जितेन्द्र कुमार सिन्हा, 18 अक्टूबर ::
माँ दुर्गा के द्वितीय स्वरूप ब्रह्मचारिणी का आज उपासना होती है। ब्रह्मचारिणी की उपासना से तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम की वृद्धि होती है। माँ ब्रह्मचारिणी का तात्पर्य तपश्चारिणी है। माँ ब्रह्मचारिणी देवर्षि नारद जी के कहने पर भगवान शंकर की कठोर तपस्या की थी, जिससे प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने इन्हें मनोवांछित वरदान दिया था, जिसके फलस्वरूप भगवान भोले नाथ की वामिनी अर्थात पत्नी बनी। इस कठिन तपस्या के कारण इन्हें तपश्चारिणी अर्थात् ब्रह्मचारिणी नाम से अभिहित किया गया। इसलिए माँ के इस रुप को तपश्चारिणी और ब्रह्मचारिणी के नाम से जाना जाता है। माँ के इस स्वरूप को माँ अपर्णा और माँ उमा के रूप में भी जाना जाता है। माँ ब्रह्मचारिणी के दाहिने हाथ में अक्ष माला और बायें हाथ में कमण्डल रहता है। पूजा के समय साधक का मन स्वाधिष्ठान चक्र में स्थित और साधक माँ ब्रह्मचारिणी की कृपा और भक्ति को प्राप्त करता है।
माँ ब्रह्मचारिणी सदैव अपने भक्तो पर कृपादृष्टि रखती है एवं सम्पूर्ण कष्ट दूर करके अभीष्ट कामनाओ की पूर्ति करती है। माँ ब्रह्मचारिणी की कृपा से मनुष्य को सर्वत्र सिद्धि और विजय की प्राप्ति होती है तथा जीवन की अनेक समस्याओं एवं परेशानियों का नाश होता है। माँ को अरूहूल (उड़हुल) का फूल और कमल पसंदीदा फूल है।
या देवी सर्वभूतेषु माँ
ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै
नमस्तस्यै नमो नम:
जो व्यक्ति अध्यात्म और आत्मिक आनंद की कामना रखते हैं उन्हें इस देवी की पूजा से सहज यह सब प्राप्त होता है।