जितेन्द्र कुमार सिन्हा,पटना, 04 दिसम्बर ::
नशा मुक्त भारत अभियान कार्यक्रम का आयोजन भारत सरकार के सामाजिक न्याय और अधिकारिकता एवं प्रजापति ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय के संयुक्त तत्वाधान में, एम्स रोड, वाल्मी, पटना में किया गया। इस कार्यक्रम का उद्घाटन ब्रह्माकुमारी माउंट आबू की राज्य योगनी रूकमणि, डा. सुशील कुमार सिंह, शिक्षाविद प्रदीप मिश्र, यूथ हॉस्टल्स एसोसियेशन ऑफ इंडिया, बिहार प्रदेश के उपाध्यक्ष व वरिष्ठ पत्रकार सुधीर मधुकर, पटना की संगीता दीदी, सेवा केंद्र, एम्स रोड, फुलवारी शरीफ, पटना की इंचार्ज मीरा बहन, संचालिका उर्मिला बहन, व्यवस्थापक वशिष्ठ भाई एवं राजेंद्र भाई ने संयुक्त रूप से पंचदीप प्रज्जवलित कर किया। स्वागत नृत्य शौमिया ने की।
अपने उद्घाटन संबोधन से बहन राज्य रूकमणि ने जिज्ञासु ब्रह्माकुमारी के सदस्यों को नशा नहीं के साथ-साथ समाज को नशा मुक्त अभियान में महत्वपूर्ण सहयोग कर देश को नशा मुक्त कराने की शपथ दिलाई। दीदी ने कहा कि राज योग जीवन पद्धति से समाज नशा मुक्त हो सकता है। मनोवैज्ञानिक डा.राजेश्वर मिश्र, डा. वीना, डा मीनाक्षी, आदि वक्ताओं ने भी अपने-अपने संबोधन में कहा कि पिछले कुछ सालों में भारत के साथ ही पूरे विश्व में नशा करने वाले और उससे पीड़ित लोगों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है। इनके गंभीर परिणामों को देखते हुए नशे से होने वाले नुकसानों के प्रति जागरुक करने के लिए कई संस्थाएं भी समाज में कार्यरत हैं। लोगों पर नशे की बढ़ती गिरफ्त और इसके दुष्परिणामों को देखते हुए भारत में भी राष्ट्रीय स्तर पर लोगों को जागरूक करने के प्रयास किए जा रहे हैं। कई कानून भी बनाए गए हैं, इसके बावजूद भी इस पर अमल नहीं हो पाता। भारत में बच्चों से लेकर बड़ों तक हर उम्र के लोगों को इसने अपना शिकार बनाया हुआ है।
भारत में वैसे तो शराब, सिगरेट, तंबाकू का सेवन आजकल बहुत आम हो गया है, लेकिन इसके अलावा भी लोग अलग अलग तरह के नशे करते हैं, जिनमे शराब, अफीम, चरस, गांजा (भांग), हेरोइन व कोकेन जैसे घातक नशीले पदार्थ शामिल हैं। कुछ लोग तो दवाइयों का इस्तेमाल भी नशे के रूप में करते हैं। लोग खांसी के सिरप और कुछ निद्रकारक गोलियों का इस्तेमाल नशे के रूप में करते हैं। इसके अलावा भी लोगो ने नशा करने के अलग अलग तरीके खोज रखे हैं जैसे कोई पेट्रोल सूंघकर नशा करता है, कोई थिनर सूंघ कर तो कोई सिलोचन से नशा करता है।
उल्लेखनीय है कि शहर में आजकल आठ से बारह साल के बच्चों में व्हाइटनर, सिलोचन और आयोडेक्स के नशा का प्रचलन हो गया है। इस नशे के लिए यह बच्चे कुछ भी करने को तैयार हैं. जिस उम्र में इन बच्चों के हाथों में कॉपी और किताब होनी चाहिए, उस उम्र में इनके हाथों में व्हाइटनर, सिलोचन और आयोडेक्स की शीशी नजर आती है। रेलवे स्टेशन और फुटपाथ पर रहने वाले बच्चे भी इसकी चपेट में आ चुके हैं जो इन्हे अपराध की ओर ढकेल रहा है।
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