गीता” ज्ञान के पश्चात “अर्जुन” की स्थिति

लेखक: अवधेश झा गीता ज्ञान परमतत्व का ज्ञान है! अर्थात आत्म स्थिति की समस्त ज्ञान है। गीता प्रसाद ग्रंथ है इसे ग्रहण करने वाले को ब्रह्म पुष्टि, संतुष्टि और ब्रह्म की प्राप्ति होती है। गीता समस्त वेदांत दर्शन का सार है। गीता ज्ञान यज्ञ है, इसमें हवन करने वालों का समस्त संशय रूपी अज्ञानता शीघ्र भस्म हो जाता है और पूर्ण ज्ञान का उदय होता है। इस पावन गीता में समस्त उपनिषदों के ज्ञान का समग्र और संग्रह स्वरूप उपस्थित है, जिसमें आत्मा के विषय में सूक्ष्मता से बताया गया…