य की वेशभूषा को देखते हैं और उस राज्य की संस्कृति को देखने को मौका मिलता है .. मतलब भाषा, वेशभूषा और संस्कृति का यह सुंदर मिलाप है. इस कार्यक्रम से ” भिंन्न भाषा भिंन्न वेश -भारत अपना एक देश ” यह संदेश दिया जाता है ।

नरेंद्र भाई के बारे में ख़ास बातें जो सबको जाननी चाहिये उनके कलम से टेलीफोनिक सम्पर्क में उन्होंने बताया-


-नरेंद्र भाई की फ़ोटो-

मेरा नाम नरेंद्र पद्माकर वडगांवकर है। मैं महाराष्ट्र में धुले शहर में रहता हूं .
मेरा जन्म धुले जिले में एक छोटे से गांव में हुआ है .. मेरा बचपन का नाम ज्ञानेश्वर है ..
मेरे माता जी का नाम पद्मावती और पिताजी का नाम पद्माकर बापू जोशी ..मेरे पिताजी पुलिस इंस्पेक्टर होने के कारण मेरी बचपन की पढ़ाई महाराष्ट्र के अलग-अलग जिलों /गांव में हुई.
और दसवीं के बाद कॉलेज की पढ़ाई मेरी औरंगाबाद शहर में हुई. मैंने एम कॉम और बैचलर ऑफ जर्नलिज्म की डिग्री मराठवाडा विद्यापीठ , औरंगाबाद ( महाराष्ट्र ) से हासिल की है।

मेरे शौक-
स्कूल में पढ़ते समय मुझे ड्राइंग का बहुत शौक था , मैं दसवीं के बाद ड्राइंग कॉलेज जाना चाहता था. लेकिन पिताजी के इच्छा के कारण मैंने कॉमर्स लिया . जब मैं कॉलेज मे बी कॉम फर्स्ट ईयर में था. तो कॉलेज में राष्ट्रीय सेवा योजना का स्वयंसेवक के रूप में मैंने काम करना चालू कर दिया . एनएसएस में समाज सेवा का पाठ पढ़ने लगा तब से मुझे समाज सेवा करने की मन में इच्छा पैदा हो गयी ।

1992 में हमारे विद्यापीठ से और महाराष्ट्र की ओर से मेरा चयन दिल्ली के आरडी परेड के लिये हुआ . दिल्ली के राजपथ पर राष्ट्रीय परेड में राष्ट्रीय सेवा योजना का परेड चमू / जत्था का अखिल भारतीय राष्ट्रीय सेवा योजना परेड पथ का मुझे राष्ट्रीय नेतृत्व अर्थात कमांडिंग करने का मौका मिला । इस शिविर में मुझे मिस्टर आईडी अर्थात राष्ट्रीय आदर्श युवक का सम्मान मिला। यह राष्ट्रीय नेतृत्व करने वाला मैं महाराष्ट्र का पहला व्यक्ति था। और मुझे राष्ट्रीय नेतृत्व करने का मौका मिला ।
महाविद्यालय में पढ़ते समय युवा महोत्सव में फाइन आर्ट यानी की चित्रकला स्पर्धा में पोस्टर मेकिंग कोलाज और रंगोली के स्पर्धा में तीन स्वर्ण पदक प्राप्त हुए। अन्य स्पर्धा में भी बहुत सारे पुरस्कार मिले । इस माध्यम से मेरे सामाजिक विचारों को चित्रों के माध्यम से समाज के सामने रखने लगा।

पढ़ाई करते समय एन एस एस द्वारा कई राष्ट्रीय युवा शिविरों में सहभागी होने का मौका मिला और विद्यापीठ को बहुत सारे पुरस्कार ला कर दिए । बीकॉम फाइनल ईयर की एग्जाम होने के बाद गर्मियों की छुट्टियों में महाराष्ट्र के जाने-माने समाज सेवक बाबा आमटे ( कुष्ठ रोगियों की सेवा की ) जी के श्रम संस्कार छावनी / शिविर में हिस्सा लिया और बाबा आमटे कुष्ठ रोगियों की सेवा करते हैं यह देख कर मेरे मन अंदर समाज सेवा करने की इच्छा और प्रबल हुई । उसके बाद मैं युवाओं को साथ लेकर औरंगाबाद शहर में युवा शिविर लेने लगा ।

जीवन परिवर्तन और भाई जी का साथ-
1991 में आदरणीय भाई जी अर्थात एसएन सुब्बाराव जी के राष्ट्रीय युवा योजना द्वारा आयोजित कानपुर उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय एकता युवा शिविर में सहभागी होने का मौका मिला । इस शिविर में 7 दिन में मैं भाई जी के बारे में बहुत सोचने लगा उनकी पूरी जानकारी लेने लगा , कि इस व्यक्ति को देश में एकता के लिए काम करने के लिए क्या आवश्यकता है ? क्यों यह सब करना चाहते हैं ? और उसी वक्त मैंने सोच लिया कि मैं भी देश की सेवा करु। इसीलिए उसी वक्त प्रण किया कि मैं भाई जी के साथ काम करुगा।
मेरी पढ़ाई पूरी होने के बाद मेरे मन में बार-बार प्रश्न उठा था कि कि मैं समाज सेवा करूं या नौकरी कर कर गृहस्ती बनाकर अपना जीवन बिताऊ!!
6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद को गिरा दिया गया उसके बाद पूरे भारत में दंगे फसाद होने लगे उस वक्त आदरणीय भाई जी ने 2 अक्टूबर 1993 को सद्भावना रेल एवं साईकिल यात्रा की शुरुआत की यह ऐतिहासिक यात्रा 8 महीने के लिए पूरे भारत पर भ्रमण कर रही थी 1993 में, मैं मास्टर ऑफ जर्नलिज्म की पढ़ाई कर रहा था उसी वक्त महाराष्ट्र में लातूर जिले में बड़ा भूकंप हुआ वहां पर मैं जाकर लोगों की सेवा करने लगा । जब मुझे सद्भावना रेल यात्रा का जानकारी मिली तब मैं इसमें सहभागी हो गया इस यात्रा में मैं आखरी 6 महीने रहा ( बाद में यह यात्रा दो दो महीने के लिए फिर से दो बार निकली थी ) इस यात्रा दौरान मैं मास्टर ऑफ जर्नलिज्म की परीक्षा नहीं दी ।तब मैंने सोचा था कि कुंभ मेला 12 साल के बाद आता है और परीक्षा हर साल आती है .. तो मैंने तय किया की ऐसी ऐतिहासिक यात्रा में मुझे फिर से मौका नहीं मिलेगा और मैंने नीश्चय किया कि मैं 6 महीने की यात्रा पूरी करूं और परीक्षा बाद में कभी भी दे सकता हूं । उस वक्त मुझे भाई जी के साथ रहने का मौका मिला ।उनके विचारों को नजदीक से उनके साथ ही समझने लगा और भाई जी से बहुत प्रभावित हुआ और सोच लिया कि मैं भी बिना शादी करके बिना नौकरी करके मैं उनके साथ अपना पूरा जीवन देने के लिए तैयार हो गया। तब से मैं आज तक भाई जी के साथ पूरा तन मन से देश की सेवा कर रहा हूं । उस वक्त मेरे माता पिता मेरी शादी के बात कर रहे थे तब मैंने उसे कहा कि , आपने मुझे तो बहुत अच्छे दो आदर्श महानुभाव के नाम दिया है एक स्वामी विवेकानंद जी का नाम नरेंद्र और मेरा बचपन का नाम ज्ञानेश्वर जो महाराष्ट्र के एक महान संत का नाम मुझे आपने दिया तो मैं इन महान दो व्यक्ति को जैसे मैं नही बन सकता हूं , पर मैं कुछ अंश बनने की कोशिश तो करूं , इसीलिए मैंने शादी नहीं की और नौकरी भी नहीं की…..

प्रेरणा-
मेरे सामाजिक कार्य के लिए मुझे बाबा आमटे , डॉक्टर एसएन सुब्बाराव भाईजी और मेरे माता-पिता से प्रेरणा मिली,,

विदेशों में भारत की संतान कार्यक्रम-
आदरणीय डॉ. एस. एन. सुब्बाराव (भाई जी) के राष्ट्रीय युवा योजना आयोजित,राष्ट्रीय एकता युवा शिविर, जो कि भारत मे ही नही अपितु अन्य देशों में भी आयोजित होते है। जिसमें अलग अलग राज्य व देश के युवा प्रतिभागी भाग लेते हैं। शिविर में उपस्थित इन्ही में से कुछ युवा साथी अपनी सहभागिता “भारत की सन्तान” कार्यक्रम केे निर्देशक नरेन्द्र भाई के साथ कार्यक्रम की प्रस्तुति के लिए पूर्व तैयारी करते हैं।


कार्यक्रम की पूर्व तैयारी करते बच्चे

समाज सेवा से “भारत की संतान कार्यक्रम” का निदेशक बनने का अनुभव

-मुझे बचपन से ड्राइंग याने की चित्रकला में बहुत रुचि थी, कोरियोग्राफी या नृत्य इस कला में मेरी कोई रुचि नहीं थी.. मैंने कभी मेरे भाई या मेरे दोस्तों की शादी के बारात में कभी भी नृत्य डांस नहीं किया .. पर आज भारत के संतान का कार्यक्रम का निर्देशन , वेशभूषा , नृत्य यह सब कर रहा हूं . बहुत ही महत्वपूर्ण कारण है कि , इस कार्यक्रम में मैं खुद सहभागी होता था . सद्भावना रेल यात्रा में यह कार्यक्रम रोज ही होता था उस वक्त मैंने देखा कि इसमें सहभागी होने वाले कलाकार भाषा गीत पर कोई भी एक्शन /नृत्य करते थे , वेशभूषा भी कई बार बदल जाती थी । इस कारण से इस कार्यक्रम की वेशभूषा सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है . वेशभूषा का ही एक अपना अनोखा अंदाज होता है, और वह बहुत ही प्रभावित होती है . आज मेरे बैग में भारत की संतान के अलग-अलग 15 वेशभूषा है . यह मैं साथ में लेकर चलता हूं. दूसरा मुद्दा यह है कि इतना अनोखा कार्यक्रम को एक विशेष प्रकार की डिसिप्लिन होना बहुत जरूरी है। तो मैंने अलग-अलग राज्यों के हमारे युवा कलाकार साथियों से हर भाषा का नृत्य की जानकारी हर भाषा गीत का अर्थ और अर्थ का अभ्यास किया। इस प्रोग्राम को एक अच्छी तरह से डिसिप्लिन में डाला . मुझे किसी ने इस प्रोग्राम का कोरियोग्राफी सिखाया नहीं है मैं अपने अनुभव से बहुत कुछ सीख गया।

शिविर संचालन का अनुभव-
1998 के एक शिविर में भाई जी काफी अस्वस्थ थे, उस शिविर को संचालित करने का मुझे पूरा मौका मिला था . आखरी दिन भाई जी का स्वास्थ्य अच्छा हो गया तो मैंने कहा भाई जी शिविर में सब कुछ हुआ लेकिन भारत के संतान नहीं हो पाया ? तब भाई जी ने मुझे एक अलग ही चुनौती दी और कहा जिस शिविर में नरेंद्र भाई हैं उस शिविर में भारत के संतान क्यों नहीं होगा !! तो यह चुनौती मैंने स्वीकार कर ली और कुछ घंटों में भारत की संतान कार्यक्रम की प्रस्तुति दी . इसलिए भाई जी ने मुझे प्रशंसा पत्र भी दिया . मेरा कहना है कि इस अच्छे प्रोग्राम को और कैसे अच्छे कर सकते हैं क्योंकि यह कार्यक्रम समाज के अंदर लोगों को राष्ट्रीय एकता की भावना को मजबूत करती है . इसलिए भाई जी ने मुझे भारत की संतान का निर्देशक का सबको परिचय करवा देते हैं । यह मेरे लिए बड़ी गौरव की बात है और भाई जी का यह एकता का संदेश इस कार्यक्रम के द्वारा पूरे भारत में ,विदेशों में करने का मेरा प्रयास रहेगा. …

भारत की संतान कार्यक्रम की शुरुआत
भारत की संतान का कार्यक्रम कब से शुरुआत हुई है यह तो मैं भी ठीक से नहीं जानता .. जब मैं एन वाई पी के राष्ट्रीय युवा शिविर कानपुर (उत्तर प्रदेश ) में 1991 में सहभागी हुआ , उस वक्त शिविर के आखरी दिन भारत की संतान कार्यक्रम की प्रस्तुति हुई .. तब भाई जी ने मुझे बताया कि , मैं आपकी भाषा का गाना गाऊंगा आप अपने राज्य की वेशभूषा करके आना और उस गाने के ऊपर कोई एक्शन / नृत्य करना है और भारत के नक्शा में मराठी भाषा का दीया जलाकर के उस नक्शे के बगल में खड़े रहना.. इतना ही हमें डायरेक्शन याने की निर्देशन मिला था . तो उसमें मैंने मराठी भाषा के गाने पर महाराष्ट्र की वेशभूषा करके कुछ एक्शन किए थे ..

1993 में जब मैं सद्भावना रेल यात्रा में सहभागी हुआ उस वक्त उस यात्रा दौरान हर रोज दो या तीन बार भारत की संतान का कार्यक्रम शहर के जनता की बीच में यानी कि चौराहा पर होता था .. इस कार्यक्रम मे हम सब लोग अपना अपना वेशभूषा और उस गाने के ऊपर एक्शन / नृत्य करते थे . इसमें कई बार मैंने मराठी भाषा का रोल किया तब भी हमें किसी से ठीक से निर्देशन वगैरह नहीं मिलता था. ..ये सफर रहा इस कार्यक्रम का।
……
इस भारत के संतान के कार्यक्रम में 5 साल के 70 साल के कलाकारों ने सहभाग लिया है

मेरे जीवन का लक्ष्य-नरेंद्र भाई
पूरी दुनिया में 11 धर्म के लोग रहते हैं इसमें से भारत में 8 धर्म के लोग रहते हैं और 4 धर्म का जन्म हुआ है . दूसरी बात विश्व में सबसे ज्यादा भारत 1652 मातृभाषा बोलने वाला देश है 22 भाषाओं को सविधाना ने माना गया है. इसलिए भारत विश्व गुरु के नाम से जाना जाता है .
भारत में धर्म , भाषा , जाति के नाम से बहुत सारी लड़ाइयां / दंगे फसाद हो चुके हैं . इसलिए मेरे जीवन का लक्ष्य है कि , भारत में राष्ट्रीय एकता , शांति , सद्भावना फैले . जगतगुरु आदर्श भारत देश बने इसलिए मेरा छोटा सा प्रयास है और यह मेरा प्रयास मेरे जीवन का लक्ष्य है . इसलिए मेरा जीवन भारत माता के लिए अर्पित है . हम सब भारतवासी अपने जीवन में निजी कार्यों में से थोड़ा सा समय भारत माता के लिए दे तो भारत देश का उज्जवल हो सकता है यही मेरा निवेदन है..

भारतीय बहुभाषा गीत
भारत की संतान हम हैं, भारत की संतान।
नदियां जैसी बहू भाषाएं, सब का स्थान समान।।

संस्कृत
बुधजन तारण कारण दाता
वाण कवीफश्वर भारवी गीता देव कवियम भारत माता कालिदास जय भाग्य निदान।।

मणिपुरी
यायफरे यायफरे यायफरे
साळय तारेत्ना थोंगुबा
चिरिमना कोयना कञाग्पा
मालेंद थोमथीग ञालिबा
मणीपुरी सन लाइ पाकान।।

असमिया
मोएई कीर्तन धोखा रत्नावली
खोखर माधोवर ओखिम दान भारत मात्रिर बढ़ाये सम्मान
खगलेबे मिले गाये जयगान।।

कश्मीरी
बुचस वलवलूर गलित
आमुत जिन शीनमाय
बुचस ईल्मों अद वुच
मशल हयत्पकान।

गुजराती
गर्वी गुर्जरी हूँ गांधीनी
नरसी नर्मदनू छुं खान
भारत मातानी पुत्री लाड़ली सरदारे साध्यूं एकतान।।

मलयालम
केरळ नाटिन कथकळी गानम् ञान
आचार्य तुन्चन्दें पेंगिंळि कोंचन् ञान
नम्बियार कुन्चण्दें तु मन्दहासन ञान
केरळ नेनमुळी केरळ देवी ञान।।

बंगाली
बंकिमेंर अमि बंदे मातरम्
विवेकानंन्देर तत्वज्ञान
शुनाबो काब्यो मेघनाद् होते
काजी नजरुल्लरे विप्लव गान
एशो एशो सवे मिले
गाओ जन-गण-मन
रविंद्र नाथेर कविता गान
उज्जवल करिबे जय भारत मातारे
बाड़िवे बंगलार मान् ।।

मराठी
मीच मराठी ज्ञानेशाची
अभंग गाथा श्री तुकयाची
सेवा करूनी निज मातेची
तिचा वाढविन मान् ।।

तेलुगू
तेलुगू देशमुनु वेलुगुलु चूपिड़ि
तेलुगु तेजमुनू नेनू
आदिकवि ननैप्या काव्यान्नि नेनू
शतवाहन नृपति शौर्यान्नि नेनू।।

सिंधी
सिंधु अजानित कंठा गूँजी
सिंधी कच्छी मिठड़ी भाषा
सूफ़ी सन्तन जी सा आशा
वीरन् जो वरदान।।

उड़िया
उत्कल मधुश्री सरलदास कवि
लेखि भारतपाई आशीष
रचि छंद उपेन्द्र भंज सम
बढाये मातांक मान।।

नेपाली
माधव को समलामा
भाखा मीठो गायारे
कर्म गरम स्वदेशामा
शक्तिनाम लियर
गुर्खाली बीर, उच्छ शरीर
कांजन जंगा ओ महान।।

कोंकणी
गोंय आमुचें प्रांत सान
कोंकणी भाषा मगले नाम
शान्ति आनि सुख समाधान
देखनि भारताचें गौरवस्थान।।

उर्दू
मैं हूं उर्दू हिंदुस्तानी
कोमों की एकता की निशानी लोग चाहते महलों की रानी मेरी निराली आन, मेरे निरालीशान।।

कन्नड़
बसव माधवर यशोनिकेतन
कनक पुरन्दर गान रसायन
पम्पन व्वाग् वैभव कन्नड़ ना
माडुवे ताई बलवान।।

पंजाबी
पंजाबी मैं पंज दरियाँ दी
वारिस शाह हाशम दें हीरां दी
नानक अर्जन जन्ह पीरां दी
उच्ची कर रही शान।।

तमिल
कलवी सिरन्दनर कंबनै उम्मरै
वल्लुवन तन्नैयुम पेट्रेडुत्तेन पंडे
भारत नाट्टिन पिरन्दु विलंगिय
पनवुडै नट्रमिल नानै तान्।।

हिंदी
हिंदी की मैं अथाह सागर तुलसी,मीरा,सूर,कबीरा बनकर
निज माता पर रत्न चढ़ाकर बढ़ा रही हूं भारत की शान।।

भारत की संतान हम हैं,
भारत की संतान
भारत की संतान हम हैं भारत की संतान ।।
“बसंत तुलजापुरकर”

……
भारत की संतान का यह अनोखा कार्यक्रम भारत के विभिन्न राज्य के राज्यपाल, मुख्यमंत्री, राजनीतिक मंत्री और देश के सामाजिक समाज सेवक , प्रशासकीय अधिकारी ओने कार्यक्रम को देखा है और बहुत प्रशंसा भी की है..।
लेखक का परिचय- सुश्री गीता कौर,उत्तराखंड के उधमसिंह नगर जिले के निवासी है,वे एन वाई पी के कई नेशनल कैम्प में शामिल रही है ,और अपने अनुभवों को साझा करते हुई ये रिपोर्ट तैयार किया गया है। वे पिछले एक वर्ष से कई पत्र पत्रिकाओं में अपने लेखों से देश की जनभावनाओं को रख रही है।
वही लेखक कुमुद रंजन सिंह बिहार के नालन्दा जिला निवासी है,वे 2006 से कई पत्र पत्रिकाओं में अपने आलेखों से जन भावनाओं को जागृत करने का काम कर रहे हैं। वे कई संस्थाओं के प्रमुख व सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में अपनी पहचान बना चुके है। वर्तमान में वे उभरताबिहार के उपसम्पादक है तथा देश के कई सामाजिक कैम्प व आयोजनों में शामिल रहे है। अपने एन बाई पी के कैम्प के बिताए पलो के आधार पर ये आलेख तैयार कर उभरताबिहार के माध्यम से देश दुनिया को भारत की विशेषताओ को रखने का प्रयास मात्र है।

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